Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Nov, 2023 06:41 AM
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1857 की असफल क्रांति के बाद जब आजादी की लड़ाई लड़ने वाले नरम और गरम दल में बंट चुके थे, तब पंजाब के लाला लाजपत राय, महाराष्ट्र से बाल गंगाधर तिलक और बंगाल के बिपिन चंद्र पाल की तिकड़ी ने
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Bipin Chandra Pal birth anniversary: 1857 की असफल क्रांति के बाद जब आजादी की लड़ाई लड़ने वाले नरम और गरम दल में बंट चुके थे, तब पंजाब के लाला लाजपत राय, महाराष्ट्र से बाल गंगाधर तिलक और बंगाल के बिपिन चंद्र पाल की तिकड़ी ने गरम विचार वालों का नेतृत्व कर बहुत प्रसिद्धि पाई और देश में लोकप्रिय हो गए। अंग्रेजों की चूलें हिला देने वाली इस तिकड़ी के बिपिन चंद्र पाल को क्रांतिकारी विचारों के जनक के तौर पर जाना जाता है। वह राष्ट्रवादी नेता होने के साथ-साथ एक शिक्षक, समाज सुधारक, वक्ता, लेखक और पत्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं।
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इनका जन्म 7 नवंबर, 1858 को तत्कालीन बंगाल के सिल्हेट जिले के पोइली गांव में हुआ था, जो आज बंगलादेश में है। इनके पिता रामचन्द्र पाल जमींदार होने के साथ-साथ फारसी भाषा के भी विद्वान थे जबकि माता नारायणी देवी धार्मिक विचारों की गृहिणी थीं। इन्होंने चर्च मिशन सोसाइटी कॉलेज में पढ़ाई करने के बाद वहीं पर बच्चों को पढ़ाया भी। जितने स्पष्टवादी वह अपने सार्वजनिक जीवन में रहे, उतने ही स्पष्टवादी और क्रांतिकारी निजी जीवन में भी रहे। पहली पत्नी की मौत के बाद इन्होंने सभी के विरोध के बावजूद एक विधवा से शादी की जो उनके समय में बहुत ही बड़ी बात थी। बिपिन चन्द्र पाल ने लेखक और पत्रकार के रूप में बहुत समय तक कार्य किया। 1886 में इन्होंने सिलहट से निकलने वाले ‘परिदर्शक’ नामक साप्ताहिक पत्र में कार्य आरंभ किया।
1886 में कांग्रेस से जुड़े और 1887 में कांग्रेस के मद्रास सत्र में उन्होंने अंग्रेजी सरकार द्वारा लागू किया गया भेदभावपूर्ण ‘शस्त्र अधिनियम’ तत्काल हटाने की मांग की। जल्द ही इनकी दोस्ती लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर तिलक से हो गई। तीनों ने मिलकर क्रांतिकारी परिवर्तन के विरोध के उग्र स्वरूपों को अपनाया और जल्दी ही देश में ‘लाल बाल पाल’ के नाम से मशहूर हो गए। पूर्ण स्वराज, स्वदेशी आंदोलन, बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा देश के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख हिस्से हो गए। इन्होंने स्वदेशी और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार जैसे उपायों के जरिए देश में गरीबी और बेरोजगारी को कम करने की वकालत की।
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बिपिन चन्द्र पाल एक कुशल वक्ता व एक कुशल लेखक भी थे। उनकी वाणी और शब्दों में इतना जोश एवं उत्साह था कि आसानी से हजारों की भीड़ को अपना बना लेते थे। बंगाल पब्लिक ओपिनियन, द इंडिपैंडैंट इंडिया, लाहौर ट्रिब्यून, द हिंदू रिव्यू, द न्यू इंडिया, परिदर्शक, द डैमोक्रैट, वंदेमातरम्, स्वराज पत्रिकाओं में इनके ऐसे इरादे साफ तौर पर झलकते थे। ‘लाल, बाल, पाल’ की तिकड़ी ने 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आंदोलन किया जिसे बड़े स्तर पर जनता का समर्थन मिला। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान गरम धड़े के अभ्युदय को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इससे आंदोलन को एक नई दिशा मिली और लोगों के बीच जागरूकता बढ़ी।
इन्हें अंग्रेजों पर बिल्कुल भरोसा नहीं था। यह मानते थे कि निवेदन, तर्क, असहयोग जैसे तरीकों से अंग्रेजों को देश से नहीं भगाया जा सकता। बिपिन चंद्र पाल उग्रवादी राष्ट्रीयता के प्रबल पक्षधर थे। 1907 में जब अरविन्द पर राजद्रोह का मुकद्दमा चलाया गया और इन्हें उनके विरुद्ध गवाही के लिए बुलाया गया, तो इन्होंने साफ इंकार कर दिया और इन्हें 6 मास का कारावास भोगने की सजा हुई। निर्भीकता इनके विचारों की शक्ति थी। वह कहते थे-दासता मानवीय आत्मा के विरुद्ध है। ईश्वर ने सभी प्राणियों को स्वतंत्र बनाया है। बिपिन चंद्र पाल में दृढ़ता के साथ विरोध प्रदर्शन करने का सामर्थ्य था इसलिए उन्होंने स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन की पहली वर्षगांठ पर 1906 में एक इंग्लिश पत्र वन्दे मातरम् लांच करने का साहसी कदम उठाया। इस पत्र के संपादन के लिए अरबिंदो घोष को न्यौता दिया गया और उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया। 1907 में अंग्रेजों की दमनकारी नीति के बाद वह इंगलैंड चले गए, जहां वह क्रांतिकारी विधारधारा वाले ‘इंडिया हाऊस’ से जुड़ गए और ‘स्वराज’ पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया।
जीवन भर राष्ट्रहित के लिए काम करने वाले बिपिन चंद्र पाल 20 मई, 1932 को भारत मां के चरणों में अपना सर्वस्व त्यागकर परलोक सिधार गए। इनके सम्मान और स्मृति में भारत सरकार ने 1958 में जन्मशती के अवसर पर डाक टिकट जारी किया था।
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