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क्या है अक्षयवट वृक्ष और प्रयागराज का संबंध ?

Edited By Jyoti,Updated: 07 Feb, 2019 03:37 PM

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इन दिनों प्रयागराज में चल रहे कुंभ के कारण वहां रहने वाला और आने वाला हर भक्त पूरा तरह से आस्था में डूबा हुआ है। इस समय प्रयागराज के संगम तट पर साधु-संतों के साथ-साथ आम लोग भी डेरा जमाए हुए हैं।

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इन दिनों प्रयागराज में चल रहे कुंभ के कारण वहां रहने वाला और आने वाला हर भक्त पूरा तरह से आस्था में डूबा हुआ है। इस समय प्रयागराज के संगम तट पर साधु-संतों के साथ-साथ आम लोग भी डेरा जमाए हुए हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार कुंभ में तीर्थ स्नानों पर स्नान करने से और दान-पुण्य का काम करने से सीधा मोक्ष प्राप्त होता है। इस बार का कुंभ प्रयागराज में आयोजित किया गया है। हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों की मानें तो प्रयागराज के सभी तीर्थों में से अक्षयवट को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। बहुत कम लग जानते होंगे कि इसे धार्मिक दृष्टि से इसे इतना महत्व क्यों दिया जाता है। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर अक्षयवट का धार्मिक रूप से इतना खास क्यों कहा जाता है।
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कुछ हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खास कहे जाने वाले इस अक्षयवट वृक्ष का संबंध इस सृष्टि के आरंभ काल से है। इसके बारे में मान्यता है कि अक्षयवट नाम के इस वृक्ष को माता सीता ने वरदान दिया था कि जब प्रलय काल आएगा और पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी, फिर भी इस वृक्ष का एक पत्ता बचा रहेगा। साथ ही इसके बारे में एक मान्यता ये भी है कि श्रीकृष्ण अपने बाल स्वरूप में इसी वट वक्ष पर विराजमान हुए थे।
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आइए जानते हैं इससे संबंधित बातें-
रामायण में अक्षयवट का उल्लेख किया गया है, इस पावन ग्रंथ में इसका नाम नीलवट के रूप में मिलता है। इसमें किए गए वर्णन के अनुसार वन जाने के समय भगवान श्रीराम जब भारद्वाज आश्रम पहुंचे तब उन्होंने अक्षयवट का दर्शन किया। जिसके बाद फिर माता सीता ने भी इस वृक्ष की पूजा की और अपने अक्षय सौभाग्य की प्रार्थना की। कहते हैं उस समय अक्षयवट गंगा के पूरब दिशा में था। जबकि इस समय अक्षयवट इलाहाबाद यानि प्रयागराज किले के अंदर है।

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कहा जाता है कि अपने पितरों के मोक्ष की कामना के लिए जो भी श्रद्धालु श्राद्ध करते हैं, उसकी पूर्णाहुति इसी अक्षयवट के नीचे दी जाती है। रामायण के साथ-साथ पद्मपुराण में भी अक्षयवट का जिक्र मिलता है। माना जाता है कि जो मनुष्य इस वट वृक्ष की छाया में आ जाता है, वह इस संसार के जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त हो जाता है। बता दें कि शास्त्रों में इस अक्षयवट की पूजा के बारे में बताया गया है, जिसमें सबसे पहले संगम स्नान के बारे में बताया गया है।
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