Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Jun, 2023 07:24 AM
महार्षि भृगु जी महाराज ने अपने पवित्र एवं प्राचीन ताम्र पत्रों पर लिखित ग्रंथ श्री भृगु संहिता में एक वृतांत के द्वारा मानव जाती को नवरात्रि
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Ashada Gupta Navratri 2023: महार्षि भृगु जी महाराज ने अपने पवित्र एवं प्राचीन ताम्र पत्रों पर लिखित ग्रंथ श्री भृगु संहिता में एक वृतांत के द्वारा मानव जाती को नवरात्रि की महिमा के बारे में समझाते हुए बताया कि नवरात्रि के नौ दिन इस सम्पूर्ण सृष्टि की रचना करने वाली आदि शक्ति को ही समर्पित होते हैं। भृगु जी महाराज ने यह भी समझाया कि माता दुर्गा का यह अष्टभुजाधारी रूप कहां से प्रकट हुआ। इस पर समझाते हुए उपदेश दिया कि आदिशक्ति एक स्त्रीलिंग शब्द होने के कारण उस समय जनमानस को समझाने के लिये चित्रकार ने एक स्त्री के रूप में इस आदिशक्ति को दर्शाया था।
अब सवाल पैदा होता है कि मूर्ती रूप में उस आदि अनादि शक्ति को दर्शाने की क्यों आवश्यकता पड़ गई ? इस पर भृगु जी ने मार्गदर्शन करते हुए समझाया कि जिस प्रकार किसी बच्चे को किसी भी भाषा को सिखाने के लिये सर्वप्रथम अक्षर का चित्र दिखाया और समझाया जाता है और फिर अक्षर से शब्द और शब्दों से वाक्य और वाक्यों से निबंध तैयार होकर भाषा का पूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है। ठीक उसी प्रकार चित्रकार द्वारा यह आदिशक्ति को चित्र या मूर्ति रूप में तैयार करके उस आदि शक्ति के बारे में समझाने का प्रयास था। इस प्रकार से यह दुर्गा माता का चित्र उत्पन्न हुआ ताकि हम उस आदि शक्ति के महत्व को समझकर उसके द्वारा दिखाये गये रास्ते पर चलकर अपने जीवन को सफल कर सकें और इस मानव जीवन को पूर्ण विकसित करके इसके उच्च आयाम पर जीवन को जी सकें।
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Ashadha Gupta Navratri shubh muhurat 2023 आषाढ़ गुप्त नवरात्रि शुभ मुहूर्त 2023: आषाढ़ गुप्त नवरात्रि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को आरम्भ होंगे। इस वर्ष आषाढ़ गुप्त नवरात्रि का आरम्भ 19 जून 2023 दिन सोमवार को हो रहा है और इसका समापन 28 जून 2023 को होगा। इस दिन कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त प्रातः 5 बजकर 23 मिनट से लेकर 7 बजकर 08 मिनट तक रहेगा एवं दूसरा मुहूर्त सुबह 8 बजकर 52 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 37 मिनट तक रहेगा।
इन गुप्त नवरात्रि के दौरान माता की दस महाविद्याओं की विधि पूर्वक पूजा-अर्चना करने से मानव जीवन में जितने भी सुख होते हैं वह प्राप्त होते हैं और जितनी भी समस्याएं होती हैं उनका समाधान होकर छुटकारा मिल जाता है।
यह दस महाविद्याएं इस प्रकार से हैं- मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्तिका कहें या मां चिंतपूर्णी एक ही बात है, त्रिपुर भैरवी, मां धुम्रावती, शत्रु संहारक मां बगलामुखी, मातंगी और मां कमला देवी। मां के उपरोक्त दस रूपों का अलग-अलग महत्व है। जिस प्रकार से धरती लोक पर अलग-अलग कार्यों के विभाग होते हैं। ठीक उसी प्रकार से सभी देव आत्माओं के भी कार्यों के अनुसार अलग-अलग विभाग होते हैं। जैसी जिसकी समस्या उसे वैसी ही देव आत्माओं की शरण में जाना चाहिए।
Sanjay Dara Sing
AstroGem Scientists
LLB., Graduate Gemologist GIA (Gemological Institute of America), Astrology, Numerology and Vastu (SSM)