Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Apr, 2024 07:36 AM
बैसाखी देश के विभिन्न भागों में रहने वाले लोग अलग-अलग तरह से मनाते हैं। पंजाब में भी इसे हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इसे मनाने के
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Baisakhi 2024: बैसाखी देश के विभिन्न भागों में रहने वाले लोग अलग-अलग तरह से मनाते हैं। पंजाब में भी इसे हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इसे मनाने के लिए सबसे पहले सिखों को श्री गुरु अमरदास जी ने प्रेरणा दी। गुरु जी ने भाई पारो जुलका को बैसाखी का पर्व मनाने का हुक्म करके संगत को इकट्ठा किया। एकत्रित संगत को अकाल पुरख का नाम सिमरन करने, हाथों से ‘किरत’ (श्रम) करने तथा बांट कर ‘छकने’ (खाने) के सिद्धांत पर डटे रहने की प्रेरणा दी।
गुरु हरगोबिंद साहिब ने सिखों को शस्त्रधारी होने की प्रेरणा दी। हाकिम, जो जालिमों का रूप धारण कर गए थे, उनसे रक्षा के लिए शस्त्रों की ही जरूरत थी। संगत बढ़िया शस्त्र एवं घोड़े लेकर पहुंचने लगी।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने बैसाखी वाले दिन भरे दीवान में से पांच प्यारों की मांग की। बिना किसी जात-पात, ऊंच-नीच के भेद से इन पांच प्यारों से खालसा पंथ का जन्म हुआ जो हर बड़ी से बड़ी मुसीबत के आगे डट कर खड़ा हो सकता है।
गुरु साहिबान से प्राप्त शिक्षा तथा हक-सच के लिए मर-मिटने की प्रेरणा के कारण खालसा पंथ ने बड़ी से बड़ी कुर्बानी दी। 1733 ई. की बैसाखी को जकरिया खान ने खालसे की चढ़त के आगे घुटने टेकते हुए गुरु पंथ को नवाबी की पेशकश की जिसको खालसा पंथ ने अहम विचार करके कबूल किया था। 1747 ई. में बैसाखी के दिवस पर एकत्रित खालसा पंथ ने रामरौणी की कच्ची गढ़ी बनाने के लिए सहमति प्रकट की थी। यह गढ़ी सिखों के लिए कई बार पनाह का स्थान सिद्ध हुई।
अंग्रेजों का राज पंजाबियों के लिए फिर से संघर्ष का कारण बना। उनके अत्याचारों के विरोध में 1919 ई. की बैसाखी को जलियांवाला बाग में जलसा किया गया। निहत्थे लोगों पर अंग्रेज जनरल डायर ने गोलियों की बौछार कर दी। हजारों लोग शहादत प्राप्त कर गए।
इस घटना से प्रभावित होकर अपने देश के लिए मर-मिटने वाले देश भक्तों ने संघर्ष की राह पकड़ी। इनके जोश ने अंग्रेजों को भारत छोड़ जाने के लिए मजबूर कर दिया।
(कुछ अंश ‘गुरमत ज्ञान’ से साभार)