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इस जगह ली थी श्री कृष्ण ने मोरध्वज की कड़ी परीक्षा

Edited By Jyoti,Updated: 13 Mar, 2020 06:34 PM

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हमारे देश में ऐसे कई स्थल हैं, जिनका इतिहास हिंदू धर्म के देवी-देवताओं से जुड़ा हुआ है। जो इन जगहों के खास होने का एक मुख्य कारण है।

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हमारे देश में ऐसे कई स्थल हैं, जिनका इतिहास हिंदू धर्म के देवी-देवताओं से जुड़ा हुआ है। जो इन जगहों के खास होने का एक मुख्य कारण है। आज हम आपको एक ऐसे ही स्थान के बारे में जानकारी देने वाले हैं जिसका संबंध श्री कृष्ण से संबंधित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ये वह स्थान है जहां श्री कृष्ण ने मोरध्वजकी कड़ी परीक्षा ली थी। दरअसल जिस जगह की हम बात कर रहे हैं वो छत्तीसगढ़ की राजधानी से करीब 30 किलोमीटर दूर रायपुर-कोलकाता हाईवे पर कस्बे आरंग में स्थित है। जिसको लेकर कथा प्रचलित है कि यह जगह प्राचीन समय में राजा मोरध्वज की राजधानी थी जिसकी पहचान एक समृद्ध नगर के रूप में होती थी। धार्मिक पुराणों में इससे जुड़ी कथाओं के अनुसार श्री कृष्ण ने मोरध्वज को आदेश दिया था कि वह अपने बेटे ताम्रध्वज को आरी से चीरकर उसका मांस शेर के सामने पेश करेें। कहा जाता है इसी कारण इस नगर का नाम ‘आरंग’ पड़ा।
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बताया जाता है कि आरंग में मौजूद आर्कियोलोजिकल एविडेंस इस बात की गवाही देते हैं कि इस जगह कभी व्यवस्थित नगर रहा होगा। हालांकि, महाभारत काल (श्री कृष्ण काल) का कोई सबूत नहीं मिलता। शायद इसलिए कि अब तक उसके पांच हज़ार साल से ज्यादा बीत चुके हैं।

आरंग को मंदिरों की नगरी कहा जाता है। जिनमें 11वीं-12वीं सदी में बना भांडदेवल मंदिर प्रमुख है। बता दें यह एक जैन मंदिर है जिसके बाहरी हिस्सों में बनी इरॉटिक मूर्तियां खजुराहो की याद दिलाती हैं। इसके गर्भगृह में काले ग्रेनाइट से बनी जैन तीर्थंकरों की तीन मूर्तियां हैं। महामाया मंदिर में 24 तीर्थकरों की मूर्तियां देखने लायक हैं। यहां के बाग देवल, पंचमुखी हनुमान तथा दंतेश्वरी मंदिर भी प्रसिद्ध हैं। महानदी के किनारे स्थित इस ऐतिहासिक शहर में जल के कटाव से आर्कियोलोजिकल मटेरियल मिलते रहते हैं।
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पौराणिक इतिहास 
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद कृष्ण अपने भक्त मोरध्वज की परीक्षा लेना चाहते थे। उन्होंने अर्जुन से शर्त लगाई थी कि उनका उससे भी बड़ा कोई भक्त है। कृष्ण ऋषि का वेश बना अर्जुन को साथ लेकर मोरध्वज के पास पहुंचे और कहा, ‘मेरा शेर भूखा है और वह मनुष्य का ही मांस खाता है।’ राजा अपना मांस देने को तैयार हो गए तो कृष्ण ने दूसरी शर्त रखी कि किसी बच्चे का मांस चाहिए। राजा ने तुरंत अपने बेटे का मांस देने की पेशकश की। कृष्ण ने कहा, ‘आप दोनों पति-पत्नी अपने पुत्र का सिर काटकर मांस खिलाओ, मगर इस बीच आपकी आंखों में आंसू नहीं दिखना चाहिए।’ राजा और रानी ने अपने बेटे का सिर काटकर शेर के आगे डाल दिया। तब कृष्ण ने राजा मोरध्वज को आशीर्वाद दिया जिससे उसका बेटा फिर से जिंदा हो गया।
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