Navratri Kanya Pujan: कन्या पूजन से मिलते हैं ढेरों लाभ

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Mar, 2025 08:06 AM

benefits of kanjak or kanya pujan

Navratri Kanya Pujan: कंजक पूजन में पूजी जाने वाली कन्याओं को देवी के शक्ति स्वरूप का प्रतीक बताया गया है। नवरात्र में माता के नौ रूपों क्रमश: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Navratri Kanya Pujan: कंजक पूजन में पूजी जाने वाली कन्याओं को देवी के शक्ति स्वरूप का प्रतीक बताया गया है। नवरात्र में माता के नौ रूपों क्रमश: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। कुमारी पूजन से दुख-दरिद्र दूर होती है तथा शत्रु का शमन होता है। इससे धन, आयु एवं बल की वृद्धि होती है। त्रिमूर्ति की पूजा से धर्म, अर्थ तथा काम की सिद्धि मिलती है। इसी तरह कल्याणी की पूजा करने से विद्या, विजय एवं राजसुख की प्राप्ति होती है। चंडिका की पूजा से ऐश्वर्य एवं धन की पूर्ति होती है। संग्राम में विजय पाने और दुख-दरिद्र को दूर करने के लिए शांभवी तथा कठिन कार्य को सिद्ध करने के लिए दुर्गा के रूप की पूजा की जाती है। सुभद्रा का पूजन करने से मनोकामना पूरी होती है तथा रोहिणी की पूजा से व्यक्ति निरोग रहता है।

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वास्तु दोष हो दूर
नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है। मान्यता है कि यदि वास्तुदोष से ग्रसित भवन में पांच कन्याओं को नियमित सात दिन तक भोजन कराया जाए तो उस भवन के सारे दोष मिट जाते हैं।

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हर उम्र का अलग रूप
शक्ति के आराधकों के लिए इस दिन कन्याएं साक्षात मां दुर्गा के समान होती हैं। इनकी आराधना करने से मां प्रसन्न होती हैं और मनोकामना पूर्ण करती हैं। नवरात्र में दो वर्ष से दस वर्ष तक की ही कन्याओं का पूजन किया जाना शुभ माना जाता है। शास्त्रों में दो वर्ष की कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्त, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की कालिका, सात वर्ष की शांभवी एवं आठ वर्ष की कन्या को सुभद्रा बताया गया है। ये देवी के वे रूप हैं जिनकी आराधना मात्र से व्यक्ति के सारे क्लेश कट जाते हैं और व्यक्ति परम सुखी हो सत्कामी हो जाता है।

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अष्टमी को जरूरी कन्या पूजन
नवरात्र में अगर उम्र के हिसाब से कन्याएं मिलें तो हर दिन उनके पूजन का विधान है अन्यथा अष्टमी के दिन कन्याओं को आसन पर बैठा कर मां भगवती के नामों से पृथक-पृथक उनकी पूजा करनी चाहिए। कन्याओं के पूजन और उनकी आरती उतारने के बाद उनको भोजन कराते हुए वस्त्र आदि भेंट कर उन्हें विदा करना चाहिए।नवरात्र में किया गया पूजा-पाठ एवं आराधना कभी निष्फल नहीं होती अपितु श्रद्धालुओं को उसका फल निश्चित रूप से मिलता है।

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