Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Nov, 2020 11:14 AM

भगवान किसी नाम से बंधा हुआ नहीं है। उसे तू ही तू कहो, वह सुनता है। सूरज चढ़ा है-झरोखे को बंद न करें। श्रद्धा से भजन करो
भगवान किसी नाम से बंधा हुआ नहीं है। उसे तू ही तू कहो, वह सुनता है। सूरज चढ़ा है-झरोखे को बंद न करें। श्रद्धा से भजन करो मार्ग खुल जाएगा। नाम जपने वाले को नाम की डोर उसके धाम में ले जाती है। जहां परमात्मा विराजमान हैं। —स्वामी सत्यानंद

युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण जी से प्रश्र किया-धर्म का क्या मूल सार है। मनुष्य को लोक-परलोक के कल्याण के लिए क्या करना चाहिए। श्री कृष्ण जी ने कहा-दान-दया आदि का व्रत। व्रत उपवास-नियम रूपी नौका उसे भवसागर से पार करवा देती है। —संत सुभाष शास्त्री
अपने माता-पिता के पास सप्ताह में थोड़े-बहुत टाइम के लिए जरूर बैठें। वर्ष में एक बार उन्हें बाहर घुमाने के लिए लेकर जाएं। वर्ष में एक बार उनको गिफ्ट जरूर दें। दान आदि के लिए उन्हें थोड़ी-बहुत रकम जरूर दें। उनका दिल दुखाने वाली बात न करें। माता-पिता को सदा प्रसन्न रखें। —डा. उज्जवल पाटनी

माता-पिता अपनी संतान से बहुत प्यार करते हैं इसमें कोई शक वाली बात नहीं है। मगर दादा-दादी भी अपने पोते-पोती से कम प्यार नहीं करते। इनके पालन-पोषण करने में इनका पार्ट भी मायने रखता है। माता-पिता से डांट खाने के बाद बच्चे दादा-दादी के पास ही आते हैं। —दर्शना भल्ला
रिश्तों में मिठास भरें। भगवान से यदि मांगना पड़े तो परिवार के संगठन के लिए प्यार और एकता की कामना करें। जहां प्यार और एकता होती है वहां लक्ष्मी सौ वर्ष निवास करती हैं। धनवान वह नहीं जिसकी पत्नी के गले के हार में हीरा पहना हो, धनवान वह होता है जिसके घर में माता-पिता की सेवा होती है। —राष्ट्र संत ललित प्रभ
क्रोधी मनुष्य दिशाहीन हो जाता है और सद्गुण खत्म हो जाते हैं। क्रोध उस समय आता है जब हमारी इच्छा पूरी नहीं होती। क्रोध को अग्नि के समान कहा गया है। क्रोधी मनुष्य स्वयं भी जलता है दूसरों को भी जलाता है। धैर्य और विवेक से इसे खत्म कर सकते हो। निराशा, पश्चाताप अग्नि के धुएं की तरह हैं। —विजय शंकर
