Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Jan, 2023 10:58 AM
उत्तरायण गंगा के तट पर स्थित ‘बाढ़’ नगर अपने अतीत में सदियों पुराने गौरवमयी इतिहास को छिपाए हुए है। गंगा तट पर होने के कारण ही इसे ‘बिहार का काशी’ कहा जाता है और यह एक प्राचीन तीर्थ के रूप में विख्यात है। बाढ़ नगर 1865 में बना बिहार का सबसे पुराना...
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Bihar Ka Kashi: उत्तरायण गंगा के तट पर स्थित ‘बाढ़’ नगर अपने अतीत में सदियों पुराने गौरवमयी इतिहास को छिपाए हुए है। गंगा तट पर होने के कारण ही इसे ‘बिहार का काशी’ कहा जाता है और यह एक प्राचीन तीर्थ के रूप में विख्यात है। बाढ़ नगर 1865 में बना बिहार का सबसे पुराना अनुमंडल है। यह राजधानी पटना से मात्र 64 किलोमीटर दूर है। यहां पहुंचने के लिए रेल और सड़क मार्ग दोनों सुलभ हैं। बाढ़ का सबसे प्राचीन और विश्वविख्यात उमानाथ (शिव) मंदिर गंगा के तट पर ही स्थित है। प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु अपनी कामना पूर्ति के लिए यहां गंगा स्नान व भगवान शिव के दर्शन करते हैं। इस प्राचीन तीर्थ स्थल की चर्चा गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस के उत्तरकांड में की है।
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मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीराम ने शिव की पूजा-अर्चना करने के बाद पिंडदान हेतु गया की ओर प्रस्थान किया था। भगवान श्रीकृष्ण ने भी इस स्थान पर शिव की पूजा-अर्चना की थी। कहते हैं कि उमानाथ मंदिर का निर्माण त्रेतायुग में किया गया था।
कुछ विद्वानों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था। प्राचीनकाल में उत्तरायण गंगा के तट पर ऋषि-मुनि तप किया करते थे। तप व यज्ञों में असुर प्राय: विघ्न डाला करते थे, जिनके अत्याचार से ऋषि-मुनि त्रस्त थे। साधु-संतों को असुरों से मुक्ति दिलाने हेतु बिजली की चमक व भूतल की गड़गड़ाहट में एक मनोरम और दैदीप्यमान शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ, जिसके गुण एवं प्रभाव को देखकर दैत्य वहां से हमेशा-हमेशा के लिए पाताल लोक चले गए।
History of Umanath Temple: मंदिर में स्थापित शिवलिंग के विषय में कहा जाता है कि एक सौ वर्ष पूर्व मंदिर में स्थापित शिवलिंग को उखाड़कर मंदिर के बीचों-बीच स्थापित करने की योजना यहां के पुजारियों और स्थानीय लोगों ने बनाई। शिवलिंग के किनारे-किनारे खुदाई का कार्य प्रारंभ करवाया गया और पचास फुट तक की खुदाई हो गई। इसी बीच एक चमत्कारिक घटना घटी कि शिवलिंग का आकार कमल की पंखुड़ियों के समान मोटा और लम्बा होता गया किन्तु शिवलिंग का अंत नहीं मिल रहा था। खुदाई के दौरान ही गड्ढे से काफी संख्या में सांप और बिच्छु के साथ एक कलश में जलता हुआ दीपक निकला।
यह देख कर खुदाई करने वाले मजदूर घबरा गए। एक रात स्वप्न में आकर सदाशिव ने खुदाई करने वाले लोगों को सावधान किया कि वे आदि उमानाथ हैं। उनकी प्रतिमा की खुदाई तुरंत बंद करें। लोगों ने अगली सुबह ही खुदाई बंद करवा दी।
मुगल बादशाह जहांगीर ने मनोकामना पूर्ण होने पर उमानाथ मंदिर को 270 एकड़ भूमि दान दी थी। सर गणेश दत्त सिंह द्वारा उमानाथ मंदिर में स्वर्ण कलश व ध्वज स्थापित किए गए। गिद्धौर महाराज ने भी उमानाथ मंदिर को दान दिया था। अनंत श्री ब्रह्मलीन पूज्यपाद धर्म सम्राट स्वामी करपात्री महाराज प्राय: उमानाथ आया करते थे। विख्यात मैथिली कवि और भगवान शंकर के परम भक्त विद्यापति दरभंगा महाराज केसवारी से प्रत्येक वर्ष उमानाथ दर्शनार्थ आया करते थे।

पद्म श्री ज्योतिषाचार्य पं. विष्णुकांत जी उमानाथ आकर शिव की पूजा अर्चना की एवं उमानाथ के संबंध में विस्तृत वर्णन किया था। डा. राजेंद्र प्रसाद ने भी बाबा उमानाथ के दर्शन किए थे। उमानाथ मंदिर के प्राचीन और धार्मिक महत्व के विषय में अंग्रेज इतिहासकारों ने भी अपनी पुस्तकों में चर्चा की है।
The credit for the restoration goes to Raja Man Singh: उमानाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का श्रेय राजा मान सिंह को जाता है। सन् 1934 में आए विनाशकारी भूकंप से इस मंदिर के अधिकांश भाग क्षतिग्रस्त हो गए थे। आज भी प्राचीन स्थापत्य काल के सुंदर और बेजोड़ नमूनों के अवशेष मंदिर प्रांगण में मौजूद हैं। इस मंदिर से कुछ ही दूरी पर सती का मंदिर है, जिसके संबंध में कहा जाता है कि पति की मृत्यु हो जाने पर जब एक स्त्री पति की चिता पर बैठ गई तो अंग्रेज अफसरों ने उसे जबरन चिता से उठाकर जेल में डाल दिया और जेल में ही सती आकाशीय बिजली से जल कर भस्म हो गई। इस प्रकार तीन सौ वर्षों के अंतराल में तीन माताएं सती हुईं।

Places visit in Umanath Temple Bihar: इसी महता के कारण ही सतियों की स्मृति में मंदिर का निर्माण करवाया गया। इसी मंदिर की बगल में है श्मशान। उत्तरायण गंगा प्रवाहित होने के कारण ही सती स्थान (शमशान) में प्रदेश के दूरदराज से व प्रदेश से बाहर के लोग शव को जलाने यहां आते हैं। शमशान के निकट ही है भूतनाथ मंदिर, जहां तंत्र-मंत्र से जुड़े लोग तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करते हैं। उमानाथ मंदिर के अतिरिक्त कई धार्मिक महत्व के मंदिर गंगा तट पर स्थित हैं, जिनमें अलखनाथ, सीढ़ी घाट, गौरी शंकर, गोपी नाथ, अमृत देव, रामजनकी मंदिर विशेष दर्शनीय हैं और धार्मिक महत्व रखते हैं। बाढ़ से पांच किलोमीटर दूर पंडारक में स्थित है प्राचीन पुण्यार्क सूर्य मंदिर। इस मंदिर के विषय में कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र सांबा ने यहां आकर भगवान सूर्य की आराधना की थी और कुष्ठ रोग से मुक्ति पाई थी। इस सूर्य मंदिर का निर्माण भी सांबा ने ही करवाया था।
Granary of Bihar: व्यापारिक दृष्टिकोण से भी यह नगर अपना विशेष महत्व रखता है। क्षेत्र में दलहन की अधिक पैदावार के कारण फतुहां से बड़हिया तक के क्षेत्र को ‘ग्रेनरी आफ बिहार’ कहा जाता है। कभी यहां गुलाब और चमेली का भारी मात्रा में उत्पादन होता था और इसका निर्यात देश के विभिन्न हिस्सों में किया जाता था। आज भी यहां दलहन और लाल मिर्च का उत्पादन काफी अधिक होता है। यहां की रामदाने की लाई भी अपनी मिठास और स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। पटना से हावड़ा की रेलयात्रा के दौरान बाढ़ की लाई आपको अवश्य मिल जाएगी।
