Bhojeshwar Temple- अद्भुत शिल्पकला का प्रतीक भोजपुर का शिव मंदिर

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Apr, 2021 11:00 AM

bhojeshwar temple

मध्य प्रदेश का पुरातात्विक वैभव विश्व भर के पुरातन और पर्यटन प्रेमियों को आकर्षित करता रहा है। पुरा संपदा प्रदेश की विशेषता मानी जाती है। खजुराहो, ओरछा, महेश्वर, ग्यारसपुर, उदयगिरि तथा माडंव के मंदिर और स्मारक विश्व प्रसिद्ध हैं।

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Bhojeshwar Temple- मध्य प्रदेश का पुरातात्विक वैभव विश्व भर के पुरातन और पर्यटन प्रेमियों को आकर्षित करता रहा है। पुरा संपदा प्रदेश की विशेषता मानी जाती है। खजुराहो, ओरछा, महेश्वर, ग्यारसपुर, उदयगिरि तथा माडंव के मंदिर और स्मारक विश्व प्रसिद्ध हैं। इसी तरह भोजपुर का शिव मंदिर भोजपुर को एक विशेष सांस्कृतिक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठापित करता है। भोजपुर के मध्ययुगीन मंदिर की शिल्प तथा स्थापत्य कला निराली है। रायसेन जिले की गोहरगंज तहसील में ग्यारहवीं सदी में परमार शासक राजा भोज (1010-1055 ईस्वी) की शख्सियत की पहचान कराने वाले इस शिव मंदिर के निकट एक प्राचीन बांध के अवशेष आज भी दृष्टव्य हैं।

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Which is the biggest Shivling in India- यह एक संयोग ही है कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की उत्तर, दक्षिण और पूर्व दिशाओं में स्थित तीन बड़े पुरातात्विक महत्व के स्थान रायसेन जिले में हैं। इनमें से दो विश्व धरोहर स्थल भी हैं। सांची और भीमबेटका को यह गौरव हासिल है लेकिन तीसरा स्थान भोजपुर भी किसी विश्व धरोहर से कम नहीं। यहां विश्व प्रसिद्ध और संसार के सबसे बड़े शिवलिंग के दर्शन के लिए देशी-विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं। शिवरात्रि और मकर संक्रांति के दिन मेला भी लगता है, यही नहीं मध्य प्रदेश सरकार की ओर से सालाना भोजपुर उत्सव भी आयोजित होता है।  

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Magnificent Shiva Lingam- वर्ष 2010 राजा भोज द्वारा स्थापित शिव मंदिर और भोजपुर के लिए ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण वर्ष था जब निकट स्थित प्राचीन स्थल आशापुरी की पुरातात्विक धरोहर के संरक्षण की पहल हुई। वेत्रवती (बेतवा) के निकट भोजपुर का शिव मंदिर पर्यटकों को बरबस ही आकर्षित कर लेता है। प्रदेश के पूर्वी मालवा क्षेत्र में भोपाल, रायसेन एवं सीहोर जिलों का यह भू-भाग सभ्यता के आरंभ से ही सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा है।  

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Bhojpur temple architecture- इस क्षेत्र में बिखरे प्रागैतिहासिक स्थल मध्ययुगीन स्मारक मालवा में विकसित स्थापत्य कला एवं प्रतिमा कला की परम्परा को दर्शाते हैं। भोपाल, भोजपुर, भीमबेटका एवं आशापुरी के क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति को देखा जाए तो पता चलता है कि यहां एक विशाल जलाशय था। इसे 16वीं सदी में रिक्त किया गया और इसके बाद भूमि कृषि के लिए उपयोग में लाई जाने लगी।

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Bhojpur temple shivling height- भोपाल से 28 किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर का शिव मंदिर 11वीं सदी में परमार नरेश भोज के बहुआयामी प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्व का परिचायक है। भोज वास्तुशिल्प के ज्ञाता थे। भोज द्वारा प्रणीत यह मंदिर वास्तुशिल्प का एक नवीन विधा भूमिज शैली का महत्वपूर्ण उदाहरण माना जाता है। मंदिर में एक विशाल शिवलिंग 26 फुट की ऊंचाई पर तराशे हुए आधार पर स्थित है जिसकी गणना विश्व से सबसे विशाल शिवलिंग में की जाती है।  

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Which is the most powerful Shiva temple- मंदिर की वास्तुकला उस दौर में प्रयुक्त होने वाली उन्नत तकनीकी और अभियांत्रिकी की परिचायक है। राजा भोज ने बेतवा और उसकी सहायक नदियों पर बांध बनाकर उस युग की दक्ष यांत्रिकी क्षमता का परिचय प्रस्तुत किया था। भोपाल की विशाल झील पर बनाए गए बांध के अवशेष इसी योग्यता और दक्षता को आज भी सिद्ध करते हैं। कलियासोत बांध से बेतवा नदी के पानी के स्रोत को बढ़ाने का प्रयास राजा भोज के समय में प्रतिष्ठित उच्च यांत्रिकीय कौशल को सिद्ध करता है।

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Bhojeshwar temple history- भोजपुर मंदिर के समीप ही जैन सिद्धायतन मंदिर में तीर्थंकर आदिनाथ की 20 फुट ऊंची विशाल प्रतिमा भी है। परमार कालीन कला शैली के लिए प्रसिद्ध रायसेन जिले का ही ग्राम आशापुरी भोजपुर से सिर्फ पांच किलोमीटर दूरी पर स्थित है। आशापुरी, भूतनाथ, शिव मंदिर और जैन मंदिर के अवशेष इस बात के साक्षी हैं कि यहां शिखरों से युक्त विशाल देवालयों का निर्माण किया गया था। भोजपुर की भांति ही यहां का वर्तमान भूतनाथ मंदिर भी बांध के विशाल घाट पर निर्मित किया गया था। इस बांध के अवशेष आज भी तत्कालीन निर्माण कला की श्रेष्ठता के प्रमाण के रूप में दिखलाई देते हैं। इन मंदिरों के ध्वंसावशेषों से प्राप्त लगभग 450 कलाकृतियों को आशापुरी ग्राम में ही एकत्रित करके रखा गया है। यह विष्णु और शिव तथा उनके विभिन्न स्वरूपों से संबंधित हैं। अन्य प्रतिमाओं में जैन यक्ष-यक्षिणियों, नायक-नायिकाएं आदि परमार काल के लोकजीवन एवं मान्यताओं को बतलाते हैं।

 

 

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