Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Jul, 2024 09:23 AM
हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के बैजनाथ उपमंडल में स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर विश्व भर के शिव भक्तों की आस्था का केंद्र है। यह मंदिर पठानकोट-मंडी से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां तक पहुंचने के
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Baijnath temple himachal pradesh: हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के बैजनाथ उपमंडल में स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर विश्व भर के शिव भक्तों की आस्था का केंद्र है। यह मंदिर पठानकोट-मंडी से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए दिल्ली से पठानकोट या चंडीगढ़-ऊना होते हुए रेलमार्ग, बस, निजी वाहन या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। हवाई जहाज से आने वाले श्रद्धालु गग्गल हवाई अड्डे पर उतरने के बाद टैक्सी द्वारा पहुंच सकते हैं।
Baijnath Himachal Pradesh: विश्व भर के शिव भक्त यहां भगवान शिव का आशीर्वाद लेने आते हैं। इस मंदिर से धौलाधार की वादियों का सौंदर्य देखते ही बनता है। यह मंदिर अपनी पौराणिक कथाओं, वास्तुकला और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं और उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण कार्य ‘आहुका’ और ‘ममुक’ नाम के दो व्यापारी भाइयों ने 1204 ई. में किया था।
Who built the Baijnath temple: एक प्रचलित मान्यता के अनुसार द्वापर युग में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण किया था किन्तु उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह आख्यान उचित प्रतीत नहीं होता है। इस मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थरों से किया गया है।
जनश्रुतियों के अनुसार लंका का राजा रावण, जोकि शिव जी का परम भक्त था, ने विश्व विजयी होने के उद्देश्य से भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की थी। इस तपस्या से भगवान शिव को अभिभूत करने के लिए रावण अपना सिर हवन कुंड में समर्पित करने वाला था, तभी भगवान शिव वहां प्रकट हुए और रावण से वर मांगने के लिए कहा।
रावण ने भगवान शिव से उसको साथ लेकर चलने की प्रार्थना की। उसके आग्रह पर भगवान शिव ने लिंग का रूप धारण कर लिया और रावण को उसे ले जाने को कहा किन्तु साथ ही शर्त रख दी कि वह उन्हें लंका पहुंचने तक कहीं भी रास्ते में न रखे। भगवान शिव ने रावण से कहा कि अगर यह शिवलिंग रास्ते में कही रख देगा तो वह उसी स्थान पर स्थापित हो जाएगा और उसका विश्व विजयी होने का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा। देवताओं ने रावण के इस निमित्त से घबराकर भगवान विष्णु से प्रार्थना की। श्री विष्णु ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करते हुए किसान का रूप धारण किया और मंदिर स्थल के समीप खेतों में काम करने लगे। रास्ते में थकने पर रावण विश्राम के लिए रुका तथा शिवलिंग पास में ही काम कर रहे उस किसान को पकड़ाते हुए उससे शिवलिंग को नीचे न रखने का आग्रह किया लेकिन किसान ने शिवलिंग को वहीं रख दिया। इस तरह शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित हो गया।
ज्ञातव्य है कि बैजनाथ में दशहरा नहीं मनाया जाता क्योंकि रावण शिव का प्रिय भक्त था। कहते हैं कि एक बार कुछ स्थानीय लोगों ने दशहरे के दौरान रावण का पुतला जलाया था और इसके बाद आयोजकों तथा उनके परिवारों को अनिष्ट झेलना पड़ा था। उसके बाद किसी ने भी यहां दशहरा मनाने की कोशिश नहीं की।
Baijnath temple history: एक अन्य प्रचलित मान्यता के अनुसार शिव नगरी बैजनाथ में किसी भी स्वर्णकार की दुकान नहीं है, जबकि पपथेला में स्वर्ण आभूषणों का काफी अच्छा कारोबार है। इसे भी शिव भक्त रावण की सोने की लंका से जोड़ कर देखते हैं।
शिव भक्तों के लिए बैजनाथ के समीप भगवान भोले शंकर के और भी कई मंदिर मौजूद हैं। इस मंदिर के अढ़ाई कोस की परिधि में चारों दिशाओं में भगवान शिव विभिन्न रूपों में मौजूद हैं। बैजनाथ के पूर्व में संसाल के समीप गुकुटेशवर नाथ, पश्चिम में पल्लिकेश्वर नाथ और दक्षिण में महाकाल के समीप महाकालेश्वर के रूप में भगवान शिव एक अन्य मंदिर में सिद्धेश्वर के रूप में विद्यमान हैं।
Shivling History Of Baijnath Temple: एक मान्यता के अनुसार कांगड़ा जिला में स्थापित शक्तिपीठों, मां ज्वाला जी, मां ब्रजेश्वरी तथा मां चामुंडा की पूजा अर्चना की जाती है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार श्रावण मास में सोमवार के दिन की गई पूजा-अर्चना का विशेष फल प्राप्त होता है। इसके अलावा मकर संक्रांति के पर्व पर शिवलिंग को देसी घी तथा सूखे मेवों से सजाया जाता है एवं अखरोटों की वर्षा की जाती है। महाशिवरात्रि का पर्व यहां भारी उत्साह, श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दौरान यहां धर्म और संस्कृति पर आधारित मेले का आयोजन किया जाता है जिसे जिला स्तरीय दर्जा हासिल है। इस दौरान स्थानीय तथा बाहरी राज्यों के कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।