मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Jul, 2024 08:01 AM

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कहते हैं कि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’। यह साधारण-सी लोकोक्ति एक असाधारण सत्य को प्रकट करती है और वह है मनुष्य के मनोबल की महिमा।

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कहते हैं कि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’। यह साधारण-सी लोकोक्ति एक असाधारण सत्य को प्रकट करती है और वह है मनुष्य के मनोबल की महिमा। इसीलिए देखा जाता है कि जिसका मन हार जाता है, वह अति शक्तिशाली होने के बावजूद भी पराजित हो जाता है। तभी तो आज का मनुष्य तन की जगह मन से ज्यादा भाग रहा है। यदि हम अपने आसपास देखें तो यही दिखेगा कि हर कोई सुबह से रात तक न जाने कितने व्यक्तियों में, वस्तुओं में, संबंधों में अपने मन को व्यस्त करता है और रात तक अपने आपको मन से थका हुआ और परेशान-सा पाता है। क्या कारण है ?

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जैसे आज पूरा विश्व मंदी के दौर से गुजर रहा है, बड़े-बड़े बैंक, कम्पनियां या तो घाटे में चल रही हैं या दिवालिया होकर बंद हो चुकी हैं। इसका स्पष्ट कारण यही है कि खर्चा ज्यादा है और आमदनी कम। उसी प्रकार आज का मनुष्य भी सुबह से रात तक कितने ही व्यक्तियों, वस्तुओं, संबंधों में अपनी ऊर्जा खर्च तो कर रहा है लेकिन उसकी एवज में उसे जितना चाहिए, उतना सच्चा सुख, शांति, चैन, आनंद की प्राप्ति नहीं हो पा रही।

केवल खर्चा ही खर्चा है और उसमें भी उसकी ज्यादा ऊर्जा व्यर्थ संकल्पों में खर्च हो जाती है। सरल और सीधी भाषा में कहें तो मनुष्य का अपने मन पर नियंत्रण ही नहीं रहा, जिसके परिणामस्वरूप वह मन को रोगी बना कर बैठा है। विश्व भर में, शरीर के अलग-अलग अंगों का इलाज करने वाले अनेक डॉक्टर तो हमें मिल जाएंगे लेकिन कहीं भी ऐसा बोर्ड लगा नजर नहीं आता, जहां पर यह लिखा हुआ हो कि हमारे यहां पर मन का इलाज किया जाता है। इसलिए यह प्रश्न उठता है कि खर्च की गई मन की ऊर्जा आखिर प्राप्त होगी कहां से ? कैसे मन को निरोगी बनाया जाए?

दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। हर प्रकार की उपलब्धि हो सकती है पर उसके लिए तरीका ठीक अपनाना पड़ता है। गांधी जी ने भी यही बात सिखलाई कि खुश रहने के लिए अपनी विचारधारा बदलो। तो यदि हम व्यर्थ विकल्पों का त्याग कर सकारात्मक सोचना शुरू करेंगे तो हमारा मन स्वस्थ व निरोगी हो जाएगा और उसका अच्छा प्रभाव जब तन पर पड़ेगा तो वह भी स्वस्थ हो जाएगा।

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कहते हैं कि ‘जैसा संकल्प वैसी सृष्टि’ अर्थात हम जैसा सोचेंगे, हमारे आसपास का संसार भी वैसा बनेगा। इसीलिए तो आज हर डॉक्टर अपने मरीज को एक ही सलाह देता है कि ‘शुभ सोचो और अच्छा सोचो तो आप जल्दी-जल्दी ठीक हो जाएंगे’। परन्तु अधिकांश लोगों का यह प्रश्न होता है की क्या यह सचमुच सम्भव है कि हमारे मन में कोई भी अशुद्ध संकल्प प्रवेश ही न करे?

अनुभविओं के मतानुसार आध्यात्मिकता द्वारा यह मुश्किल लगने वाली बात बड़ी सहजता से संभव हो सकती है। जैसे डॉक्टर कहते हैं कि अगर दिन में हर घंटे एक गिलास पानी पीने की आदत रहे तो शरीर को अनेक प्रकार की बीमारियों से बचाया जा सकता है, ठीक वैसे ही हर घंटे में यदि एक मिनट के लिए ध्यानाभ्यास (मैडीटेशन) किया जाए तो अनेक प्रकार के व्यर्थ संकल्पों से बचा जा सकता है। इस सहज विधि को कहते हैं ‘मन के संचार पर नियंत्रण’ अर्थात मन का ट्रैफिक कंट्रोल।

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जी हां! जैसे चौराहे पर खड़े ट्रैफिक पुलिस कर्मी को यह समझ होती है कि कब और कौन-सी दिशा में वाहनों को चलने या रोकने का आदेश देना है ताकि एक मिनट के लिए भी यह व्यवस्था डगमगा न जाए और वातावरण में अशांति, तनाव और अनिश्चितता न फैले। इसी प्रकार से व्यक्ति, स्थान और वायुमंडल के प्रतिकूल होने पर नकारात्मक, विरोधात्मक एवं विनाशकारी संकल्पों को रोककर शुद्ध एवं रचनात्मक संकल्पों की उत्पत्ति करना, यह कला मन के ट्रैफिक कंट्रोल की सहज विधि द्वारा हमारे भीतर धारण हो सकती है।

 
तो चलिए, आज से सुबह से लेकर रात को सोने तक हर घंटे में एक मिनट के लिए अपना सम्पूर्ण कारोबार स्थगित कर, मन के विचारों को नियंत्रित कर, स्वयं को भौतिक शरीर से अलग आत्मा समझ, आत्मा के पिता परमात्मा की दिव्य स्मृति में रहने का अभ्यास करें और उस सर्व शक्तिमान की दिव्य ऊर्जा प्राप्त कर पाप कर्मों से सम्पूर्ण परहेज रखने की शक्ति प्राप्त करें। 

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