Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Aug, 2017 02:08 PM
कालों के काल महाकाल अर्थात महाकालेश्वर भगवान शिव महादेव हैं। वह लिंग रूप में निराकार ब्रह्म के द्योतक हैं और सर्वत्र विराजमान हैं। भूतभावन भगवान भैरव को शिव का अवतार माना गया है अत: वह शिव स्वरूप ही हैं
कालों के काल महाकाल अर्थात महाकालेश्वर भगवान शिव महादेव हैं। वह लिंग रूप में निराकार ब्रह्म के द्योतक हैं और सर्वत्र विराजमान हैं। भूतभावन भगवान भैरव को शिव का अवतार माना गया है अत: वह शिव स्वरूप ही हैं और उनके साकार रूप हैं। भैरव सम्पूर्णत: परात्पर शंकर ही हैं। भैरव की महत्ता असंदिग्ध है, वह आपत्ति-विपत्ति विनाशक एवं मनोकामना पूर्ति के देव हैं। वैसे तो संसार में भैरव के कई रूप सुख्यात हैं, परंतु उनमें दो अत्यंत प्रसिद्ध हैं : 1. काल भैरव और 2 बटुक भैरव-आनंद भैरव।
काल के समान भीषण होने के कारण इन्हें काल भैरव कहा गया, वस्तुत: ये कालों के काल हैं और सभी प्रकार के संकट से रक्षा करने में ये सक्षम हैं। आदि शंकराचार्य द्वारा रचित काल भैरवाष्टक का पाठ अत्यंत लाभकारी होता है। मथुरा का पाताल भैरव मंदिर व नागपुर (विदर्भ) का पाताल भैरव मंदिर तथा काकाधाम देवघर का पाताल भैरव मंदिर भी सुख्यात है। भारत के दक्षिण -पश्चिम में प्रमुखत: मालवा व राजस्थान में हर गांव में देवी स्थल में देवी की पिंडियों के साथ एक पिंडी भैरव की भी होती है।
भारत के कुछ सुप्रसिद्ध भैरव मंदिर
काल भैरव मंदिर काशी : भगवान विश्वनाथ शिव की नगरी काशी, वाराणसी के कोतवाल का नाम है काल भैरव। विश्वनाथ मंदिर से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर अति प्राचीन भैरव मंदिर स्थित है जिसकी स्थापत्य कला ही इसकी प्राचीनता सिद्ध करती है। गर्भगृह के भीतर काल भैरव की प्रतिमा विराजमान है, जिसे हमेशा वस्त्र से ढंक कर रखा जाता है।
प्रतिमा के मूल रूप का पूर्ण दर्शन किन्हीं-किन्हीं को ही हो पाता है परंतु मुखारविंद के दर्शन सब करते हैं। काशी के काल भैरव की महत्ता इतनी अधिक है कि जो यहां गंगा स्नान व विश्वनाथ दर्शन के पश्चात इनके दर्शन नहीं करता उन्हें भगवान विश्वनाथ के दर्शन का सुफल नहीं प्राप्त होता। गर्भगृह से पहले आंगन है जिसमें दाहिनी ओर कुछ तांत्रिक भैरवपंथी अपने-अपने आसन पर विराजमान रहते हैं। दर्शनार्थियों के हाथों में ये उनके रक्षार्थ कालभैरव की ओर से काला डोरा बांधते हैं और विशेष प्रकार के झाड़ू से आपादमस्तक झाड़ते हैं।
बाहर कुत्तों का जमावड़ा रहता है जिन्हें कुछ खिलाना भैरव भक्त आवश्यक समझते हैं। ये वास्तव में भैरव के वाहन माने जाते हैं। यहां कोई भी कुत्तों को प्रताडि़त नहीं करता है।
बटुक भैरव मंदिर नई दिल्ली : पांडवों द्वारा निर्मित महाभारतकालीन उक्त मंदिर नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में स्थित है। यह अत्यंत प्रसिद्ध है। यहां बटुक भैरव की प्रतिमा को विशेष प्रकार से एक कुएं के ऊपर विराजित किया गया है। पता नहीं किस समय से एक छिद्र के माध्यम से पूजा-पाठ एवं भैरव-स्नान का सारा जल कुएं में जाता रहा है परंतु कुआं अब तक नहीं भरा।
दिल्ली के पांडव किले की रक्षा हेतु पांडव भीमसेन इस प्रतिमा को काशी से लाए थे। भैरव बाबा ने कहा था कि मेरे विग्रह को भूमि पर कहीं मत रखना क्योंकि जहां रखोगे वहीं मैं विराजमान हो जाऊंगा और फिर नहीं उठूंगा वहीं मंदिर बना कर स्थापना क्रिया पूर्ण करना। भीमसेन यहां पहुंचते-पहुंचते थक गए और प्रतिमा भूमि पर रख दी।
नीलम की आंखों वाली इस प्रतिमा के पाश्र्व में त्रिशूल और मस्तक पर छत्र सुशोभित है। यह बहुत ही भारी है, साधारण शक्ति वाला व्यक्ति इसे उठा नहीं सकता। यह सर्वकामनापूरक व सर्व आपदानाशक है।
रविवार के दिन को भैरव का दिन माना जाता है। इस दिन यहां अपार भीड़ रहती है। मंदिर के सामने की लम्बी सड़क पर कारों की लम्बी पंक्तियां लग जाती हैं। ऐसी भीड़ भारत के किसी भी भैरव मंदिर में नहीं लगती होगी। यह प्राचीन प्रतिमा इस तरह ऊर्जावान है कि भक्तों की यहां हर संभव इच्छा पूर्ण होती है।
बटुक भैरव मंदिर पांडव किला (दिल्ली): यहां के भैरव भी बहुत प्रसिद्ध हैं। वास्तव में पांडव भीमसेन द्वारा लाए गए भैरव दिल्ली से बाहर ही विराज गए तो पांडव बड़े चिंतित हुए। उनकी चिंता देखकर बटुक भैरव ने उन्हें अपनी दो जटाएं दे दीं और उसे नीचे रख कर दूसरी भैरव मूर्ति उस पर स्थापित करने का निर्देश दिया। तब पांडव किले में मंदिर मानकर जटा के ऊपर प्रतिमा बैठाई गई, जो अब तक पूजित है।
घोड़ाखाड़ (नैनीताल) बटुक भैरव मंदिर : यह भी अत्यंत सुख्यात है यहां इनकी प्रसिद्धि गोलू देवता के नाम से है। पहाड़ी पर स्थित एक विस्तृत प्रांगण में एक मंदिर में विराजित इस श्वेत गोल प्रतिमा की पूजा के लिए प्रतिदिन श्रद्धालु भक्त पहुंचते हैं। यहां महाकाली का मंदिर भी है। भक्तगण यहां पीतल के छोटे-बड़े घंटे व घंटियां लगाते रहते हैं, जिनकी गणना करना कठिन है, सीढिय़ों सहित मंदिर प्रांगण घंटे-घंटी से पड़े हैं। मंदिर के नीचे एवं सीढिय़ों के बगल में पूजा-पाठ की सामग्रियों सहित घंटी-घंटा की दुकानें भी हैं। बटुक भैरव की ताम्बे की अश्वारोही, छोटी-बड़ी मूर्तियां भी बेची जाती हैं जिन्हें ले जाकर भक्तगण अपने-अपने घरों में पूजन करते हैं।
काल भैरव मंदिर उज्जैन : क्षिप्रा नदी तट पर महाकाल की नगरी उज्जैन को प्राचीन काल में अवंती, अवंतिका व उज्जैयिनी भी कहा गया है। यहां का काल भैरव मंदिर भी जगत प्रसिद्ध है।
आनंद भैरव मंदिर हरिद्वार : मायापुरी को हरिद्वार, हरद्वार व गंगाद्वार कहा जाता है। मायापुरी की अधिष्ठात्री देवी भगवती माया मंदिर के निकट आनंद भैरव का सुप्रसिद्ध मंदिर है। भैरव जयंती पर यहां बहुत बड़ा उत्सव होता है।