Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Sep, 2023 09:14 AM
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वैसे तो उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती होती है और वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में भी आरती के लिए चिता की अग्नि का इस्तेमाल किया जाता है। भगवान शंकर के ये दोनों ही मंदिर द्वादश
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Shree Aadi Bhootnath Mandir Kolkata: वैसे तो उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती होती है और वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में भी आरती के लिए चिता की अग्नि का इस्तेमाल किया जाता है। भगवान शंकर के ये दोनों ही मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंग में शामिल हैं, लेकिन इसके अतिरिक्त अगर देश में कोई अन्य ऐसा शिवालय है जहां आरती की ज्योत प्रज्जवलित करने के लिए जलती हुई चिता की लकड़ी का सहारा लिया जाता है, तो वह है कोलकाता के नीमतल्ला घाट के समीप बना बाबा भूतनाथ मंदिर।
जी हां, बाबा भूतनाथ मंदिर भले ही द्वादश ज्योतिर्लिंग में शामिल न हो, इसके बावजूद यह शिवभक्तों की अटूट आस्था और विश्वास का केंद्र है। जानकारों के अनुसार मंदिर करीब सवा 300 साल पुराना है, जिसकी स्थापना नीमतल्ला श्मशान घाट पर रहने वाले एक अघोरी बाबा ने की थी। शुरूआती दिनों में मंदिर के नाम पर केवल एक शिवलिंग था और अघोरी बाबा के अलावा आसपास के अन्य लोग जलाभिषेक व पूजा-अर्चना करते थे।
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Bhootnath temple kolkata history: भूतनाथ मंदिर का इतिहास खंगालने पर पता चला है कि बिल्कुल श्मशान भूमि पर ही शिवलिंग यानी मंदिर बना हुआ था इसीलिए आरती के वक्त जब ज्योति प्रज्जवलन की जरूरत होती थी तब पुजारी किसी भी जलती हुई चिता से एक लकड़ी उठा लेता था। यह प्रथा तब से आज तक जारी है।
गंगा नदी के पश्चिम किनारे पर बने भूतनाथ मंदिर के भव्य व दिव्य मंदिर के संचालन का जिम्मा हिंदू सत्कार समिति के पास है, जबकि प्रबंधन का कार्य मंदिर कमेटी देखती है। हिंदू सत्कार समिति के संयुक्त सचिव के मुताबिक 1932 से समिति ने मंदिर का संचालन अपने हाथों में लिया और साल-दर-साल मंदिर का विस्तार व प्रचार होता गया।
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Baba Bhootnath Dham 1940 में खड़ी की गई दीवार
उनके अनुसार 1940 के आसपास कोलकाता नगर निगम की पहल पर मंदिर और श्मशान घाट के बीच एक दीवार खड़ी कर दोनों को पृथक किया गया। मंदिर स्थापना की निश्चित तिथि किसी के स्मरण में नहीं है, इसलिए मंदिर संचालन समिति, प्रबंधक कमेटी, पुजारी और नित्य आने वाले भक्तों की रजामंदी से अंग्रेजी नववर्ष के पहले दिन यानी पहली जनवरी को मंदिर का स्थापना दिवस मान लिया गया और इसी दिन मंदिर का वार्षिक उत्सव मनाया जाने लगा।
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इसकी पूर्व संध्या यानी 31 दिसम्बर की रात मंदिर के समक्ष भजन-कीर्तन होता है, जिसमें लाखों भक्तों की मौजूदगी में देश के ख्याति प्राप्त भजन गायक अपनी-अपनी मधुर आवाज में बाबा के भजनों की गंगा प्रवाहित करते है। इसके अलावा महाशिवरात्रि पर भव्य आयोजन होता है और पूरे सावन महीने के दौरान भक्तों द्वारा अलौकिक श्रृंगार, संगीतमय भजन-कीर्तन और महारुद्राभिषेक कराया जाता है। हालांकि, कोरोना महामारी की वजह से बीते दो साल सावन में होने वाले आयोजनों को स्थगित कर दिया गया था। कोरोना महामारी के दौरान पुजारीगण ही नियमित पूजा पाठ करते थे। मंदिर परिसर में भक्तों के प्रवेश पर राज्य प्रशासन और संचालन समिति द्वारा रोक थी।
भूतनाथ मंदिर के प्रति लोगों के विश्वास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंदिर परिसर में प्रवेश पर रोक के बावजूद भगवान शिव के अति प्रिय सावन महीने में रोजाना हजारों लोग मंदिर की चौखट पर माथा टेकने पहुंचते रहे। इस दफा कोरोना नियमों को मानकर सावन महोत्सव मनाया जा रहा है।
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Bhootnath temple kolkata सवा 300 साल से जारी है क्रम
इसे बाबा भूतनाथ की कृपा से कम नहीं कहा जा सकता, कि मंदिर के स्थापना काल (सवा 300 साल पहले) से अभी तक मंगला आरती (सुबह 4 बजे) और संध्या आरती (शाम साढ़े 6 बजे) की ज्योत चिता की आग से प्रज्वलित हो रही है।
बाबा की आरती के वक्त पुजारी को कोई न कोई जलती चिता अवश्य मिल जाती है, जिसकी लकड़ी से दीपक की ज्योत जलाई जाती है। इतने लंबे इतिहास में एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि आरती के वक्त किसी की चिता न जल रही हो।
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Bhootnath Mandir चांदी की दीवार
अपने किसी मनोरथ के पूर्ण होने पर स्वेच्छा से मंदिर में श्रृंगार या विशेष पूजा के लिए भी भक्तों को अपनी बारी के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। भक्तों में बाबा के प्रति विश्वास इस बात से पुख्ता होता है कि लाखों खर्च कर मंदिर परिसर की पूरी दीवार रजत (चांदी) से बनवाई गई है।
इसके अलावा नंदी, त्रिशूल, डमरू और अर्धनारीश्वर के अतिरिक्त भगवान शंकर के कई रूप चांदी के हैं, जिन्हें बारी-बारी से हर शाम सुसज्जित कर भक्तों के दर्शनार्थ शिवलिंग पर विराजित किया जाता है। इन सबसे अलग एक और बात, जो केवल भूतनाथ मंदिर में ही देखने को मिलेगी, वह यह कि सर्व भूतों के स्वामी भूतनाथ नमामि का यह मंदिर सातों दिन और चौबीसों घंटे खुला रहता है। कहते हैं कि नियमित रूप से इस मंदिर में आकर कपूर जलाने वाले और उसकी कालिख का टीका लगाने वाले भक्तों की बाबा हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।