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बाबा नाहर सिंह मंदिर: यहां जाते ही इंसान खुद कबूलता है अपनी गलतियां

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Apr, 2019 11:39 AM

baba nahar singh temple

वास्तव में नाहर सिंह कहलूर रियासत के एक महाप्रतापी राजा दीपचंद की रानी कुंकुम देवी के साथ कुल्लू से आए हैं। राजा ने ही इस देवता का मंदिर अपने महल के समीप धौलरा में बनवाया था। राजा दीपचंद ने सन 1653 ई. से 1665 ई. तक कहलूर रियासत का राजकाज संभाला था।

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वास्तव में नाहर सिंह कहलूर रियासत के एक महाप्रतापी राजा दीपचंद की रानी कुंकुम देवी के साथ कुल्लू से आए हैं। राजा ने ही इस देवता का मंदिर अपने महल के समीप धौलरा में बनवाया था। राजा दीपचंद ने सन 1653 ई. से 1665 ई. तक कहलूर रियासत का राजकाज संभाला था। बाबा नाहर सिंह जी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर में बिलासपुर बस स्टैंड से कुछ दूरी पर धौलरा में स्थित है। बिलासपुर जनपद के आराध्य देव बाबा नाहर सिंह को वीर व बजिया के रूप में भी भक्तजन मानते हैं। धार्मिक ग्रंथों में 52 वीरों का वर्णन मिलता है। उन 52 वीरों में से बाबा नाहर सिंह भी एक हैं। यहां मंदिर में हर साल ज्येष्ठ महीने के हर मंगलवार को मेले लगते हैं। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु माथा टेकने पहुंचते हैं। 

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वास्तव में नाहर सिंह कहलूर रियासत के एक महाप्रतापी राजा दीपचंद की रानी कुंकुम देवी के साथ कुल्लू से आए थे। राजा ने ही इस देवता का मंदिर अपने महल के समीप धौलरा में बनवाया था। राजा दीपचंद ने सन 1653 ई. से 1665 ई. तक कहलूर रियासत का राजकाज संभाला था। इस राजा ने सन 1655 ई. में सुन्हाणी से बिलासपुर में अपनी राजधानी बदली थी। बिलासपुर नाम उसी ने रखा था। उसके दो विवाह हुए थे। एक मंडी राजा की पुत्री जलाल देवी से और दूसरा कुल्लू की राजकुमारी कुंकुम से। कुल्लू से दीपचंद जब कुंकुम को विवाह कर लाने लगा तो राजकुमारी की डोली एकाएक भारी हो गई और कहार डोली को नहीं उठा पा रहे थे।

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उन्होंने बहुत जोर लगाया मगर सफल नहीं हुए। क्या बात है कुल्लू नरेश ने कहारों से पूछा? राजकुमारी की डोली पहाड़ से भी भारी है। यह नहीं उठ रही महाराज, कहारों ने राजा को जवाब दिया। उन्हें असहाय देख कर राजा ने अपने राजपुरोहित से इसका रहस्य पूछा। पुरोहित बोला देव नाराज हैं। क्या चाहते हैं देव? राजकुमारी संग कहलूर जाना चाहते हैं। जाओ, कुल्लू से राजा ने हाथ जोड़कर कहा था। राजा के हां करने की देर थी कि राजकुमारी की डोली फूलों से भी हल्की हो गई। सब तरफ खुशी छा गई। 

कहते हैं उसके बाद बाबा नाहर सिंह वीर की चरण पादुकाएं राजकुमारी कुंकुम देवी की डोली के साथ कहलूर यानी बिलासपुर आई थीं। कुल्लू रियासत के राजा के महल के साथ ऊपर की तरफ बाबा नाहर सिंह का प्राचीन मंदिर आज भी दर्शकों व श्रद्धालुओं का आकर्षण केंद्र बना हुआ है। कुल्लू में भी इसी देवता की पूजा लोग श्रद्धा और विश्वास से करते हैं। बाबा नाहर सिंह कुल्लू के राज परिवार के भी कुल देवता हैं। कई श्रद्धालुओं को नंगे पांव माथा टेकने आते देखा जा सकता है। कई लोग बाबा नाहर सिंह परिसर में खेलते भी देखे जा सकते हैं। तब देव उनकी जबान में ही कुछ बताते हैं क्या भूल हुई है? क्यों लोग नाराज हैं? तब उससे उसके संबंधी माथा टेकवा कर भूल सुधारते हैं। बाबा को आटे का मीठा रोट, सुपारी, गुग्गल धूप व लौंग इलायची इत्र आदि पसंद हैं।
फसल आने पर लोग यहां बाबा के मंदिर में रोट चढ़ाते हैं। मनौती मानते हैं। शादी, पुत्र जन्म की बधाई देने जातरा लेकर नाचते गाते पहुंचते हैं।

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