Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Jan, 2024 08:07 AM
अशोक का आशय है शोक रहित अर्थात जिसको पाकर शोक न हो। यह अपने नाम की भांति महिलाओं की तमाम व्याधियों का शमन कर शोक को समाप्त करने वाली वनौषधि है। लंका में सीता जी को हनुमान जी द्वारा श्री राम की भेजी अंगूठी व संदेश इसी पेड़ के नीचे मिले थे।
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Ashoka tree: अशोक का आशय है शोक रहित अर्थात जिसको पाकर शोक न हो। यह अपने नाम की भांति महिलाओं की तमाम व्याधियों का शमन कर शोक को समाप्त करने वाली वनौषधि है। लंका में सीता जी को हनुमान जी द्वारा श्री राम की भेजी अंगूठी व संदेश इसी पेड़ के नीचे मिले थे। कष्ट को नष्ट कर आशाओं को पूरा करने के लिए अशोक पेड़ की पूजा की जाती है। अशोक पेड़ को हिन्दू तथा बौद्ध पवित्र मानते हैं। बंगाल में अशोक षष्टी के दिन विवाहित औरतें षष्टी देवी की पूजा के बाद दही के साथ अशोक फूल का प्रसाद की भांति सेवन करती हैं। इस भांति हमारे देश में अशोकाष्टमी का पर्व चैत्र शुक्ल अष्टमी को मनाया जाता है, जिसमें अशोक पेड़ की पूजा-अर्चना का विधान है। शुभ माने जाने वाले इस पेड़ की डालियों को मांगलिक अवसरों पर दरवाजे पर लगाया जाता है।
वैद्यों ने ही नहीं, बल्कि वर्तमान चिकित्साशास्त्र के शोधकर्त्ताओं शोधकर्त्ताओं ने भी इसका रासायनिक विश्लेषण करके देखा है कि इसकी छाल में ‘हीमैक्सिलिन’, ‘टैनिन’, ‘कैटेकाल’, ‘केटोस्टेराल’, ‘ग्लाइकोसाइड’, ‘सैपोनिन’, ‘कार्बनिक कैल्शियम’ एवं ‘लौह के यौगिक’ मौजूद रहते हैं पर ‘अल्केलाइड’ और ‘इसैन्शियल आयल’ की तादाद कदापि नहीं पाई जाती। ‘टेनिन अम्ल’ की वजह से इसकी छाल मजबूत तो होती ही है, यह अधिक तीव्र असर करने वाली होती है। यह मधुर, शीतल, कषाय, हल्का और रूखा होता है। अशोक अस्थि व्याधियों में हितकर होने के साथ ही कृमिनाशक, त्वचा का रंग संवारने वाला, दर्द निवारक, विषशामक, तृष्णाशामक, स्तम्भक, गर्भाशय संकोचक तथा मूत्र जनक होता है। यह मलावरोध, अपच, दाह, वात आदि विकार को भी समाप्त करता है।
उपचार
अशोक की छाल का इस्तेमाल अनेक आयुर्वेदिक दवाइयों के निर्माण में किया जाता है। इन दवाइयों में अशोकारिष्ट, अशोक घृत, सुंदरी कल्प, प्रदर नाशक चूर्ण, अशोक क्षीर आदि मुख्य हैं। होम्योपैथी एवं एलोपैथी में भी कुछ औषधियां अशोक के मिश्रण से निर्मित की जाती हैं। कुछ कम्पनियों ने अशोक के सत्व से आयुर्वैदिक इंजैक्शन भी निर्मित किए हैं।
अशोक की छाल पेशाब रुकने और बंद होने वाली व्याधियों, गुर्दे की पीड़ा, निर्बलता, आलस्य और अन्य खामियों में भी संजीवनी की भांति काम करती है।
विशेष : दवा प्रयोग से पहले पेट साफ रखें। दवा लेते समय हलका व सुपाच्य आहार लें। चाय, काफी, ऊष्ण चीजों के प्रयोग से परहेज रखें। सेब, मुनक्का, पिंड, खजूर, किशमिश, छुहारे और मौसमी फलों का नाश्ता करें। भूख से कम खाएं। जल ज्यादा से ज्यादा पिएं।