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Bhedaghat Dhuandhar: प्रकृति के अनोखे उपहार ‘भेड़ाघाट’ और ‘धुआंधार’

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Jan, 2025 12:05 PM

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Bhedaghat Dhuandhar: विंध्यांचल एवं सतपुडा के बीच ‘अमरकंटक’ नामक ऊंचे पर्वत हैं। यहीं सोहागपुर जिले के अमरकंटक नामक गांव के कुंड में एक गोमुख से जलधारा प्रकट होती है। इस कुंड को कोटिकुंड तथा जलधारा को नर्मदा कहते हैं। यह अमरकंटक से निकलने के 332...

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Bhedaghat Dhuandhar: विंध्यांचल एवं सतपुडा के बीच ‘अमरकंटक’ नामक ऊंचे पर्वत हैं। यहीं सोहागपुर जिले के अमरकंटक नामक गांव के कुंड में एक गोमुख से जलधारा प्रकट होती है। इस कुंड को कोटिकुंड तथा जलधारा को नर्मदा कहते हैं। यह अमरकंटक से निकलने के 332 कि.मी. पश्चात (नर्मदा) मंडला से गुजरती है। मंडला से आगे नर्मदा का प्रवाह मंद हो जाता है तथा इसके आगे ‘भेड़ाघाट’ नामक सुंदर पहाड़ी स्थान आता है। मध्य प्रदेश राज्य के जबलपुर में नर्मदा नदी की गोद में बसा है भेड़ाघाट।

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संगमरमर के पत्थरों के बीच बहती नदी ‘भेड़ाघाट’ पर जलप्रपात का निर्माण करती है। यहीं पर वामनगंगा नदी विंध्याचल पर्वत से जन्म लेकर 419 कि.मी. यात्रा पूर्ण कर नर्मदा में मिलती है। भेड़ाघाट में संगमरमर के पर्वतों के मध्य बना ‘धुआंधार’ नामक जलप्रपात सबसे प्रसिद्ध है।

इस स्थल पर नर्मदा नदी 13 कि.मी. की ऊंचाई से गिरती है मानो ‘धुआं सा छा गया हो तथा संभवत: इसी कारण इसका नाम भी ‘धुआंधार’ जलप्रपात बना है। अथाह जलराशि के इस अद्भुत खजाने की तुलना नियाग्रा फॉल के समकक्ष मानी जा सकती है। सफेद संगमरमर की दूध से धुली चट्टानें, गुलाबी काली हरी चट्टानें, नदी की गोद से सूरज का निकलना एवं डूबना मानव मन से नि:संदेह कहता है कि प्रकृति की तरह प्रसन्न रहते हुए अपने गुणों की खानत्र जनसाधारण हेतु लुटाते रहे।

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प्रकृति का ऐसा अद्भुत नजारा सम्पूर्ण विश्व भर में अतुलनीय है। इस प्रपात से 2 मील की दूरी तक नर्मदा का पानी संगमरमर के पर्वतों से होकर बहता है। इसी मार्ग में आगे ‘बंदरकूदनी’ नामक स्थान आता है, यहां दो पर्वत इतने नजदीक है कि ‘बंदर कूद कर इसे पार कर सकते हैं।

किंवदंतियां : भेड़ाघाट के बारे में अनेक किंवदंतियां प्रचलित है। एक के अनुसार भेड़ाघाट का नाम प्राचीन ऋषि भृगु के नाम से पड़ा जो इसी जगह पर नर्मदा के किनारे रहा करते थे। इसी प्रकार एक अन्य अवधारणा के अनुसार ‘भेड़ा’ शब्द का अर्थ है ‘मिलन स्थल’ तथा यहां नर्मदा और पावन गंगा की धाराओं का मिलन स्थल होने के कारण इसका नाम ‘भेड़़ाघाट’ पड़ा है।

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कुछ विद्वानों की राय में भेड़ाघाट वस्तुत: भैरवी घाट का आधुनिक नाम है क्योंकि इस बात के प्रमाण मिले हैं कि यह स्थल कभी शक्ति धर्म के आराधकों का प्रसिद्ध उपासना स्थल था। पुरातत्व शास्त्रियों के अनुसार भी भेड़ाघाट प्राचीन काल में शक्ति धर्म का केंद्र था।

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बंदरकूदनी की किंवदंतियां : बंदरकूदनी नामक स्थल के बारे में भी कई लोककथाएं प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी ने लंका जाते समय नर्मदा को यहीं पार किया था। एक दूसरी कथा के अनुसार संगमरमर की चट्टानों के बीच संकरा रास्ता देवराज इंद्र ने नर्मदा के लिए बनवाया था।

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इसी प्रकार बंदरकूदनी के साथ एक अभागी बंदरिया की कथा भी जुड़ी है जिसने नर्मदा पार करने के प्रयास में अपने प्राण गंवाए थे। अगले जन्म में वह काशी नरेश के घर पैदा हुई। इसका धड़ इंसान का था परंतु सिर बंदरिया का था। कहा जाता है कि पूर्वजन्म में मरने के बाद बंदरिया का धड़ तो नर्मदा नदी में गिरकर बह गया पर उसका सिर बांस की झाडिय़ों में अटका रह गया।
अपनी कुरूपता से परेशान राजकुमारी ने ज्यों ही नर्मदा में डुबकी लगाई त्यों ही उसकी सुंदरता पुन: लौट आई। इसी प्रकार की अनेक कथाएं स्थानीय रूप में प्रचलित है।

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चौंसठ योगिनी मंदिर : नर्मदा एवं बावनगंगा के संगम पर स्थित चौंसठ योगिनी का मंदिर 9वीं शताब्दी में शक्ति की उपासना का प्रतीक है। 9वीं शताब्दी में भेड़ाघाट का इलाका ‘त्रिपुरी’ के नाम से जाना जाता था जो कल्चुरी शैव थे परंतु उदार होने की वजह से दूसरे सम्प्रदाय के प्रति भी आदर भावना रखते थे। कल्चुरियों के काल में शक्ति सम्प्रदाय का चौंसठ योगिनी मंदिर बना।
इस मंदिर में प्रवेश के दो रास्ते हैं। एक रास्ता नर्मदा के तट से शुरू होता है। इस रास्ते में सीढिय़ों द्वारा दक्षिण पूर्व के प्रवेश की ओर से  मंदिर के अंदर जा सकते हैं।

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उत्तर-पूर्व की ओर से प्रवेश करने वाला सीढ़ी द्वार रास्ता उस सड़क तक जाता है जो पंचवटी घाट को धुआंधार से जोड़ता है। मंदिर के प्रांगण से नर्मदा को देखकर ऐसा लगता है मानो वह संगमरमर की चट्टानों की गोद में चुपचाप सोई हुई कोई मधुर सपना देख रही हो।

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नाव पर यात्रा की कमैंट्री : भेड़ाघाट पर नाव की यात्रा किए बिना इसका आनंद अधूरा है। नाविक की लयबद्ध, लच्छेदार कमैंट्री बहुत ही अच्छे अंदाज में नाव पर सवारी के साथ आने वाले स्थलों की कहानी बता देती है। इस कमैंट्री में एतिहासिक तथ्यों, मजेदार बातों के साथ यहां हुई फिल्मों की शूटिंग का भी वर्णन समेटे होती है। वैसे यहां पर पर्यटकों हेतु स्थल है जहां से इस प्राकृतिक स्थल का आनंद लिया जा सकता है।

कैसे पहुंचें : जबलपुर शहर सभी प्रमुख स्थानों से रेलवे ,बस एवं हवाई सेवा से जुड़ा है। यहां पहुंच कर कार, टैक्सी, बस अथवा अन्य साधनों से भेड़ाघाट एव धुआंधार फाल की यात्रा की जा सकती है।

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