Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Feb, 2024 08:07 AM
देश-विदेश में करोड़ों परिवारों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र सत्गुरु बावा लाल दयाल का जन्म 1355 ई. में मोहम्मद तुगलक के शासनकाल दौरान माघ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को लाहौर से 53 मील दूर कस्बे कसूर में
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Satguru Bawa Lal Dayal 669th birth anniversary: देश-विदेश में करोड़ों परिवारों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र सत्गुरु बावा लाल दयाल का जन्म 1355 ई. में मोहम्मद तुगलक के शासनकाल दौरान माघ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को लाहौर से 53 मील दूर कस्बे कसूर में पटवारी भोलामल के घर हुआ। बालक को आध्यात्मिक गुण अपनी माता कृष्णा देवी से प्राप्त हुए। बचपन में ही वह संतों-महात्माओं के संग में प्रसन्न रहते थे। बचपन में ही बावा लाल दयाल ने गुरमुखी, फारसी, संस्कृत इत्यादि भाषाओं का ज्ञान अर्जित कर लिया तथा वेद, उपनिषद् और रामायण इत्यादि ग्रंथ भी कंठस्थ कर लिए।
एक बार गऊएं चराते-चराते आपका मिलन महात्माओं की एक ऐसी टोली से हुआ, जिसके प्रमुख महात्मा अपने पैरों का चूल्हा बनाकर उस पर चावल बना रहे थे। बालक लाल ने जब यह दृश्य देखा तो महात्माओं के चरण स्पर्श किए, जिन्होंने चावलों के तीन दाने प्रसाद रूप में बालक लाल को दिए। यह प्रसाद ग्रहण करते ही मन में मोह-माया के तमाम बंधन छूट गए और परमात्मा की खोज में वह कैलाश पर्वत स्थित मानसरोवर के साथ-साथ बद्रीनाथ, केदारनाथ के दौरे पर निकल गए। इन क्षेत्रों में उन्हें अध्यात्म की प्राप्ति हुई और यहीं उन्होंने वर्षों तक तपस्या भी की और समाधि अवस्था में भी रहे।
कहते हैं कि बावा लाल दयाल ने अपनी योग शक्ति के बल पर 300 वर्ष का सुदीर्घ जीवन प्राप्त किया। माना जाता है कि हर 100 साल बाद आप योग शक्ति से बाल रूप धारण कर लेते थे। आपके तेज और विद्वता से प्रभावित होकर मुगल शासक शाहजहां का पुत्र दारा शिकोह भी आपका शिष्य बना।
सत्गुरु बावा लाल दयाल ने भारत के अनेक तीर्थ स्थलों का भ्रमण किया और अफगानिस्तान तक अपने ज्ञान से लोगों का मार्गदर्शन किया। केदारनाथ धाम और हरिद्वार में लंबी तपस्या की।
1494 के आसपास आपने जिला गुरदासपुर के कलानौर कस्बे को अपना डेरा बना लिया और नदी के किनारे तपस्या करने लगे। यहीं आपने योगशक्ति के बल पर अपना कायाकल्प किया और विकृत तथा जीर्ण-शीर्ण काया से मुक्ति पाकर 16 वर्षीय बालक का रूप धारण कर लिया। यह दृश्य संत दादूदयाल के शिष्य ध्यानदास ने देख लिया और अत्यंत प्रभावित हुआ।
बावा लाल दयाल ने उसे अपना शिष्य बनाया और ध्यानदास को कुटिया के लिए कोई शांत स्थान ढूंढने की जिम्मेदारी दी। वह इन्हें पास ही स्थित एक टीले पर ले गया। यह स्थान बावा लाल दयाल जी को काफी अच्छा लगा और यहीं इन्होंने अपनी कुटिया बना ली। बाद में ध्यानदास के नाम के कारण यह स्थान ध्यानपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ध्यानपुर धाम में ही सत्गुरु बावा लाल दयाल विक्रमी सम्वत् 1712 में ब्रह्मलीन हुए।
ध्यानपुर को भव्य स्वरूप देने का श्रेय महंत रामसुंदर दास जी को सत्गुरु बावा लाल दयाल की 15वीं गद्दी पर 1 नवम्बर, 2001 को गद्दीनशीन हुए वर्तमान महंत श्री राम सुंदर दास जी ने न केवल श्री ध्यानपुर धाम में अभूतपूर्व विकास करवाया बल्कि दिल्ली, हरिद्वार, वृंदावन और अन्य स्थानों पर भी सत्गुरु बावा लाल दयाल के सेवकों हेतु अच्छी सुविधाओं का इंतजाम किया।
उनके नेतृत्व में श्री ध्यानपुर धाम में न केवल नए व विशाल सत्संग हाल और लंगर हाल का निर्माण हुआ, बल्कि असंख्य नए कमरे भी बने तथा पार्किंग का भी अच्छा प्रबंध कर दिया गया।
सत्गुरु बावा लाल दयाल की 669वीं जयंती पर होंगे विशेष क्रार्यक्रम- इस बार सत्गुरु बावा लाल दयाल की 669वीं जयंती 11 फरवरी, 2024 को देश-विदेश में मनाई जा रही है। इस संबंधी आयोजन सभी लालद्वारों में होंगे। मुख्य आयोजन श्री ध्यानपुर धाम में गद्दीनशीन महंत राम सुंदर दास जी की अध्यक्षता में होगा, जहां इसकी शुरुआत शोभायात्रा निकालने से हो चुकी है। 11 फरवरी को ध्यानपुर में सारा दिन विशेष सत्संग व शाम को आरती का आयोजन होगा।