Bhoomi Vandana: सुबह-सुबह उठते ही करें ये काम, सौभाग्य और समृद्धि का मिलेगा आशीर्वाद

Edited By Prachi Sharma,Updated: 12 Nov, 2024 06:00 AM

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भूमि वंदना या भूमि पूजन हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र क्रियाओं में से एक है। यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है जो न केवल हमारी पृथ्वी के प्रति आभार और सम्मान को व्यक्त करती है

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Bhoomi Vandana: भूमि वंदना या भूमि पूजन हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र क्रियाओं में से एक है। यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है जो न केवल हमारी पृथ्वी के प्रति आभार और सम्मान को व्यक्त करती है बल्कि यह जीवन के समग्र दृष्टिकोण को भी प्रकट करती है। हिन्दू धर्म में पृथ्वी को एक देवी के रूप में पूजा जाता है, जिसे प्रथ्वी माता या भूमि देवी के रूप में सम्मानित किया जाता है। भूमि वंदना की परंपरा हमें यह सिखाती है कि हमें अपनी भूमि, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना चाहिए ताकि हम अपने जीवन में संतुलन, समृद्धि और शांति को बनाए रख सकें।

तीन प्रकार की माताएं मानी गई हैं- प्रथम माता जिसने जन्म दिया, दूसरी गौ माता जो अपनी मां के पश्चात दूसरे नंबर पर आती है, तीसरी पृथ्वी माता जिनकी गोद में सारा जीवन व्यतीत होता है। माता शब्द इतना ममतापूर्ण है कि यह शब्द आते ही सिर श्रद्धा से झुक जाता है क्योंकि माता पूजनीय होती है। चूंकि सुबह उठते ही पृथ्वी माता के दर्शन होते हैं और अपना पैर उनकी गोद में रखते हैं, अत: पृथ्वी माता को प्रणाम करना चाहिए। यह माता अपने पुत्र रूपी समस्त प्राणियों का भार सहन करती है और अन्न उपजाकर भरण-पोषण करती है इसलिए भी सदैव पूजनीय है।

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पृथ्वी की दिव्यता और महत्व का अहसास
हिन्दू धर्म में पृथ्वी को देवी माना जाता है। प्रथ्वी माता के रूप में भूमि की पूजा करने का विश्वास बहुत प्राचीन है। ऋग्वेद में भी भूमि को एक देवी के रूप में चित्रित किया गया है और इसे जीवनदायिनी, पालनहार और संतान सुख प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा गया है। भूमि वंदना का उद्देश्य पृथ्वी के प्रति श्रद्धा और आभार व्यक्त करना है। हम जिस भूमि पर खड़े हैं, वही भूमि हमें जीवनदायिनी अन्न, जल, वनस्पति, और ऊर्जा देती है, इसलिए उसकी पूजा करके हम उसे सम्मानित करते हैं।

आध्यात्मिक शांति और संतुलन
भूमि वंदना न केवल एक शारीरिक कृत्य है बल्कि यह आध्यात्मिक शांति और मानसिक संतुलन को भी बढ़ावा देती है। जब हम भूमि वंदना करते हैं तो हम अपने भीतर की नकारात्मक ऊर्जा को बाहर निकालते हैं और सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करते हैं। यह हमें मानसिक शांति, संतुलन, और ध्यान केंद्रित करने की स्थिति में लाती है। हिन्दू धर्म में पूजा और वंदना को आत्मा की शुद्धि और मानसिक विकास का एक तरीका माना जाता है। भूमि वंदना के दौरान हम यह समझ पाते हैं कि हम इस पृथ्वी के हिस्से हैं और हमें अपने आचार-व्यवहार में ईश्वर के आदेशों का पालन करना चाहिए।

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धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का पालन
हिन्दू धर्म में भूमि वंदना एक प्राचीन परंपरा है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी अपनाया जाता रहा है। जब कोई नया घर बनता है या कोई नया कार्य आरंभ किया जाता है, तो भूमि पूजन या वंदना करना एक अनिवार्य कृत्य होता है। यह कार्य धार्मिक दृष्टि से शुभ और मंगलकारी माना जाता है। भूमि वंदना से वातावरण में शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसका उद्देश्य भूमि की शुद्धि और सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करना होता है ताकि नए कार्य की शुरुआत शुभ हो। यह परंपरा हमें यह भी सिखाती है कि हमें अपने पुराने रीति-रिवाजों और परंपराओं को बनाए रखना चाहिए, क्योंकि वे हमें जीवन में दिशा और उद्देश्य प्रदान करते हैं।

सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति
हिन्दू धर्म में यह विश्वास किया जाता है कि भूमि वंदना से व्यक्ति के जीवन में सौभाग्य और समृद्धि का आगमन होता है। जब हम भूमि का आदर करते हैं और उसकी पूजा करते हैं, तो यह सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है और हमारे जीवन में खुशहाली लाती है। विशेष रूप से नए घर की शुरुआत, कृषि कार्य या किसी नए व्यवसाय की शुरुआत में भूमि पूजन किया जाता है, जिससे शुभता और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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