Edited By Prachi Sharma,Updated: 11 Aug, 2024 07:55 AM
कर्नाटक के बीजापुर में एक चबूतरे पर कब्रों की सात कतारें हैं। पहली चार पंक्तियों में ग्यारह-ग्यारह, पांचवीं पंक्ति में पांच और छठी तथा सातवीं पंक्तियों में सात-सात। ये कुल 63 कब्रें हैं। इनकी समान दूरी, आकार
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कर्नाटक के बीजापुर में एक चबूतरे पर कब्रों की सात कतारें हैं। पहली चार पंक्तियों में ग्यारह-ग्यारह, पांचवीं पंक्ति में पांच और छठी तथा सातवीं पंक्तियों में सात-सात। ये कुल 63 कब्रें हैं। इनकी समान दूरी, आकार और डिजाइन से लगता है कि ये कब्रें ऐसे लोगों की हैं, जिनकी मृत्यु लगभग एक ही समय में हुई होगी। कब्रों का ऊपरी चपटा हिस्सा जाहिर करता है कि ये सभी महिलाओं की हैं।
कर्नाटक के बीजापुर का नाम साल 2014 में बदलकर विजयपुर कर दिया गया था। शहर के एक कोने में छिपे हुए इस ‘पर्यटन स्थल’ को ‘साठ कब्र’ के नाम से जाना जाता है। यह शहर 1668 तक आदिल शाही शासकों की राजधानी हुआ करता था। बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान ने बीजापुर साम्राज्य के दक्षिणी दिशा में हुए विस्तार में अहम भूमिका निभाई थी।
यह वही अफजल खान है, जिसे मराठा सेनापति शिवाजी ने वाघ-नख के वार से मार डाला था। साल 1659 में बीजापुर के तत्कालीन सुल्तान अली आदिल शाह द्वितीय ने अफजल खान को शिवाजी से युद्ध करने के लिए भेजा था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के हेनरी कजिन्स के अनुसार, ‘‘इस अभियान पर जाने से पहले, ज्योतिषियों ने अफजल खान से कहा था कि वह युद्ध से जीवित नहीं लौटेगा।’’
कजिन्स ने अपनी किताब ‘बीजापुर : द ओल्ड कैपिटल ऑफ द आदिल शाही किंग्स’ में लिखा है कि अफजल खान को भविष्यवाणियों पर इतना यकीन था कि वह हर कदम इन्हीं पर गौर फरमा कर उठाता था।
हेनरी कजिन्स 1891 से 1910 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पश्चिमी डिविजन में सुपरिटेंडेंट थे। साल 1905 में छपी इस किताब में लिखा है कि रिवायत के मुताबिक, वह यानी अफजल खान अपने महल के पास ही खुद की कब्र और एक मस्जिद का निर्माण करवा रहा था। यह दो मंजिला मस्जिद 1653 में बनकर तैयार हुई थी। ऐसा माना जाता है कि सबसे ऊपरी मंजिल महिलाओं के लिए रखी गई होगी। यह तारीख मस्जिद की मेहराब में अफजल खान के नाम के साथ दर्ज है। जिस वक्त अफजल खान ने शिवाजी के खिलाफ अभियान छेड़ने का आदेश दिया था, तब तक यह मकबरा पूरी तरह से तैयार नहीं हुआ था।
अफजल खान ज्योतिषियों की भविष्यवाणी से इतना प्रभावित हुआ कि उसने कब्र के पत्थर पर अपनी मृत्यु की तारीख के रूप में अपने प्रस्थान का वर्ष लिख दिया।
यही वजह थी कि बीजापुर छोड़ते समय अफजल खान और उसके साथी यही सोच कर निकले कि वे दोबारा नहीं लौटेंगे। किताब में लिखा है, यही वजह थी कि उसने अपनी पत्नियों को डुबोकर मारने का फैसला किया।
इतिहासकार लक्ष्मी शरत ने लिखा है कि अफजल खान ने अपनी सभी पत्नियों को एक-एक करके कुएं में धकेल दिया, ताकि युद्ध में मरने के बाद वे किसी और के हाथ न पडें। वह लिखती हैं, ‘‘उसकी एक पत्नी ने भागने की कोशिश की लेकिन वह बाद में पकड़ी गई और उसे भी मार दिया गया।’’
हेनरी कजिन्स के मुताबिक, ‘‘इस परिसर में 63 महिलाओं की कब्रों के अलावा एक कब्र और है, जो खाली पड़ी है।’’
वह लिखते हैं, ‘‘शायद एक या दो महिलाएं बच गईं और खाली कब्र इसी ओर इशारा करती है।’’
इतिहासकार जादुनाथ सरकार के अनुसार, ‘‘अफजल खान के इस अभियान के बारे में कई किस्से बाद के वर्षों में मशहूर हुए।’’
जादुनाथ सरकार लिखते हैं, ‘‘उन्हीं में से एक किस्सा यह भी है। इसमें कहा गया कि अफजल खान को शिवाजी के खिलाफ अपने अभियान पर निकलने से पहले एक ज्योतिषी ने उनके युद्ध से जिंदा न लौटने की भविष्यवाणी की थी, इसलिए उसने अपनी 63 पत्नियों को बीजापुर के पास अफजलपुरा में मार डाला, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसकी मृत्यु के बाद वे किसी अन्य पुरुष को न मिलें।’’
शोधकत्र्ता मुहम्मद अनीसुर रहमान खान के मुताबिक, ‘‘कर्नाटक के बीजापुर में अलामिन मैडिकल कॉलेज के पास एक पुरानी इमारत के बीच में एक मंच पर सात पंक्तियों में कई एक जैसी कब्रें हैं।’’अफजल खान की इच्छा थी कि उसे उसकी पत्नियों की बगल में दफनाया जाए लेकिन वह युद्ध से कभी वापस नहीं लौट सका।
अनीसुर रहमान खान, मुहम्मद शेख इकबाल चिश्ती के हवाले से लिखते हैं कि अवाम में यह मशहूर है कि यहां 60 कब्रें हैं लेकिन यह सही नहीं क्योंकि यहां कुल 64 कब्रें हैं। उनमें से एक खाली है। अनीसुर रहमान खान लिखते हैं, ‘‘यह कब्रिस्तान शायद शाही परिवार की महिलाओं के लिए आरक्षित रहा होगा। उस दौर में युद्ध आम बात थी। इसके बावजूद एक सिपहसलार कैसे अज्ञानता से भरा कायरतापूर्ण कदम उठा सकता है ?’’
लक्ष्मी शरत इन कब्रों के पीछे की इस कहानी पर विश्वास करती हैं। कब्रिस्तान को देखने के बाद लक्ष्मी शरत ने लिखा, ‘‘काले पत्थर से बनी ये कब्रें सही-सलामत हैं। उनमें से कुछ के पत्थर टूटे हुए हैं। वहां गजब का सन्नाटा है, जो उन महिलाओं की आखिरी चीखों से गूंज रहा है, जिन्हें मौत के मुंह में धकेल दिया गया था। मुझे वहां कंपकंपी सी महसूस हो रही थी।’’
वह आगे लिखती हैं, ‘‘जाहिर तौर पर अफजल खान चाहता था कि उसे उसकी पत्नियों की बगल में दफनाया जाए लेकिन उसकी यह इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकी क्योंकि वह वापस लौट ही नहीं पाया।’’
कजिन्स के अनुसार, ‘‘अफजल खान के महल के खंडहरों के उत्तर में स्थित उसकी कब्र खाली ही रह गई थी।’’
कजिन्स लिखते हैं, ‘‘अफजल खान को प्रतापगढ़ में उसी जगह के करीब दफन किया गया था, जहां शिवाजी ने उसे मार दिया था। उसके शव को बीजापुर में बने मकबरे तक नहीं ले जाया गया।’’
शिवाजी के हाथों अफजल खान की मौत भारतीय इतिहास का एक दिलचस्प अध्याय है।