सत्गुरु बावा लाल दयाल जयंती की धूम पूरे देश में

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Feb, 2019 10:35 AM

bawa lal dayal jayanti

परम सिद्ध योगीराज सत्गुरु बावा लाल दयाल की 664वीं जयंती की धूम पूरे देश में देखी जा रही है। मुख्य आयोजन श्री ध्यानपुर धाम में शुरू हो गए हैं, जिसके तहत पूरे क्षेत्र ने मेले-सा स्वरूप धारण कर लिया है। जगह-जगह संगत के लिए लंगर और स्वागती द्वार दिखाई...

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जालंधर (स.ह.): परम सिद्ध योगीराज सत्गुरु बावा लाल दयाल की 664वीं जयंती की धूम पूरे देश में देखी जा रही है। मुख्य आयोजन श्री ध्यानपुर धाम में शुरू हो गए हैं, जिसके तहत पूरे क्षेत्र ने मेले-सा स्वरूप धारण कर लिया है। जगह-जगह संगत के लिए लंगर और स्वागती द्वार दिखाई दे रहे हैं। श्री ध्यानपुर धाम के गद्दीनशीन महंत श्री राम सुंदर दास के निर्देशों पर विशेष सत्संग व आरती का आयोजन होगा। देशभर से श्रद्धालुओं का श्री ध्यानपुर धाम पहुंचना निरंतर जारी है। इसके अलावा देश के कई शहरों में स्थित लालद्वारों व बावा लाल दयाल जी की गद्दियों में जयंती संबंधी विशेष कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं।

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सत्गुरु बावा लाल दयाल का जीवन वृत्तांत
सत्गुरु बावा लाल दयाल का जन्म सन् 1355 ई. के माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को लाहौर से 53 कोस दूर स्थित ब्यास नदी पर बसे कस्बे कसूर में गांव के पटवारी भोलामल के आंगण में हुआ। नन्हे बालक ने धर्म परायणता, संस्कारशीलता जैसे अद्वितीय गुण अपनी माता कृष्णा देवी से प्राप्त किए। बचपन में ही इस बालक के मुखमंडल पर अलौकिक प्रभामंडल विराजमान था, जिसे देख माता-पिता ने विद्वान ज्योतिषी को बुलवाया जिसने भविष्यवाणी की कि यह लाल सामान्य बालक नहीं बल्कि आध्यात्म के मार्ग पर चल कर यह स्वयं तो मोक्ष प्राप्त करेगा ही, आने वाली पीढिय़ों का भी मार्गदर्शन करके उन्हें मुक्ति का मार्ग दिखाएगा।

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ज्योतिषी की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। यही नन्हा बालक आगे चल कर परम सिद्ध, परम तपस्वी, ज्ञानी, योगीराज तथा परमहंस जैसी उपाधियों से अलंकृत हुआ। बावा लाल दयाल ने अपनी योग शक्ति द्वारा 300 वर्ष का सुदीर्घ जीवन प्राप्त किया। ऐसा माना जाता है कि हर 100 साल बाद आप योग शक्ति के बल पर बाल रूप धारण कर लेते थे। आपके तेज और विद्धवता का ही प्रभाव था कि शहंशाह का पुत्र दारा शिकोह भी आपका शिष्य बना।

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बचपन में ही बावा लाल दयाल ने विलक्षण बुद्धि के बल पर गुरमुखी, फारसी, संस्कृत इत्यादि भाषाओं के साथ वेद, उपनिषद और रामायण इत्यादि ग्रंथ कंठस्थ कर लिए। एक बार गऊएं चराते-चराते आपका मिलन महात्माओं की एक टोली से हुआ। इस टोली के प्रमुख महात्मा अपने पैरों का चूल्हा बनाकर उस पर चावल बना रहे थे। बालक लाल ने उत्सुकतापूर्वक यह दृश्य देखा और महात्माओं के चरण स्पर्श किए। महात्माओं ने चावलों के 3 दाने प्रसाद रूप में बालक लाल को दिए। यह प्रसाद ग्रहण करते ही हृदय और मस्तिष्क में अपूर्व ज्योति प्रज्वलित हुई और मोह-माया के तमाम बंधन छूट गए। परमात्मा के मिलन की चाह लेकर बालक लाल सद्गुरु की तलाश में अनजान दिशा की ओर चल पड़ा।

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सत्गुरु बावा लाल दयाल ने भारत के अनेक तीर्थ स्थलों का दर्शन करने के अलावा अफगानिस्तान और अन्य क्षेत्रों में भी भ्रमण किया। केदारनाथ धाम और हरिद्वार में लंबी तपस्या की। अंतिम चरण में आपने जिला गुरदासपुर के कलानौर कस्बे को अपना डेरा बनाया और नदी किनारे तपस्या करने लगे। यहीं आपने कायाकल्प करके 16 वर्षीय बालक का रूप धारण कर लिया। जहां एक बार इनका शिष्य ध्यानदास इन्हें एक टीले पर ले गया। यह स्थान बावा लाल दयाल जी को काफी भाया और आपने इसे अपना डेरा बना लिया। ध्यानपुर धाम में ही सत्गुरु बावा लाल दयाल विक्रमी सम्वत् 1712 में ब्रह्मलीन हुए। सत्गुरु बावा लाल दयाल के देश-विदेश में बसे करोड़ों श्रद्धालुओं ने जगह-जगह लालद्वारे स्थापित कर रखे हैं।

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महंत राम सुंदर दास
सत्गुरु बावा लाल दयाल की गद्दी के वर्तमान महंत श्री राम सुंदर दास जी 1 नवम्बर, 2001 को गद्दीनशीन हुए, इन 17 सालों में महंत राम सुंदर दास जी ने न केवल श्री ध्यानपुर धाम में अभूतपूर्व विकास करवाया है बल्कि हरिद्वार, वृंदावन और अन्य स्थानों पर भी सत्गुरु बावा लाल दयाल के सेवकों हेतु अभूतपूर्व सुविधाओं का इंतजाम किया है। महंत राम सुंदर दास जी के नेतृत्व में श्री ध्यानपुर धाम में न केवल नए व विशाल सत्संग हाल का निर्माण हुआ है बल्कि असंख्य नए कमरे बने हैं तथा पार्किंग का अच्छा इंतजाम कर दिया गया है।
 

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