Edited By ,Updated: 31 Mar, 2015 11:38 AM
एक व्यक्ति कहीं जा रहा था। अचानक उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा और वह रुक गया। उसने देखा कि हाथियों के अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है। उसे इस बात पर आश्चर्य हुआ कि हाथी जैसे विशालकाय जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से...
एक व्यक्ति कहीं जा रहा था। अचानक उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा और वह रुक गया। उसने देखा कि हाथियों के अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है। उसे इस बात पर आश्चर्य हुआ कि हाथी जैसे विशालकाय जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं। वे चाहते तो खुद को आजाद कर सकते थे, पर वे ऐसा नहीं कर रहे थे। उसने पास खड़े महावत से पूछा, ‘‘भला ये हाथी कैसे इतनी शांति से खड़े हैं और भागने का प्रयास भी नहीं कर रहे?’’
महावत ने कहा, ‘‘इन हाथियों को छोटी उम्र से ही इन रस्सियों से बांधा जाता है। उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती कि इस बंधन को तोड़ सकें। बार-बार प्रयास करने पर भी रस्सी न तोड़ पाने के कारण धीर-धीरे उनके मन में यह बात बैठ जाती है कि वे इन रस्सियों को नहीं तोड़ सकते और बड़े होने पर भी उनका यही यकीन बना रहता है। इसीलिए वे कभी इसे तोडऩे का प्रयास ही नहीं करते।’’
दरअसल कई इंसान भी इन्हीं हाथियों की तरह अपनी किसी विफलता का एक कारण मान बैठते हैं कि अब उनसे ये काम हो ही नहीं सकता। वे अपनी बनाई हुई मानसिक जंजीरों में पूरा जीवन गुजार देते हैं। मगर मनुष्य को कभी प्रयास छोडऩा नहीं चाहिए। लगातार प्रयास से ही सफलता मिलती है।