Edited By Jyoti,Updated: 06 Sep, 2022 03:20 PM
काशी को धार्मिक नगरी के नाम से जाना जाता है, तो वहीं काशी की सबसी बड़ी पहचान मानी जाती है यहां विराजमान बाबा विश्वनाथ। हालांकि काशी नगरी से जुड़े ऐसे कई और तथ्य प्रचलित है, जिस कारण धार्मिक दृष्टे से अधिक महत्व है। कहा जाता है न केवल सनातन
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
काशी को धार्मिक नगरी के नाम से जाना जाता है, तो वहीं काशी की सबसी बड़ी पहचान मानी जाती है यहां विराजमान बाबा विश्वनाथ। हालांकि काशी नगरी से जुड़े ऐसे कई और तथ्य प्रचलित है, जिस कारण धार्मिक दृष्टे से अधिक महत्व है। कहा जाता है न केवल सनातन धर्म बल्कि बौद्ध व जैन धर्मों के ग्रंथों में भी काशी के बारे में वर्णन मिलता है। बात करें तो सनातन धर्म के ग्रंथों में किए वर्णन के अनुसार काशी दुनिया के सबसे पुराने शहरो में से एक है। दैवीय काल में यह सर्वप्रथम भगवान विष्णु का नगर हुआ करता था। परंतु कालांतक काल में से ही ये शिव की नगरी कहलाने लगी थी। दरअसल इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार कालांतर में जब भगवान शिव ब्रह्मा जी पर क्रोधित हो गए और उनका पांचवां मस्तक धर अलग कर दिया, तो ब्रह्मा जी का मस्तक शिव जी के करतल से चिपक कर रह गया। महादेव के कई प्रयासों से बावजूद ब्रह्माजी का मस्तक शिव जी के करतल से चिपका रहा। इसके बाद एक बार जब भगवान शिव काशी आए, तो ब्रह्मा जी का मस्तक उनके करतल से अलग हो गया। अतः भगवान शिव को ब्रह्मा वध से मुक्ति मिल गई, और वह अत्यंत प्रसन्न हुए। उनकी काशी नगर में बसने की इच्छा हुई और भगवान विष्णु से काशी नगरी मांग ली। ऐसा कहा जाता है कि तभी से काशी नगरी भगवान शिव की कहलाती है। ये तमाम जानकारी जानने के बाद आप यकीनन ये सोच रहे होंगे कि हम आपको काशी विश्वनाथ के बारे में बताने जा रहे हैं। जी नहीं, दरअसल हम आपको बताने जा रहे हैं काशी में स्थित विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित माता अन्नपूर्णा मंदिर के बारे में, जिसका न केवल यहां के लोगों के लिए बल्कि दूर दूर से आने वाले लोगों के लिए बहुत महत्व है। तो चलिए जानते हैं क्या है इस मंदिर से जुड़ी धार्मिक कथा-
प्रचलित कथाओं के अनुसार एक बार पृथ्वी पर अन्न की कमी हो गई जिस कारम हर तरफ हाहाकर मच गया। तब सब ने पृथ्वी वासियों ने त्रिदेव की उपासना करे उन्हें इस अन्न प्रलय की जानकारी दी और इसका हल पूछा। इस समस्या का हल करने के लिए आदिशक्ति मां पार्वती और भगवान शिव पृथ्वी लोक पर प्रकट हुए। माता पार्वती से अनुपम रचना पर रहने वाले लोगों का दुख बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने स्वयं अन्नपूर्णा का रूप धारण किया और भगवान शिव की दान में अन्न दिया। जिसके बाद वहीं भगवान शिव ने अन्न को पृथ्वी वासियों में वितरित कर दिया। कथाओं के अनुसार कालांतर में अन्न को कृषि में उपयोग किया गया था, तब जाकर अन्न प्रलय समाप्त हुआ।
1100 रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं । अपनी जन्म तिथि अपने नाम , जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर वाट्स ऐप करें
यहां जानें कहां है मंदिर-
बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में स्थित विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर माता अन्नपूर्णा मंदिर स्थित है। बताया जाता है इस मंदिर में माता अन्नपूर्णा की पूजा-उपासना की जाती है। यहां की प्रचलित मान्यता के अनुसार प्रतिदिन विधि पूर्वक मां अन्नपूर्णा की पूजा करने से गृह में विपरीत परिस्थिति में भी अन्न की कमी नहीं होती है।
हिंदू शास्त्रों में निहित है कि अन्न का कभी अपमान नहीं करना चाहिए, हमेशा इसके प्रति सम्मान रखना चाहिए। साथ ही जितनी भूख हो, उतना ही भोजन परोसना चाहिए। कभी अन्न को बर्बाद नहीं चाहिए। अन्न को बरबाद करने से मां अन्नपूर्णा रूष्ट हो जाती हैं। इससे घर की लक्ष्मी भी चली जाती है और घर में दरिद्रता का वास होने लगता है।
मंदिर के बारे में बात करें तो यहां कई अनुपम छवि हैं, जिनमें माता अन्नपूर्णा स्वयं रसोई में हैं। वहीं, प्रांगण में कई प्रतिमाएं अवस्थित हैं। इनमें मां काली, पार्वती, शिवजी सहित कई अन्य देवी देवताएं हैं। बताया जाता है हर वर्ष अन्नकूट उत्स्व के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धलु मंदिर आकर माता के दर्शन करते हैं। वहीं, रोजाना बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने वाले श्रद्धालु माता अन्नपूर्णा के भी दर्शन ज़रूर करते हैं।