Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 May, 2021 05:59 AM
लोक मान्यता है की नरसिंह जयंती के दिन जो व्यक्ति भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की कथा सुनता या पढ़ता है, उसके परिवार पर कभी कोई कष्ट नहीं आता। भगवान नरसिंह उसे सुरक्षा कवच प्रदान
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Narsingh Jayanti 2021- लोक मान्यता है की नरसिंह जयंती के दिन जो व्यक्ति भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की कथा सुनता या पढ़ता है, उसके परिवार पर कभी कोई कष्ट नहीं आता। भगवान नरसिंह उसे सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं और शत्रुओं का विनाश करते हैं।
हिरण्याक्ष के वध से उसका भाई हिरण्यकशिपु बहुत दुखी हुआ। वह भगवान का घोर विरोधी बन गया। उसने अजेय बनने की भावना से कठोर तप किया। उसे देवता, मनुष्य या पशु आदि से न मरने का वरदान मिला। वरदान पाकर वह अजेय हो गया। हिरण्यकशिपु का शासन इतना कठोर था कि देव-दानव सभी उसके चरणों की वंदना करते रहते थे। भगवान की पूजा करने वालों को वह कठोर दंड देता था। उसके शासन से सब लोक और लोकपाल घबराए।
जब उन्हें और कोई सहारा न मिला तब वे भगवान की प्रार्थना करने लगे। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर नारायण ने हिरण्यकशिपु के वध का आश्वासन दिया। दैत्यराज का अत्याचार दिनों दिन बढ़ता ही गया। यहां तक कि वह अपने ही पुत्र प्रहलाद को भगवान का नाम लेने के कारण तरह-तरह के कष्ट देने लगा।
प्रह्लाद बचपन से ही खेल-कूद छोड़कर भगवान के ध्यान में तन्मय हो जाया करते थे। वह भगवान के परम प्रेमी भक्त थे तथा समय-समय पर असुर बालकों को धर्म का उपदेश देते रहते थे। असुर बालकों को उपदेश देने की बात सुनकर हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित हुआ। उसने प्रह्लाद जी को दरबार में बुलाया। प्रह्लाद जी बड़ी नम्रता से हाथ जोड़कर चुपचाप दैत्यराज के सामने खड़े हो गए।
उन्हें देख कर दैत्यराज ने डांटते हुए कहा, ‘‘तू बड़ा उद्दंड हो गया है। तूने किस दम पर निडर हो मेरी आज्ञा के विरुद्ध काम किया है?’’
इस पर प्रह्लाद जी ने कहा, ‘‘पिताजी! ब्रह्मा से लेकर तिनके तक सब छोटे-बड़े, चर-अचर जीवों को भगवान ने अपने वश में कर रखा है। वही परमेश्वर ही अपनी शक्तियों के द्वारा इस विश्व की रचना, रक्षा और संहार करते हैं। आप अपना यह आसुर भाव छोड़ दीजिए। अपने मन को सबके प्रति उदार बनाइए।
प्रह्लाद जी की बात को सुनकर हिरण्यकशिपु का शरीर क्रोध के मारे थर-थर कांपने लगा। उसने प्रह्लाद जी से कहा, ‘‘रे मंदबुद्धि! तेरे बहकने की अब हद हो गई है। यदि तेरा भगवान हर जगह है तो बता इस खंभे में क्यों नहीं दिखता?’’
यह कह कर क्रोध से तमतमाया हुआ वह स्वयं तलवार लेकर सिंहासन से कूद पड़ा। उसने बड़े जोर से उस खम्भे को एक घूंसा मारा। उसी समय उस खम्भे के भीतर से नरसिंह भगवान प्रकट हुए। उनका आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य के रूप में था। क्षण मात्र में ही लीलाधर नरसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप की जीवन लीला समाप्त करके अपने प्रिय भक्त प्रहलाद की रक्षा की।