Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Sep, 2022 07:46 AM
भारत की आजादी के लिए लड़ी गई लंबी लड़ाई शहीद भगत सिंह के जिक्र के बिना अधूरी है। इस महान योद्धा का जन्म 28 सितम्बर , 1907 को लायलपुर जिला के गांव बंगा (मौजूदा पाकिस्तान) में हुआ था। उनका
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Bhagat Singh Jayanti 2022: भारत की आजादी के लिए लड़ी गई लंबी लड़ाई शहीद भगत सिंह के जिक्र के बिना अधूरी है। इस महान योद्धा का जन्म 28 सितम्बर , 1907 को लायलपुर जिला के गांव बंगा (मौजूदा पाकिस्तान) में हुआ था। उनका पैतृक घर आज भी भारतीय पंजाब के नवांशहर जिला के खटकड़ कलां में मौजूद है। भगत सिंह के पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा लायलपुर के जिला बोर्ड प्राथमिक स्कूल से हासिल की। बाद में वह डी.ए.वी. स्कूल लाहौर में दाखिल हो गए।
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भगत सिंह विभिन्न किताबें पढ़ने के शौकीन थे। उर्दू में उन्हें महारत हासिल थी और अपने पिता को वह इसी जुबान में खत लिखते थे। लाहौर के नैशनल कॉलेज में नाटक समिति के सक्रिय सदस्य बने। तब तक वह उर्दू, हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी और संस्कृत पर काफी बढ़िया पकड़ बना चुके थे।
भगत सिंह खून-खराबे के सख्त खिलाफ थे। वह कार्ल मार्क्स की शिक्षाओं से प्रभावित और समाजवाद के समर्थक थे परंतु भगत सिंह ने अपने साथियों सहित बर्तानवी हकूमत के साथ-साथ भारतीयों के दिलों में आजादी की अलख जगाने के मकसद से दिल्ली असैंबली में बम धमाका करने की योजना बनाई। इस काम के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का नाम तय हुआ।
योजना के अनुसार 8 अप्रैल, 1929 को असैंबली में दोनों ने एक खाली जगह पर बम फैंक दिया। वे चाहते तो वहां से फरार हो सकते थे,परंतु उन्होंने वहीं रुक कर इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए। कुछ समय में ही पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया।
भगत सिंह, सुखदेव सिंह और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई। बर्तानवी हुकूमत इतनी बुजदिल साबित हुई कि फांसी के लिए तय वक्त से एक दिन पहले 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह व उनके दोनों साथियों को फांसी दे दी गई।
फांसी से पहले जेल में भगत सिंह ने अपने साथी शिव वर्मा को कहा था, ‘‘जब मैंने इंकलाब के रास्ते में पहला कदम रखा था तो सोचा था कि यदि मैं अपनी जान देकर भी इंकलाब जिंदाबाद का नारा देश के कोने-कोने में फैला सकूं तो समझूंगा कि मेरी जिंदगी की कीमत पड़ गई। आज जब मैं फांसी की सजा के लिए जेल कोठरी की सलाखों पीछे बंद हूं तो मैं देश के करोड़ों लोगों की गरजदार आवाज में नारे सुन सकता हूं। एक छोटी-सी जिंदगी की इस से बड़ी कीमत और हो भी क्या सकती है।’’