Edited By Jyoti,Updated: 31 Oct, 2019 02:13 PM
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31 अक्टूबर यानि आज से हिंदू धर्म का महापर्व कहा जाने वाला वाले त्यौहार का प्रारंभ हो गया है। विशेष तौर पर ये त्यौहार सूर्य भगवान को समर्पित है।
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31 अक्टूबर यानि आज से हिंदू धर्म का महापर्व कहा जाने वाला वाले त्यौहार का प्रारंभ हो गया है। विशेष तौर पर ये त्यौहार सूर्य भगवान को समर्पित है। बता दें धार्मिक ग्रंथों में तमाम देवी-देवताओं की तरह इन्हें यानि सूर्य देव को भी प्रमुख देवता माना जाता है। परंतु समस्त देवताओं की तरह इनके देश में मंदिर कम पाए जाते हैं। लेकिन इन मंदिरों की अपनी एक विशेषता है। इतना ही नहीं ये सभी मंदिर भव्य होने के साथ-साथ अद्भुत भी है। छठ पर्व के इस खास मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं भगवान सूर्य देव जिनकी गाथा सूर्य देव के बाकि मंदिरों से बहुत अलग है। हम बात करे रहे हैं मध्यप्रदेश के दतिया ज़िले से 17 किलोमीटर दूर उन्नाव में स्थित बाला जी सूर्य मंदिर की, जिसे बह्यन्य देव के नाम से जाना जाता है।
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बताया जाता है पहुज नदी के पास आकर्षक पहाड़ियों के बीच बसे इस सूर्य मंदिर पर सूर्योदय की पहली किरण सीधे परिसर के गर्भगृह में स्थित प्रतिमा पर पड़ती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मुलातान का सूर्य मंदिर और यह मंदिर दोनों गुर्जर कुषांण वंशीय महाराजा धिराज श्रीमान कनिष्क के समय हैं। जिसकी खासियत कुछ ऐसी ही है कि सुनने वाले को शायद अपने कानों पर और पढ़ने वाले को अपनी आंखों पर विश्वास न हो।
वो विशेषता कुछ इस प्रकार है कि यहां पानी के नहीं बल्कि घी के कुएं भरे हैं, वो भी एक नहीं दो नहीं बल्कि पूरे नौ कुएं। जी हां, यहां पानी नहीं घी के कुएं हैं। जो इस मंदिर को ऐतिहासिक होने के साथ-साथ अधिक प्राचीन बनाता है।
लोक मान्यता की मानें तो यहां पिछले 50 सालों में आने वाले श्रद्धालुओं के द्वारा इतना घी चढ़ाया जा चूका है कि इस चढ़ावे को रखने के लिए एक नहीं, दो नहीं बल्कि पूरे नौ कुओं का निर्माण करवाना पड़ा। कहते हैं कि इस मंदिर में ये घी चढ़ाने की परंपरा करीब 400 साल पहले शुरू हुई थी। यहां मकर संक्रांति, बंसत पंचमी, रंग पंचमी और डोल ग्यारस पर ही काफ़ी मात्र में शुद्ध घी चढ़ावे में आ जाता है। हर मौके पर भक्त 10 क्विंटल से ज्यादा घी चढ़ाकर जाते हैं।
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मान्यता हैं कि घी के चढ़ावे में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी करने पर उन्हें शाप लगता है और कुष्ठ और चर्म रोग आदि बीमारियां हो जाती हैं। अतः मंदिर में चढ़ाया जाने वाले घी में किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं होती। उन्नाव स्थित बालाजी सूर्य मंदिर में प्रतिदिन अखंड ज्योति के लिए आठ किलो घी का उपयोग किया जाता है, जबकि एक दिन में 17 किलो से अधिक का घी चढ़ावे में आता है। इस प्रकार सप्ताह में यहां सवा क्विंटल घी इकठ्ठा हो जाता है। वर्ष का सारा चढा़वा मिलाकर लगभग आठ टन का भंडार हो जाता है। कहते हैं कि घी को इकट्ठा करने के लिए पहले एक कुआं बनवाया गया, जब वह भर गया तो दूसरा। इस तरह धीरे-धीरे करते यहां पूरे नौ कुओं का निर्माण करवा दिया गया।
मंदिर के पुजारी के मुताबिक, घी रखने के लिए पहले ज़मीन में लोहे के टैंक की तरह सात कुएं बनवाए गए। हर कुएं की लंबाई-चौड़ाई सात फीट और गहराई आठ फीट थी। सातों कुएं जब घी से पूरी तरह लबालब भर गए तब मंदिर के प्राचीन कुएं को पक्का करके उसमें घी भरा गया। इसके पश्चात लगभग 20 फीट गहरा और 10 फीट लंबा-चौड़ा एक और कुआं भी खोदा गया।
बालाजी मंदिर के प्रति आस्था रखने वाले लोगों का मानना है कि परिसर में स्थापित प्रतिमा पर जल चढ़ाने से असाध्य रोग से पीडि़त व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है एवं नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख मिलता है।
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मंदिर से जुड़ी विभिन्न किंदंतियों के अनुसार मंदिर के निकट ही एक पवित्र जलकुण्ड है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इस जल से स्नान करने पर तमाम दु:ख-दर्द मिट जाते हैं। यहां आने वाले नि:संतान दंपत्तियों को संतान का सुख मिलता है। इस मंदिर में आस्था रखने वालों का मानना है कि जिस दंपत्ति को संतान प्राप्ति न हो रही हो अगर वो सूर्य देव के इस मंदिर में सच्चे मन से पूजा करें तो बहुत जल्द उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है।