Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Sep, 2023 07:27 AM
विश्व में 20वीं शताब्दी के अमर शहीदों में भगत सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, जो देश की आजादी के लिए जिए और इसकी
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Bhagat Singh Birthday Anniversary 2023: विश्व में 20वीं शताब्दी के अमर शहीदों में भगत सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, जो देश की आजादी के लिए जिए और इसकी शान के लिए केवल 23 वर्ष की आयु में हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। इस शेर का जन्म 28 सितंबर, 1907 (कहीं-कहीं 27 सितंबर) को संयुक्त पंजाब में लायलपुर जिले के बंगा गांव के क्रांतिकारी परिवार में मां विद्यावती की पवित्र कोख से हुआ, जो क्रांतिकारी किशन सिंह की पत्नी और अजीत सिंह की मां जैसी भाभी थीं। इस बच्चे के जन्म वाले दिन पिता और चाचा की जेल से रिहाई हुई थी, जिस कारण इन्हें भागोंवाला अर्थात भाग्यवान माना जाने लगा और इनका नाम भगत सिंह रखा गया। 3-4 साल का यह बच्चा खेतों में चारों ओर बंदूकें उपजा कर ब्रिटिश सरकार को भगाने के सपने देखने लगा।
इन्हीं दिनों देश की आजादी के आंदोलन ने जोर पकड़ लिया और अंग्रेजी हुकूमत इसे दबाने के लिए अत्याचार कर रही थी। 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में जालियांवाला बाग हत्याकांड हुआ। साढ़े 11 वर्ष के भगत सिंह पर गहरा असर हुआ और इन्होंने अंग्रेजों को भगाने के लिए सोचना शुरू कर दिया।
प्राथमिक शिक्षा के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह लाहौर आ गए, जो उस समय पढ़ाई और क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था लेकिन पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। भगत सिंह ने अपने अंदर देश को आजाद करवाने के लिए लगी आग पर काबू पाने के लिए क्रांतिकारियों की जीवनियां पढ़नी शुरू कर दीं। इसके साथ ही आजादी के लिए नौजवानों को प्रेरित कर एकजुट करने और देश के क्रांतिकारियों से संपर्क बनाने शुरू कर दिए।
वह चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ से जुड़ गए और उसे एक नया नाम दिया ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’। पुलिस लाठीचार्ज में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए इन्होंने राजगुरु के साथ मिल कर पुलिस अधिकारी सांडर्स को गोली से उड़ा दिया।
इसके कुछ समय बाद गूंगी-बहरी ब्रिटिश सरकार को जगाने के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त असै बली में हानि-रहित बम विस्फोट करने के बाद वहीं खड़े होकर ‘इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद’ के नारे लगाते हुए अपने साथ लाए पर्चे हवा में उछालते रहे। पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया। फिर छापामारी में राजगुरु व सुखदेव सहित बहुत से क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया।
भगत सिंह करीब 2 साल जेल में रहे। इस दौरान वह लेख लिख कर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते थे। अदालत ने भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को 24 मार्च, 1931 को फांसी देने का फैसला सुनाया और लाहौर में धारा 144 लगा दी गई। फैसले का जबरदस्त विरोध शुरू हो गया, जिससे घबरा कर मक्कार ब्रिटिश सरकार ने एक दिन पहले ही 23 मार्च, 1931 को शाम करीब 7.33 बजे तीनों को फांसी पर लटका कर इनके शवों का सतलुज के किनारे अंतिम संस्कार कर दिया।
देश पर जान न्यौछावर करने का उनमें कितना उत्साह था, इसका अहसास इस बात से होता है कि फांसी के लिए जाते समय भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु तीनों की आंखों में जरा भी डर नहीं था, बल्कि वे तो पूरे जोश से यह गीत से गा रहे थे -मेरा रंग दे बसन्ती चोला, मेरा रंग दे। मेरा रंग दे बसन्ती चोला। माए, रंग दे बसन्ती चोला...।