आरती के समय इस मंदिर में लगे त्रिशूल अपने आप हिलने लगते हैं

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Jun, 2019 10:24 AM

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ईश्वरीय ऊर्जा समय-समय पर अपना एहसास कराती है। इस तरह के कई देवस्थान आज भी देखे जाते हैं। इसी प्रकार का एक मंदिर है ‘बाणमाता का मंदिर’ जो अजमेर से खंडवा जाने वाली ट्रेन के रास्ते के बीच स्थित

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ईश्वरीय ऊर्जा समय-समय पर अपना एहसास कराती है। इस तरह के कई देवस्थान आज भी देखे जाते हैं। इसी प्रकार का एक मंदिर है ‘बाणमाता का मंदिर’ जो अजमेर से खंडवा जाने वाली ट्रेन के रास्ते के बीच स्थित चित्तौडग़ढ़ जंक्शन से करीब 2 मील उत्तर-पूर्व की ओर सुप्रसिद्ध चित्तौडग़ढ़ किले में बना हुआ है। समुद्र तल से 1338 फुट ऊंची भूमि पर स्थित 500 फुट ऊंची एक विशाल पहाड़ी पर यह दुर्ग है। इस पहाड़ी का घेरा करीब 8 मील का है तथा यह कुल 609 एकड़ भूमि में है। श्रद्धालु इस किले में स्थित श्री बाण माता जी के दर्शन करने जाते हैं।

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महावीर बाप्पा रावल, रावल खुमाण, राणा लक्ष्मण सिंह, राणा हमीर सिंह और महाराणा प्रताप को वरदान देने वाली देवी का यह मंदिर बहुत जागृत और चमत्कारिक माना जाता है। कहते हैं आरती के समय इस मंदिर में लगे त्रिशूल अपने आप हिलने लगते हैं।

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आज से 1300 साल पूर्व बाप्पा रावल के बाण पर बैठ कर माता जी ने वर देकर बाप्पा रावल को चित्तौड़ का राज दिया था। बाण माता जी के आदेशानुसार बाण फैंका गया। बाण जहां गिरा वहीं आज मंदिर बना हुआ है। बाण फैंकने से यह बाण माता जी (बाणेश्वरी मां) कहलाईं। 

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