Baba Shahpir Ka Maqbara: 450 वर्ष पुरानी कब्रों में से एक है, देश-विदेश में प्रसिद्ध शाहपीर का मकबरा

Edited By Prachi Sharma,Updated: 25 Aug, 2024 10:15 AM

baba shahpir ka maqbara

आज हम जानेंगे मेरठ शहर के बीचों बीच बने बाबा शाहपीर के मकबरे के बारे में, जो भारतीय पुरातत्व विभाग की धरोहर है।  यह धरोहर आज भी मेरठ की शान है।

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Baba Shahpir Ka Maqbara: आज हम जानेंगे मेरठ शहर के बीचों बीच बने बाबा शाहपीर के मकबरे के बारे में, जो भारतीय पुरातत्व विभाग की धरोहर है।  यह धरोहर आज भी मेरठ की शान है।

400 वर्ष पुराने इस मकबरे की अपनी अलग ही खासियतें हैं। बता दें कि लाल किला और जामा मस्जिद की तरह ही इसके निर्माण में लाल पत्थर लगाए गए हैं। जिन पर बहुत ही खूबसूरत नक्काशी भी की गई है लेकिन पुरातत्व विभाग अपनी इस धरोहर को नहीं सहेज पा रहा है जिसके चलते आज बाबा शाहपीर का मकबरा अब जीर्ण-शीर्ण हालत में पहुंच गया है।

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दरअसल, इस्लामिक गुरु शाहपीर की नौंवी पीढ़ी के वंशज आज भी इस मकबरे की देखभाल करते हैं। मकबरे में पत्थरों की दीवारें और नक्काशी की गई है। मेरठ में इंदिरा चौक पर गुलमर्ग सिनेमा के पास बना बाबा शाहपीर का मकबरा मेन रोड से 100 मीटर अंदर बना हुआ है। इस मकबरे पर रोजाना सैंकड़ों अकीदतमंद अपनी मुराद लेकर आते हैं। लोकल पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था नहीं होने से आए दिन यहां असामाजिक तत्वों का जमावड़ा रहता है, जो कब्रों और मकबरे को क्षतिग्रस्त करते हैं।

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बलुआ पत्थरों की बिल्डिंग
इतिहासकारों के अनुसार, सन् 1633 में मुगल बादशाह जहांगीर के शासनकाल में उनके इस्लामिक गुरु शाहपीर रहमतउल्लाह अलैह के इस खूबसूरत मकबरे की संग-ए-बुनियाद नूरजहां ने रखी थी। मकबरे में आगरा और दिल्ली के लाल किले के बलुआ पत्थरों और नक्काशी का प्रयोग किया गया है। पुरातत्व विभाग का कोई सहयोग नहीं बाबा शाहपीर के वंशज और केयरटेकर सैय्यद मोहम्मद अली कहते हैं कि पुरातत्व विभाग और प्रशासनिक बेरुखी के कारण यह दरगाह अपनी पहचान खोती जा रही है। पुरातत्व विभाग का कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। विभाग गंभीर हो तो मकबरा अपनी खोई पहचान पा सकता है।

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देश-विदेश में मान्यता
इस मकबरे की भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी मान्यता है कि यहां मांगी गई हर दुआ कुबूल होती है। एक पर्चे पर लिखकर मुराद को पीर पर रख दिया जाता है इसलिए शाहपीर का मकबरा देश-विदेश में प्रसिद्ध है। इस ऐतिहासिक इमारत को नुक्सान खुद पुरातत्व विभाग पहुंचा रहा है। विभाग की मिलीभगत के चलते मकबरे के चारों तरफ अतिक्रमण हो चुका है। दूर से दिखने वाला मकबरा आज सड़क से दिखाई नहीं देता है।  

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