Edited By Jyoti,Updated: 02 Feb, 2020 11:51 AM
आज यानि माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 02 फरवरी, 2020 रविवार को भीष्म अष्मी का पर्व मनाया जा रहा है। हिंदू शास्त्रों में इस दिन व्रत रखने का विशेष महत्व है।
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आज यानि माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 02 फरवरी, 2020 रविवार को भीष्म अष्मी का पर्व मनाया जा रहा है। हिंदू शास्त्रों में इस दिन व्रत रखने का विशेष महत्व है। कहा जाता है जो जातक इस व्रत को करता है उस संस्कारी और सुयोग्य संतान की प्राप्त होती है। कुछ मान्यताओं के अनुसार पितामह भीष्म ने अपनी देह को त्यागने के लिए माघ माह में शुक्ल पक्ष अष्टमी का चयन किया, जब सूर्यदेव उत्तरायण में वापस आ रहे थे। जिस अनुसार माघ शुक्ल अष्टमी को उनका निर्वाण दिवस माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्रती को इस दिन तिल, जल और कुश से पितामह भीष्म के निमित्त तर्पण करना चाहिए, धार्मिक ग्रंथों में ऐसा करने का विधान है।माना जाता है ऐसा करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा इस व्रत के प्रभाव से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
भीष्म अष्टमी व्रत रखने वालें जातक ज़रूर पढ़ें ये कथा-
जैसे कि हमने आपको अन्य आर्टिकल में बताया कि धार्मिक ग्रंथों में भीष्म जिनका मूल नाम देवव्रत था, देवी गंगा और राजा शांतनु के आठवें पुत्र थे। अपने पिता के लिए उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। ग्रंथों में इन्हें लेकर जो उल्लेख मिलता है उसके अनुसार देवव्रत को मुख्य रूप से मां गंगा द्वारा पोषित किया गया था और बाद में महर्षि परशुराम को शास्त्र विद्या प्राप्त करने के लिए भेजा गया था। शिक्षा पूरी करने के बाद, देवी गंगा देवव्रत को उनके पिता, राजा शांतनु के पास लाई और उन्हें हस्तिनापुर का राजकुमार घोषित किया गया। इस दौरान, राजा शांतनु को सत्यवती नाम की एक महिला से प्रेम हो गया और उन्होंने उसक के आगे विवाह का प्रस्ताव रखा परंतु सत्यवती के पिता ने उनके आगे एक शर्त रखी कि भविष्य में शांतनु और सत्यवती की संतानें ही हस्तिनापुर राज्य का शासन करेंगी।
इन सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए देवव्रत ने अपने पिता की खातिर राज्य छोड़ दिया और जीवन भर कुंवारे रहने का संकल्प लिया। कहा जाता है ऐसे संकल्प और बलिदान के कारण ही देवव्रत को भीष्म नाम से पूजनीय माना जाने लगा थे। और उनकी प्रतिज्ञा को भीष्म प्रतिज्ञा का नाम दिया गया। शास्त्रों के अनुसार इन्हें इच्छामुत्यु का वरदाान अपने शांतनु से ही प्राप्त हुआ था। यह सब देखकर, राजा शांतनु भीष्म से बहुत प्रसन्न हुए और इस प्रकार उन्होंने उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। अपने जीवनकाल में इतनी बड़ी-बड़ी प्रतिज्ञा लेने के कारण ही भीष्म पितामह के रूप में सम्मान प्राप्त हुआ। हिंदू धर्म के महाकाव्य महाभारत के वर्णन के अनुसार महाभारत काल मे युद्ध के दौरान भीष्म पितामह कौरवों के साथ खड़े थे और उन्होंने उनका पूरा समर्थन किया। भीष्म पितामह ने शिखंडी के साथ युद्ध नहीं करने और उसके खिलाफ़ किसी भी प्रकार का हथियार न चलाने का संकल्प लिया था। कहा जाता है इसी दौरान राजा अर्जुन ने शिखंडी के पीछे खड़े होकर भीष्म पर हमला किया था और भीष्म घायल होकर बाणों की शय्या पर गिर पड़े थे। मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति उत्तरायण के शुभ दिन पर अपना शरीर छोड़ता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है।