Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Apr, 2023 07:16 AM
![bagalamukhi mata temple](https://img.punjabkesari.in/multimedia/914/0/0X0/0/static.punjabkesari.in/2023_4image_07_11_309212845baglamukhijayantisidhpi-ll.jpg)
प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक है बगलामुखी। मां भगवती बगलामुखी का महत्त्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Baglamukhi Jayanti 2023: प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक है बगलामुखी। मां भगवती बगलामुखी का महत्त्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमशः दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा (मध्यप्रदेश) में हैं। जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। तीन मुखों वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का यह मंदिर जिला आगरमालवा की तहसील नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है। ऐसी मान्यता है कि मध्य में मां बगलामुखी और दाएं मां लक्ष्मी और बाएं मां सरस्वती हैं। त्रिशक्ति मां का मंदिर भारत में और कहीं नहीं है। द्वापर युगीन यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है। यहां देश भर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं। मां भगवती बगलामुखी का यह मंदिर बीच श्मशान में बना हुआ है। देश के कई बड़े दिग्गज नेता अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए और संकट से रक्षा के लिए पूजा-पाठ और अनुष्ठान कराने आते हैं। आमजन भी अपनी मनोकामना पूरी करने या किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए यज्ञ-हवन और पूजा-पाठ करवाते हैं।
1100 रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें
इस मंदिर परिसर में माता बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव तथा सरस्वती भी विराजमान हैं। इस मंदिर की स्थापना महाभारत में विजय पाने के लिए भगवान् कृष्ण के निर्देश पर महाराजा युधिष्ठिर ने की थी। मान्यता यह भी है कि यहां की बगलामुखी प्रतिमा स्वयंभू है। इस मंदिर में बिल्व पत्र, चंपा, सफेद आंकड़ा, आंवला, नीम एवं पीपल के वृक्ष एक साथ स्थित हैं। मंदिर श्मशान क्षेत्र में होने के कारण यहां सामान्य दिनों में लोगों का आना-जाना कम ही होता है, लेकिन नवरात्रि में यहां पर भक्तों का हुजूम लगा रहता है। मां बगलामुखी मंदिर की प्रसिद्धि में वास्तुनुकूल भौगोलिक स्थिति की महत्त्वपूर्ण भूमिका है जो इस प्रकार है -
![PunjabKesari Baglamukhi Jayanti](https://static.punjabkesari.in/multimedia/07_01_210699059baglamukhi-mata-2.jpg)
मंदिर परिसर के बाहर पूर्व दिशा में काफी दूर तक ढ़लान है और ढ़लान के बाद पूर्व दिशा में ही एक नहर पश्चिम दिशा स्थित नदी से निकलकर दक्षिण दिशा होती हुई ईशान कोण की ओर जा रही है। इस प्रकार मंदिर परिसर के बाहर पूर्व दिशा नीची हो रही है। मंदिर परिसर के बाहर पार्किंग के बाद ईशान कोण में तीखा ढ़लान और बड़ा गड्ढ़ा है। वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा की नीचाई शक्ति और सफलता प्राप्त करने में सहायक होती है। मंदिर परिसर के अंदर ही पश्चिम दिशा में 7-8 फीट नीचे एक शेड़ बना है जिसके अन्दर कई यज्ञ कुण्ड बने हुए है जहां यज्ञ किए जाते हैं। इस शेड़ के बाद पश्चिम दिशा में ही मंदिर परिसर के बाहर पश्चिम दिशा में ही लखुन्दर नदी बह रही है। वास्तुशास्त्र के अनुसार पश्चिम दिशा की यह नीचाई यहां आने वाले भक्तों में गहरी धार्मिक आस्था उत्पन्न करने में सहायक होती है। जैसे उज्जैन शहर की पश्चिम दिशा में भी शिप्रा नदी बह रही है इसी कारण उज्जैन शहर धार्मिक नगरी के रूप में प्रसिद्ध है।
![PunjabKesari Baglamukhi Jayanti](https://static.punjabkesari.in/multimedia/07_01_145540319baglamukhi-mata-3.jpg)
बगलामुखी माता, नलखेड़ा के इस प्राचीन मंदिर में भक्तों की वैसी भीड़ का जमावड़ा नहीं होता जैसा दतिया स्थित बगलामुखी माता (मां पीताम्बरा देवी) के मंदिर में 12 महीनें देखने को मिलती है। इसका एकमात्र कारण है कि दतिया स्थित मंदिर की भौगोलिक स्थिति और परिसर में हुए निर्माण कार्य नलखेड़ा स्थित मंदिर की तुलना में ज्यादा वास्तुनुकूल है।
वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा
thenebula2001@yahoo.co.in
![PunjabKesari kundli](https://static.punjabkesari.in/multimedia/06_59_225786739kundli.jpg)