Bhedaghat waterfall: अनेक सभ्यताओं एवं संस्कृतियों की कहानी कहता है ये स्थान

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Jul, 2024 07:25 AM

bhedaghat waterfall in jabalpur

नर्मदा में पावन स्नान को हिन्दू श्रद्धालुओं में पवित्र माना जाता है। उनका मानना है कि नर्मदा में किया स्नान पाप से छुटकारा दिलाता है तथा मुक्ति के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। अनेक वैज्ञानिकों ने कई प्रभागों द्वारा यह

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Bhedaghat Waterfall In Jabalpur: नर्मदा में पावन स्नान को हिन्दू श्रद्धालुओं में पवित्र माना जाता है। उनका मानना है कि नर्मदा में किया स्नान पाप से छुटकारा दिलाता है तथा मुक्ति के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। अनेक वैज्ञानिकों ने कई प्रभागों द्वारा यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि नर्मदा सरस्वती की ही एक धारा है जो कई मील जमीन में बहने के पश्चात पुन: कोटि तीर्थ में आकर प्रकट होती है। नर्मदा नदी के रास्ते में अनेक नदियों का संगम तथा पवित्र स्थलों का निर्माण हुआ है।

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Bhedaghat waterfall: निराली प्रकृति सुंदरी के मनोभावों की ऐसी मनोहारी देन ‘भेड़ाघाट’ का दर्शन एवं धुआंधार फॉल का अनुभव अविस्मरणीय है। नर्मदा की तरंगों के संगीत में अपने आप को आत्मसात करता हुआ जगह-जगह पक्षियों द्वारा करलव करते हुए प्रदेश युगों से अपने सौंदर्य की कहानी कह रहा है। मन करता है संगमरमर की इस खान को निरंतर निहारते रहें तथा नर्मदा के किनारे बैठकर निरंतर लहरों का मादक संगीत सुनते रहें।

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Bhedaghat waterfall river: कैसे पहुंचें 
जबलपुर शहर सभी प्रमुख स्थानों से रेल, बस एवं हवाई सेवा से जुड़ा है। यहां पहुंच कर कार टैक्सी बस अथवा अन्य साधनों से भेड़ाघाट एवं धुआंधार फॉल की यात्रा की जा सकती है।

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Dhuandhar Water Fall: मध्यांचल एवं सतपुड़ा के बीच ‘अमरकंटक’ नामक ऊंचे पर्वत हैं। यहीं सोहागपुर जिले के अमरकंटक नामक गांव के कुंड के एक गोमुख से जलधारा प्रकट होती है। इस कुंड को कोटिकुंड तथा जलधारा को नर्मदा कहते हैं। यह (नर्मदा) अमरकंटक से निकलने के 332 कि.मी. पश्चात मंडला से गुजरती है। मंडला से आगे नर्मदा का प्रवाह मंद हो जाता है तथा इसके आगे मध्य प्रदेश के जबलपुर में नर्मदा नदी की गोद में बसा है ‘भेड़ाघाट’ नामक सुंदर पहाड़ी स्थान।

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Why is bhedaghat famous for: भेड़ाघाट में संगमरमर के पर्वतों के मध्य बना ‘धूआंधार’ नामक जलप्रपात सबसे प्रसिद्ध है। इस स्थल पर नर्मदा नदी 30 मीटर की ऊंचाई से गिरती है, मानो ‘धूआं’ सा छा गया हो तथा संभवत: इसी कारण इसका नाम भी धूआंधार जलप्रपात पड़ा है। अथाह जलराशि के इस अद्भुत खजाने की तुलना नियाग्रा फॉल्स से की जा सकती है। सफेद संगमरमर की दूध से धुली चट्टानें, गुलाबी-काली-हरी चट्टानें, नदी की गोद से सूरज का निकलना एवं डूबना नि:संदेह मानव मन से कहता है कि प्रकृति इसी तरह प्रसन्न रहते हुए अपने गुणों की खान जनसाधारण हेतु लुटाती रहे। प्रकृति का ऐसा अद्भुत नजारा अतुलनीय है। 

इस प्रपात से 2 मील की दूरी तक नर्मदा का पानी संगरमरमर के पर्वतों के बीच से होकर बहता है, जिन्हें ‘मार्बल रॉक्स’ के नाम से जाना जाता है। इसी मार्ग में आगे ‘बंदरकूदनी’ नामक स्थान आता है, यहां दो पर्वत इतने नजदीक है कि ‘बंदर’ कूद कर इसे पार कर सकते हैं।

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किंवदंतियां : भेड़ाघाट के बारे में अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं। एक के अनुसार भेड़ाघाट का नाम ऋषि भृगु के नाम से पड़ा, जो इसी जगह पर नर्मदा के किनारे रहा करते थे। इसी प्रकार एक अन्य अवधारणा के अनुसार ‘भेड़ा’ शब्द का अर्थ है ‘मिलन स्थल’ तथा यहां नर्मदा और पावनगंगा की धाराओं का मिलन स्थल होने के कारण इसका नाम ‘भेड़ाघाट’ पड़ा है। कुछ विद्वानों की राय में भेड़ाघाट वस्तुत: भैरवी घाट का आधुनिक नाम है क्योंकि इस बात के प्रमाण मिले हैं कि यह स्थल कभी शक्ति धर्म के आराधकों का प्रसिद्ध उपासना स्थल था। पुरातत्वशास्त्रियों के अनुसार भी भेड़ाघाट प्राचीन काल में शक्ति धर्म का केंद्र था।

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बंदर कूदनी की किंवदंतियां : बंदर कूदनी नामक स्थल के बारे में भी कई लोककथाएं प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी ने लंका जाते समय नर्मदा को यहीं पार किया था। एक दूसरी कथा के अनुसार संगमरमर की चट्टानों के बीच संकरा रास्ता देवराज इंद्र ने नर्मदा के लिए बनवाया था।

चौंसठ योगिनी मंदिर : नर्मदा नदी के ऊपर एक पहाड़ पर स्थित चौंसठ योगिनी का मंदिर 9वीं शताब्दी में शक्ति की उपासना का प्रतीक है। 9वीं शताब्दी में भेड़ाघाट का इलाका ‘त्रिपुरी’ के नाम से जाना जाता था। कल्चुरियों के काल में शक्ति सम्प्रदाय का चौसठ योगिनी मंदिर बना।

भेड़ाघाट का चौसठ योगिनी मंदिर त्रिपुर क्षेत्र में शक्ति धर्म के योगिनी सम्प्रदाय के प्रभाव की ओर इंगित करता है। योगिनी दुर्गा की प्रतिरूप समझी जाती हैं। मुख्य योगिनी मातृ की संख्या सात थी जो बाद में चौसठ तक पहुंच गई एवं इसी कारण ‘चौसठ योगिनी’ के नाम से जानी गईं। वर्तमान में 61 प्रतिमाएं हैं तथा 3 प्रतिमाएं अब नहीं हैं। ये मूर्तियां हजारों वर्ष पुरानी हैं तथा हरियाली लिए पीले बलुआ पत्थरों और लाल पत्थरों की बनी हैं तथा अनेक सभ्यताओं एवं संस्कृतियों की कहानी कहती हैं।

इस मंदिर में प्रवेश के दो रास्ते हैं। एक रास्ता नर्मदा के तट से शुरू होता है। इस रास्ते में सीढ़ियों द्वारा दक्षिण पूर्व के प्रवेश की ओर से द्वार से मंदिर के अंदर जा सकते हैं। उत्तर-पूर्व की ओर से प्रवेश करने वाला सीढ़ीद्वार रास्ता उस सड़क तक जाता है जो पंचवटी घाट को धुआंधार से जोड़ता है। मंदिर के प्रांगण से नर्मदा को देखकर ऐसा लगता है, मानो वह संगमरमर की चट्टानों की गोद में चुपचाप सोई हुई कोई मधुर सपना देख रही हो।

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नाव पर यात्रा की कमैंट्री : भेड़ाघाट पर नाव की यात्रा किए बिना इसका आनंद अधूरा है। नाविक की लयबद्ध लच्छेदार कमैंट्री बहुत ही अच्छे अंदाज में नाव पर सवारी के साथ आने वाले स्थलों की कहानी बता देती है। इसमें ऐतिहासिक तथ्यों, मजेदार बातों के साथ यहां हुई फिल्मों की शूटिंग का भी वर्णन समेटे होती है। धुआंधार फॉल्स के ऊपर से अब तक केवल ट्रॉली द्वारा यात्रा भी की जा सकती है परंतु उसके लिए समय सीमा का ध्यान रखना जरूरी है। वैसे यहां पर पर्यटकों हेतु स्थल है जहां से इस प्राकृतिक स्थल का आनंद लिया जा सकता है।    

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