Vrindavan: राजस्थान में भी बसा है वृंदावन, पढ़ें रोचक इतिहास

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Sep, 2023 08:44 AM

baba purushottam das temple

भारत में आदिकाल से वृक्षों की पूजा की जाती है। लोगों में आस्था रहती है कि वृक्षों की पूजा करने मात्र से ही मनुष्य सुख व शांति प्राप्त करता है। प्राचीन काल में वृक्षों की पूजा के लिए राजस्थान में आंदोलन भी चलाया

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Vrindavan baba puroshattam das ji ka mandir: भारत में आदिकाल से वृक्षों की पूजा की जाती है। लोगों में आस्था रहती है कि वृक्षों की पूजा करने मात्र से ही मनुष्य सुख व शांति प्राप्त करता है। प्राचीन काल में वृक्षों की पूजा के लिए राजस्थान में आंदोलन भी चलाया गया था, जिसे दबाने पर लोगों ने अपने प्राणों की आहुति तक दे दी थी। ऐसा ही करीब एक हजार वर्ष पुराना एक चमत्कारी पेड़ राजस्थान के वृंदावन (झुंझनूं जिले से लगभग 23 किलोमीटर दूर) भंडूदा में है, जहां हरिदास के शिष्य बाबा पुरुषोत्तम दास ने राधा-कृष्ण की आराधना की और उत्तर प्रदेश से इतर राजस्थान में भी एक वृंदावन बसाया। 1000 वर्ष पुराना वृक्ष राजस्थान में काटली नदी के पास जिस पेड़ के नीचे बैठकर बाबा पुरुषोत्तम दास ने ध्यान लगाया, उसकी पांच शाखाएं होने के कारण कालक्रम में वह पांच पेड़ के नाम से विख्यात हुआ। लगभग 1000 वर्ष पुराना होने के बावजूद यह आज भी हरा-भरा रहता है।  

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पंचपेड़ के प्रति आस्था व बाबा पुरुषोत्तम दास पर विश्वास रखने वाले भक्तों का जीवन भी सुख-शांति के लिहाज से उतना ही हरा-भरा रहता है। सैंकड़ों साल पहले बाबा पुरुषोत्तम दास ने पंचपेड़ की निर्मल छाया के नीचे बैठ भक्ति का जो अलख जगाया, वह आज भी भक्तों की आस्था का केंद्र है। 

हर साल भादों कृष्ण पक्ष की अष्टमी यानी कृष्ण जन्माष्टमी और फाल्गुन शुक्ल पक्ष की द्वादशी पर राजस्थान के वृंदावन में विराट व विशाल मेला लगता है, जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों के अलावा पड़ोसी देश से भी हजारों-हजार भक्त पहुंचते और नाना प्रकार के धार्मिक आयोजनों के अलावा ‘ऊं श्री पुरुषोत्तम नमो नमः’, ‘पंच पेड़ सरकार की जय’  व ‘काटली वाले बाबा की जय’ जैसे उच्चारण से वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं। 

जन्माष्टमी व होली पर लगने वाले मेले के अलावा हर महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पंचपेड़ के समीप बने बाबा के भव्य मंदिर में भजन-संध्या और द्वादशी की ज्योत ली जाती है, जिसमें शामिल होने और बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने स्थानीय सेवकों के अलावा आसनसोल, भिवानी, दिल्ली व जयपुर से भी कई भक्तगण पहुंचते हैं। बाबा का एक मंदिर मध्य कोलकाता में भी है। कोलकाता में भी मुख्य मंदिर की तर्ज पर सभी आयोजन किए जाते हैं। 

वृंदावन के मंदिर के रख-रखाव का जिम्मा श्री बिहारी जी सेवा सदन पर है, तो पंचपेड़ के रख-रखाव का काम श्री बिहारी जी मित्र मंडल देखता है। सेवा सदन व मित्र मंडल के पदाधिकारियों का कहना है कि बाबा के प्रति आस्था विश्वास रखने वाले साल के बारह महीने ही राजस्थान के वृंदावन आते रहते हैं। बाबा के मानने वालों का मत है कि यह पावन स्थल काटली नदी के तट पर बसा होने के कारण अधिक सुरम्य बन गया है।

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बाबा के पूर्वजों और मंदिर व पंचपेड़ के पुजारियों के मुताबिक श्री बिहारी जी महाराज के अनन्य भक्त स्वामी हरिदास के शिष्य संत शिरोमणि बाबा पुरुषोत्तम दास ने सैंकड़ों वर्ष पहले अपनी तपस्या के बल पर इस गांव को बसाया था। प्रति वर्ष कृष्ण जन्मोत्सव व होली पर देश के कोने-कोने और विदेशों से भी काफी भक्तजन दर्शनार्थ व पर्यटन के उद्देश्य से यहां आते हैं व बाबा के चरणों में श्रद्धा सुमन चढ़ा कर मनौतियां मांगते हैं।

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व के जोहड़ में बाबा पुरुषोत्तम दास की तपोभूमि में पंचपेड़ दर्शनीय व पूज्यनीय स्थल के रूप में दिन-प्रतिदिन ख्याति प्राप्त करता जा रहा है। लगभग एक बीघा में यह वृक्ष फैला है, जिसकी पांच शाखाएं एक ही जड़ से विकसित हुई जो आपस में जुड़ी हुई हैं। एक शाखा अलग होकर फिर मिली है। बाबा के भक्तों का मानना है कि इस पेड़ के मध्य बैठकर बाबा ने ध्यानमग्न होकर राधा-कृष्ण की आराधना कर उनका आशीर्वचन प्राप्त किया था।

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बचपन से था ईश्वरीय भक्ति में ध्यान
कहते हैं कि बाबा पुरुषोत्तम दास का जन्म सिद्धमुख (राजगढ़, चूरू, राजस्थान) में हुआ था। उनका ध्यान बचपन से ही ईश्वरीय भक्ति में था। तब भी उनके माता-पिता ने उनका विवाह ढांचेलिया परिवार में कर दिया। एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म देने के बाद बाबा गृहस्थ जीवन छोड़ कर वृंदावन (उत्तर प्रदेश) में जाकर श्रीकृष्ण भक्ति में तल्लीन हो गए। उनकी प्रखरता और विद्वता देखकर अन्य सप्त तपस्वी उनसे विद्वेष भाव रखने लगे।

बाबा को यह रास नहीं आया और वहां से गुरु हरिदास जी से आशीर्वाद लेकर भारत-भ्रमण पर निकले। वह अमरावती पर्वतमालाओं पर विचरण कर एकता का संदेश देते हुए राधा-कृष्ण की मूर्ति लेकर एकांत स्थान की तलाश में निकल पड़े।

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यूं बसाया नया वृंदावन
संयोगवश काटली नदी के किनारे जल और वृक्ष देखकर उन्हें आनंद की अनुभूति हुई और इसे ही वृंदावन मानकर बाबा वहीं ध्यान में बैठ गए। उन्होंने इसी को अपनी कर्मस्थली मानकर इसका नाम वृंदावन रखा। उन्होंने पंचपेड़ को पंच परमेश्वर मानकर तपोभूमि के रूप में विख्यात करवाया।

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यहां के प्रत्येक कुंज में बाबा ने बालकृष्ण के रूप को देखा और युगल जोड़ी के दर्शन किए। यहीं बाबा की तपोस्थली व पुण्यस्थली है। बाबा बड़े दयालु थे। अपने जीवन काल में दुखियों का दुख दूर करते हुए भगवत भक्ति की प्रेरणा देते थे। उनके पास कोई भी दुखियारा क्यों न गया हो, वह खुश होकर लौटता और बाबा उसे अपने आशीर्वाद व तप के प्रभाव से दुख मुक्त कर देते थे। ग्रामीणों की जुबान पर यह किंवदंती है कि बाबा सुबह-शाम आरती के वक्त जब शंख बजाते थे तो एक गाय पेड़ के नीचे आकर खड़ी हो जाती थी। बाबा उसके नीचे कमंडल रखते तो वह गाय (कामधेनु) के दूध से भर जाता था। लोगों का मानना है कि इस पेड़ के नीचे मांगी गई मनौती पूर्ण होती है इसलिए श्रद्धालु भक्तों का यहां नित्य प्रति आना-जाना लगा रहता है। बाबा के भक्तों ने बताया कि वृंदावन (भंडूदा) को आकर्षण पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना है। इस बाबत जिला व राज्य प्रशासन से बातचीत चल रही है।

 

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