Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Sep, 2024 07:11 AM
मान्यतानुसार पितृपक्ष के 16 दिनों में पूर्वज अपने वंशजों से ये आशा रखते हैं की उनके वंशज उन्हें पिण्ड दान व तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ पूर्वजों का पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आगमन होता है। पितृ ऋण श्राद्धकर्म के द्वारा चुकाया जा...
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Pitru Paksha 2024: मान्यतानुसार पितृपक्ष के 16 दिनों में पूर्वज अपने वंशजों से ये आशा रखते हैं की उनके वंशज उन्हें पिण्ड दान व तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ पूर्वजों का पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आगमन होता है। पितृ ऋण श्राद्धकर्म के द्वारा चुकाया जा सकता है। साल के किसी भी मास व तिथि में मृत पितृ हेतु पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय अर्थात पितृपक्ष का प्रारंभ भी माना जाता है। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्ष भर तक प्रसन्न रहते हैं। पितृ के निमित पिण्ड दान करने वाला वंशज दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, सुख-साधन की प्राप्ति करता है।
Shraddha ceremony at home: इस लेख के माध्यम से हम सभी पाठकों को पितृपक्ष से जुड़ी विशेष जानकारी दे रहे हैं जिसका ज्ञान श्राद्ध से पूर्व होना बहुत जरूरी है। क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी देते हैं।
श्राद्धकर्म में श्रद्धा, शुद्धता, स्वच्छता व पवित्रता पर विशेष ध्यान देना चाहिए, इनके अभाव में श्राद्ध निष्फल हो जाता है।
श्राद्ध कर्म में उसी शहर ग्राम या इलाके में रहने वाली बहन, जमाई व भानजे को श्राद्ध का भोजन कराना आवश्यक है।
शास्त्रनुसार नवमी तिथि माता-श्राद्ध हेतु उत्तम मनी गई है अतः स्त्रियों का श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए।
श्राद्धकर्म में पितृ की तृप्ति ब्राह्मणों से ही होती है। अतः पितृकार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन आवश्यक है।
श्राद्धकर्म दूसरे की भूमि पर नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर पर श्राद्ध किया जा सकता है।
श्राद्ध कर्म में केले के पत्ते पर करवाना निषेध है। पत्रों के अभाव में पत्तल का उपयोग किया जा सकता है।
श्राद्धकर्म में याचक भिखारी को भी भोजन करवाना चाहिए, न करवाने पर श्राद्धकर्म का फल नष्ट हो जाता है।
श्राद्धकर्म के भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता व चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालना चाहिए।
श्राद्धकर्म में ब्राह्मण भोजन आवश्यक है, इसमें पितृ के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है।
श्राद्धकर्म सदैव आठवें मुहूर्त अर्थात कुतपकाल में दोपहर 12 बजे से 2 बजे के बीच करना चाहिए।
श्राद्धकर्म में पिण्ड दान आवश्यक है इसमें चावल या जौ के पिण्ड बनाकर दान किए जाते हैं।
श्राद्धकर्म में रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ माने जाते हैं।
शस्त्र आदि से मारे गए पितृ का श्राद्ध मुख्य तिथि के अलावा चतुर्दशी को भी करना चाहिए।
श्राद्धकर्म में अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के लिए चांदी के बर्तनों का उपयोग श्रेष्ठ माना जाता है।
श्राद्धकर्म ब्राह्मण भोज आवश्यक है, ब्राह्मण हीन श्राद्ध में पितृ भोजन स्वीकार नहीं करते।
श्राद्धकर्म में वस्त्रदान आवश्यक है इससे पितृ के निमित्त ब्राह्मणों को वस्त्र दिए जाते हैं।
श्राद्धकर्म में दक्षिणा दान ज़रूरी है क्योंकि दक्षिणा के बगैर श्राद्ध का फल नहीं मिलता।
श्राद्धकर्म कभी भी सायंकाल में नहीं करना चाहिए। यह समय राक्षसों के लिए होता है।
श्राद्धकर्म में विकलांग या अधिक अंगों वाला ब्राह्मण वर्जित माने गए हैं।
मामा के अभाव में नाना-नानी का श्राद्ध प्रतिपदा को करना चाहिए।
श्राद्धकर्म में ब्राह्मणों का दक्षिणमुखी होकर बैठना आवश्यक है।
संन्यासी पितृगणों का श्राद्ध केवल द्वादशी को करना चाहिए।