Edited By Jyoti,Updated: 10 Mar, 2021 07:35 PM
महाशिवरात्रि का पर्व देश में हर साल पूरे ज़ोरों शोरों से मनाया जाता है। इस दौरान तमाम मंदिरों में शिव भक्त उमड़े दिखाई देते हैं
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महाशिवरात्रि का पर्व देश में हर साल पूरे ज़ोरों शोरों से मनाया जाता है। इस दौरान तमाम मंदिरों में शिव भक्त उमड़े दिखाई देते हैं। हालांकि हम आपकी बता चुके हैं कोरोना के कारण कुछ प्राचीन शिव मंदिर बंद रहेंगे। इस दौरान खास रूप से शिव जी के ज्योतिर्लिंगों की आराधना की जाती है। जिनके बारे में लगभग लोग जानते भी हैं, परंतु इसके अलावा देश के कोने-कोने में इनके मंदिर बै। इन्हीं में से एक के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
आप में से लगभग हर शिव भक्त ने आज तक शिव जी के उन मंदिरों के बारे में जाना-सुना होगा जहां शिव जी अपने लिंग रूप में विराजमान होते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि शिव जी का एक ऐसा भी मंदिर है जहां शिव जी अपने बाल स्वरूप में विराजमान हैं। तो चलिए आपको बताते हैं इस शिव मंदिर के बारे में-
दरअसल हम बात कर रहे हैं उस शिव मंदिर की जो उत्तर भारत में स्थित है। कहा जाता है ये यहां का एकमात्र ऐसा मंदिर है जो दक्षिण मुखी है इसमें शिव शक्ति की जल लहरीपुरा दिशा को है। यहां शिव पार्वती एक साथ स्वयं रूप में जल लहरी के मध्य विराजमान हैं। मान्यता है कि महादेव को ये अद्भुत धाम अधिक प्रिय है। बता दें बागेश्वर धाम के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर सरयू नदी के संगम पर स्थित है जिसका पुरातत्विक दृष्टिकोण से काफी महत्व है।
पुरानी कथाओं के अनुसार बागेश्वर को मार्कंडेय ऋषि की तपोभूमि कहा जाता है भगवान शंकर यहां बाग रूप में निवास करते हैं ऐसी मान्यता है कि पहले इस जगह को व्याघ्रेश्वर नाम के नाम से जाना जाता था। बाद में इसके नाम को बदलकर बागेश्वर कर दिया गया ऐसा कहा जाता है कि नाथ मंदिर को चंद्रवंशी राजा लक्ष्मीचंद ने सन् 1602 में बनवाया था।
इस मंदिर के नजदीक ही बाणेश्वर मंदिर भी स्थित है, जो वास्तुकला की दृष्टि से समकालीन लगता है। इसके साथ ही यहां बाबा भैरव नाथ का मंदिर बना हुआ है लोकमत है कि बाबा भैरवनाथ इस मंदिर में भगवान शिव के द्वारपाल रूप में निवास करते हैं और यही सेवर पूरी दुनिया पर नजर रखे हुए हैं।
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा-
शिवपुराण कि मानस खंड के मुताबिक इस नगर को सेवर के गण जगदीश ने बसाया था ऐसा कहा जाता है कि महादेव की इच्छा के बाद ही इस नगर को बताया गया था। मंदिर पहले बहुत छोटा था जिसे बाद में चंद्रवंशी राजालक्ष्मी चंद्र ने सन् 1602 में भव्य रूप दिया। पुराणों में लिखा गया है अनादि काल में मुनि वशिष्ठ अपने कठोर तप बल से ब्रह्मा के कमंडल से निकली मां सरयू को ला रहे थे। परंतु जब वे इस जगह के समीप पहुंचे तो यहां पर ब्रह्म कपाली के पास मार्कंडेय ऋषि तपस्या में लीन थे। वशिष्ठ जी को उनकी तपस्या की भंग होने का खतरा सताने लगा। ऐसा कहा जाता है कि धीरे-धीरे वहां जलभराव होने लगा। सरयू नदी आगे नहीं बढ़ सकी। तब उन्होंने शिव जी की आराधना की तो महादेव ने स्वयं बाघ की रूप धारणकॉ किया और माता पार्वती को गाय बना दिया।
कथाओं के अनुसार महादेव ब्रह्म कपाली के पास गए और गाय पर झपटने का प्रयास किया। गाय के रंभाने से मार्कंडेय ऋषि की आंखें खुल गई। इसके बाद ऋषि बाघ को गाय से मुक्त करवाने के लिए दौड़े तो भागने महादेव और गाय ने माता पार्वती का रूप ले लिया। कथाओं के अनुसार इसके बाद भगवान भोलेनाथ तथा देवी पार्वती ने मार्कंडेय ऋषि को दर्शन देकर इच्छित वर दिया साथ ही साथ विशिष्ट को भी अपना आशीर्वाद प्रदान किया और बाद सरयू नदी आगे बढ़ सकी। यहां की लोकमत है कि बागनाथ मंदिर में मुख्य रूप से बेलपत्र से ही भोलेनाथ की पूजा की जाती है। खास तौर पर यहां कुमकुम, चंदन, और बताशा चढ़ाने की परंपरा है। तथा महादेव को खीर और खिचड़ी का भोग भी लगाया जाता है।