Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Jan, 2022 10:01 AM
मथुरा के निकट एक गांव में छोटी लड़की रहती थी। वृन्दावन के निकट होने के कारण वहां से बहुत लोग ठाकुर जी के दर्शनों को जाते थे। जब वो छोटी बच्ची 5 साल की हुई तो उसके घर वाले बांके बिहारी जी के
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Bankey Bihari ke Chamatkar: मथुरा के निकट एक गांव में छोटी लड़की रहती थी। वृन्दावन के निकट होने के कारण वहां से बहुत लोग ठाकुर जी के दर्शनों को जाते थे। जब वो छोटी बच्ची 5 साल की हुई तो उसके घर वाले बांके बिहारी जी के दर्शन के लिए जा रहे थे। उस समय वाहन बहुत कम थे। उनको दर्शन को जाते देख उस छोटी लड़की ने कहा, “पिता जी मुझे भी अपने साथ ठाकुर जी के दर्शनों के लिए ले चलो।”

पिता जी ने कहा, "बेटा ! अभी आप छोटे हो इतना चल नहीं पाओगे, थोड़े बड़े हो जाओ तब तुम्हें साथ में ले चलेंगे।"
कुछ समय बीता, जब वो 7 साल की हुई तो फिर घरवालों का किसी कारणवश वृन्दावन जाना हुआ। फिर उस बच्ची ने कहा, “पिता जी अब मुझे भी साथ ले चलो, ठाकुर जी के दर्शनों के लिए।”
लेकिन किसी कारणवश वो उसको न ले जा सके। बच्ची के मन में ठाकुर जी के प्रति बहुत प्रगाढ़ प्रेम था। वह बस उनका मन से चिंतन करती रहती थी और दुखी भी होती थी की ठाकुर जी के दर्शनों को न जा सकी आज तक। गांव में उसके सभी सहपाठी प्रभु जी के दर्शन कर चुके थे। जब वो सब ठाकुर जी के मंदिर और उनके रूप का वर्णन करते तो इस बच्ची के मन में दर्शन की ललक और भी बढ़ जाती।
समय अपने पंख लगा के बढ़ता गया। कईं अवसर मिले जाने के पर शायद उसके भाग्य में ठाकुर जी के दर्शन नहीं लिखे थे। जब वो 17 साल की हुई तो उसके पिताजी कोे उसके विवाह की चिंता हो गयी। उसका विवाह तय हो गया। संयोग कहो या उसका ठाकुर जी के प्रति प्रेम, उसका विवाह वृन्दावन के सबसे पास वाले गांव में हो गया।
वह लड़की बहुत प्रसन्न थी की अब तो उसको भी ठाकुर जी के दर्शन होंगे। जब विवाह संपन्न हुआ तो वह अपने ससुराल गयी। फिर रस्म निभाने के लिए वापस अपने घर आई। एक दो दिन बाद वो और उसके पति जब वापस अपने घर जा रहे तो बीच में यमुना नदी पर उसके पति बोले, “तुम कुछ देर इधर बैठो में यमुना में स्नान करके आता हूं।”

उस लड़की का चिंतन अब ठाकुर जी की तरफ चला गया और सोचने लगी की कब ठाकुर जी के दर्शन होंगे। उस लड़की ने लंबा घूंघट निकाल रखा है क्योंकि गांव है, ससुराल है और वही बैठ गई। फिर वो मन ही मन विचार करने लगी "देखो ! ठाकुर जी की कितनी कृपा है। उन्हें मैंने बचपन से भजा और दर्शन के लिए लालायित थी, उनकी कृपा से अब मेरा विवाह श्रीधाम वृंदावन में ही हो गया।
मैं इतने सालों से ठाकुर जी को मानती हूं पर अब तक उनसे कोई भी रिश्ता नहीं जोड़ा ?"
फिर सोचने लगी,"ठाकुर जी की उम्र क्या हो सकती है ? मेरे हिसाब से लगभग 17 वर्ष के ही होंगे, मेरे पति 21 वर्ष के हैं, उनसे थोड़े ही छोटे होंगे इसलिए वो मेरे पति के छोटे भाई की तरह हुए तो मेरे देवर की तरह, लो आज से ठाकुर जी मेरे देवर होंगे।"
अब तो ठाकुर जी से नया सम्बन्ध जोड़कर उसको बहुत प्रसन्नता हुई और मन ही मन उनसे कहने लगी “ठाकुर जी ! आज से मैं आपकी भाभी और आप मेरे देवर हो गए पर वो समय कब आएगा जब आप मुझे भाभी–भाभी कह कर पुकारोगे ?”

जब वो किशोरी ये सब सोच ही रही थी, तभी एक किशोरवस्था का सांवला सा लड़का उधर आ गया और कहने लगा “भाभी-भाभी” लड़की अचानक अपने भाव से बाहर आई और सोचने लगी “वृंदावन में तो मैं नई हूं, ये भाभी कहकर कौन बुला रहा है ?”
वो नई थी इसलिए घूंघट उठाकर भी नहीं देखा कि गांव के किसी बड़े-बूढ़े ने देख लिया तो बड़ी बदनामी होगी। जब वह बालक बार – बार कहता पर वह उत्तर ही न देती। बालक उसके और पास आया और कहा “ भाभी! नेक अपना चेहरा तो देखाय दे।”
अब वह सोचने लगी “अरे ये बालक तो बहुत जिद कर रहा है।” इसलिए उसने और कस के अपना घूंघट पकड़कर बैठ गई कि कही घूंघट उठाकर देख न ले।”
“भाभी आपने ये पर्दा क्यों कर रखा है”, हम तो आपके देवर हैं।
उस लड़की ने उसको एक नज़र देखा फिर कहा, “नहीं हम आपको नहीं जानते” और घूंघट ओढ़ लिया।
“नहीं-नहीं हम आपको जानते हैं, आप उस गांव के हो न बस कुछ ही दूर में हमारा घर है। भाभी अपना चेहरा तो दिखाओ।
“जब कह दिया न हम आपको नहीं जानते, इनको पता चल गया तो बहुत मार पड़ेगी”
“भाभी आप तो नाराज़ हो रही हो, देखो हम आपके इतने प्यारे देवर हैं, आप से मिलने के लिए इतनी दूर तक आ गए और आप हो की बात भी नहीं कर रहे हो। क्यों आप हम से मिलना नहीं चाहते थे।”
और इतना कहते ही उस लड़के ने घूंघट खींच लिया और चेहरा देखा और भाग गया। थोड़ी देर में उसका पति भी आ गया, उसने अपने पति को सब बात कही।
पति बोला, “चिंता मत करो, वृंदावन बहुत बड़ा थोड़े ही है, कभी भी किसी गली में लड़का मिल गया तो हड्डी–पसली एक कर दूंगा। फिर कभी भी ऐसा नहीं कर सकेगा। तुम्हे जब भी और जहां भी दिखे, मुझे जरुर बताना।” फिर दोनों घर चले गए।
कुछ दिन बाद उसकी सासु मां ने अपने बेटे से कहा – “बेटा ! देख तेरा विवाह हो गया अब बहू मायके से भी आ गई, पर तुम दोनों अभी तक बांके बिहारी जी के दर्शन के लिए नहीं गए। कल तुम जाकर बहू को ठाकुर जी के दर्शन कराकर लाना।”
अगले दिन दोनों पति और पत्नी ठाकुर जी के दर्शन के लिए मंदिर जाते हैं। मंदिर में बहुत भीड़ थी, लड़का कहने लगा – “ देखो ! तुम स्त्रियों के साथ आगे जाकर दर्शन करो, मैं आता हूं”।

जब वो आगे गई पर घूंघट नहीं उठाती, उसको डर लगता कोई बड़ा-बूढ़ा देखेगा तो कहेगा की नई बहू घूंघट के बिना ही घूम रही है। बहूत देर हो गई तो पीछे से पति ने आकर कहा “अरी बावली! ठाकुर जी सामने हैं, घूंघट काहे को नाय खोले, घूंघट नाय खोलेगी तो प्रभु जी के दर्शन कैसे करेगी ?”
अब उसने अपना घूंघट उठाया और जो बांके बिहारी जी की ओर देखा तो बांके बिहारी जी कि जगह वो ही बालक मुस्कुराता हुआ दिखा तो वह चिल्लाने लगी “सुनिये ओजी जल्दी आओ ! जल्दी आओ !”
पति जल्दी से भागा–भागा आया और बोला “क्या हुआ ?”
लड़की बोली “ उस दिन जो मुझे भाभी-भाभी कह कर भागा था न वह लड़का मिल गया।”
पति ने कहा, “कहां है ? अभी उसे देखता हूं बता तो जरा।”
उसने ठाकुर जी की ओर इशारा करके बोली, “ये रहा आपके सामने ही तो है।”
उसके पति ने जब देखा तो अवाक ही रह गया और वही मंदिर में ही अपनी पत्नी के चरणों में गिर पड़ा और बोला “तुम बहुत ही धन्य हो वास्तव में तुम्हारे ह्रदय में सच्चा भाव ठाकुर जी के प्रति है। हम इतने वर्षों से वृंदावन में हैं पर आज तक हमें उनके दर्शन नहीं हुए और तेरा भाव इतना उच्च है कि ठाकुर जी ने तुझे दर्शन दे दिए।”
ठाकुर जी से सच्चे प्रेम से जो भी रिश्ता बनाओ तो ठाकुर जी उसे जरूर निभाते हैं जैसे इस कहानी में ठाकुर जी ने देवर का संबंध निभाया।
- राजू गोस्वामी
सेवाधिकारी श्री बांके बिहारी मंदिर
श्री वृंदावन धाम
