Bal Gangadhar Tilak birth anniversary: ‘स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Jul, 2020 06:53 AM

bal gangadhar tilak birth anniversary

बाल गंगाधर तिलक का नाम स्वतंत्रता आंदोलन में हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है। उनके बचपन का नाम बलवंत राव था। बाद में उन्हें लोकमान्य की उपाधि मिली। उनका जन्म महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश (रत्नागिरि) के

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Bal Gangadhar Tilak birth anniversary: बाल गंगाधर तिलक का नाम स्वतंत्रता आंदोलन में हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है। उनके बचपन का नाम बलवंत राव था। बाद में उन्हें लोकमान्य की उपाधि मिली। उनका जन्म महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश (रत्नागिरि) के चिखली गांव में 23 जुलाई 1856 को हुआ था। पिता गंगाधर रामचंद्र तिलक एक ब्राह्मण थे। तिलक कांग्रेस में गर्म दल के नेता थे और उन्होंने ‘स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’ का नारा दिया था। लोकमान्य तिलक आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने पहले थे। उन्होंने पत्रकारिता जगत में राष्ट्रीय मूल्यों को स्थापित करने के लिए जिस साहस, संघर्ष और बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया था उनकी जरूरत आज भी महसूस होती है।

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बाल गंगाधर तिलक बचपन से ही अत्यंत मेधावी थे। अंग्रेज सरकार की नीतियों के विरोध के चलते एक समय उन्हें मुकद्दमे और उत्पीडऩ का सामना करना पड़ा। साल 1897 में पहली बार तिलक पर राजद्रोह का मुकद्दमा चला और उन्हें जेल भेज दिया गया। इस मुकद्दमे और सजा के चलते उन्हें लोकमान्य की उपाधि मिली। स्वतंत्रता आंदोलन में हजारों लोगों के लिए आदर्श लोकमान्य तिलक एक उदारवादी हिन्दुत्व के पैरोकार थे। इसके साथ ही वह कट्टरपंथी माने जाने वाले लोगों के भी आदर्श थे। धार्मिक परम्पराओं को  स्थान विशेष से उठाकर राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने की अनोखी कोशिश करने वाले तिलक सही मायने में लोकमान्य थे।

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ब्रिटिश काल में किसी भी हिन्दू सांस्कृतिक कार्यक्रम या उत्सव को साथ मिलकर या एक जगह इकट्ठा होकर नहीं मना सकते थे। पहले लोग घरों में ही गणेशोत्सव मनाते थे और गणेश विसर्जन करने का कोई रिवाज नहीं था। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में पुणे में पहली बार सावर्जनिक रूप में गणेशोत्सव मनाया। आगे चल कर उनका यह प्रयास एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में इस गणेशोत्सव ने लोगों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज गणेशोत्सव एक विराट रूप ले चुका है। विभिन्न क्रांतिकारियों ने भी पत्रकारिता के माध्यम से स्वदेशी, स्वराज्य एवं स्वाधीनता के विचारों को जनसामान्य तक पहुंचाने का कार्य किया। लोकमान्य तिलक क्रांतिधर्मी पत्रकार थे, जिन्होंने पत्रकारिता और स्वाधीनता तथा स्वदेशी के आंदोलन को एक-दूसरे के पूरक के रूप में विकसित किया था।

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लोकमान्य तिलक पत्रकारिता जगत के लिए प्रेरणा पुंज हैं जिन्होंने पत्रकारिता को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति एवं जनसेवा के एक प्रमुख उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया। ऐसे लोगों में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। ‘लोकमान्य’ तिलक एक निर्भीक संपादक  भी थे। उन्होंने केसरी और ‘मराठा’ अखबारों की शुरूआत की। तिलक के लेख आजादी के दीवानों में एक नई ऊर्जा का संचार करते थे। इसके लिए उन्हें कई बार अंग्रेजों ने जेल भी भेजा था हालांकि वह कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे लेकिन कई मौकों पर उन्होंने अपनी पार्टी की नीतियों के विरोध में भी लिखा। तिलक को कांग्रेस के नरम दलीय नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा। महात्मा गांधी ने लोकमान्य को आधुनिक भारत का निर्माता और पंडित नेहरू ने भारतीय क्रांति के जनक की उपाधि से नवाजा था।

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