Birthday of Ganesh Shankar Vidyarthi: ‘क्रांतिकारी पत्रकार’ गणेश शंकर विद्यार्थी को शत् शत् नमन

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Oct, 2022 11:31 AM

birthday of ganesh shankar vidyarthi

कलम की ताकत हमेशा से ही तलवार से अधिक रही है। गणेश शंकर विद्यार्थी एक ऐसे पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी थी। वह एक निडर और निष्पक्ष पत्रकार तो थे ही

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Birthday of Ganesh Shankar Vidyarthi: कलम की ताकत हमेशा से ही तलवार से अधिक रही है। गणेश शंकर विद्यार्थी एक ऐसे पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी थी। वह एक निडर और निष्पक्ष पत्रकार तो थे ही, एक समाज-सेवी और कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनका जन्म प्रयाग में 25 अक्तूबर, 1890 को माता गोमती देवी और जयनारायण के यहां हुआ। इनके पिता अध्यापन एवं ज्योतिष को अपनाकर जिला गुना, मध्य प्रदेश के गंगवली कस्बे में बस गए थे। प्रारम्भिक शिक्षा के बाद गणेश ने बड़े भाई के पास कानपुर आकर हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की।

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इसके बाद कालेज के समय से पत्रकारिता की ओर झुकाव हुआ और भारत में अंग्रेजी राज के यशस्वी लेखक पंडित सुन्दर लाल कायस्थ इलाहाबाद के साथ उनके हिंदी साप्ताहिक ‘कर्मयोगी’ के संपादन में सहयोग देने लगे। उसी दौरान उनका विवाह हो गया, जिससे पढ़ाई बाधित हो गई, लेकिन तब तक उन्हें लेखन एवं पत्रकारिता का शौक लग गया था, जो अन्त तक जारी रहा। विवाह के बाद घर चलाने के लिए धन की आवश्यकता थी, अत: वह फिर कानपुर भाईसाहब के पास आ गए।

1908 में उन्हें कानपुर में एक बैंक में 30 रुपए महीने की नौकरी मिल गई। एक साल बाद उसे छोड़कर विद्यार्थी एक स्कूल में अध्यापन कार्य करने लगे। यहां भी अधिक समय तक उनका मन नहीं लगा। वह इसे छोड़कर प्रयाग आ गए और 1911 में ‘सरस्वती’ पत्र में पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी के सहायक के रूप में नियुक्त हुए।

कुछ समय बाद ‘सरस्वती’ छोड़कर ‘अभ्युदय’ में सहायक संपादक हुए। यहां सितम्बर, 1913 तक रहे। पर यहां उनके स्वास्थ्य ने साथ नहीं दिया। अत: वह फिर कानपुर लौट गए और अपने सहयोगियों एवं वरिष्ठजनों से सहयोग, मार्गदर्शन का आश्वासन पाकर अंतत: विद्यार्थी जी ने दो ही महीने बाद 9 नवम्बर, 1913 को कानपुर से स्वयं अपना हिंदी साप्ताहिक ‘प्रताप’ के नाम से निकाला।
इस पत्र के प्रथम अंक में ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि हम राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन, सामाजिक आर्थिक क्रांति, जातीय गौरव, साहित्यिक सांस्कृतिक विरासत हेतु अपने हक-अधिकार के लिए संघर्ष करेंगे। इसी समय से ‘विद्यार्थी’ जी का राजनीतिक, सामाजिक और प्रौढ़ साहित्यिक जीवन प्रारंभ हुआ।

पहले इन्होंने लोकमान्य तिलक को अपना राजनीतिक गुरु माना, किंतु राजनीति में गांधी जी के अवतरण के बाद आप उनके अनन्य भक्त हो गए। एनी बेसेंट के ‘होमरूल’ आंदोलन में विद्यार्थी जी ने बहुत लगन से काम किया और कानपुर के मजदूर वर्ग के एक छात्र नेता हो गए।

अंग्रेजी शासन के विरुद्ध सामग्री से भरपूर ‘प्रताप’ अंग्रेज शासकों की निगाह में खटकने लगा। 22 अगस्त, 1918 में प्रताप में प्रकाशित नानक सिंह की ‘सौदा ए वतन’ नामक कविता से नाराज अंग्रेजों ने विद्यार्थी जी पर राजद्रोह का आरोप लगाया व ‘प्रताप’ का प्रकाशन बंद करवा दिया। आर्थिक संकट से जूझते विद्यार्थी जी ने किसी तरह व्यवस्था जुटाई तो 8 जुलाई, 1918 को फिर ‘प्रताप’ की शुरूआत हो गई।  

विद्यार्थी स्वयं तो बड़े पत्रकार थे ही, उन्होंने कितने ही नवयुवकों को पत्रकार, लेखक और कवि बनने की प्रेरणा तथा प्रशिक्षण दिया। अधिकारियों के अत्याचारों के विरुद्ध निर्भीक होकर ‘प्रताप’ में लेख लिखने के संबंध में विद्यार्थी जी को झूठे मुकद्दमों में फंसाकर जेल भेज दिया और भारी जुर्माना लगाकर उसका भुगतान करने को विवश किया।

वह 5 बार जेल गए और ‘प्रताप’ से कई बार जमानत मांगी गई। इतनी बाधाओं के बावजूद भी विद्यार्थी जी का साहस कम नहीं हुआ। उनका स्वर प्रखर से प्रखरतम होता चला गया। ‘प्रताप’ भारत की आजादी की लड़ाई का मुख-पत्र साबित हुआ।  

कुछ ही वर्षों में वह उत्तर प्रदेश (तब संयुक्त प्रांत) के चोटी के कांग्रेस नेता हो गए। सन् 1930 के सत्याग्रह आंदोलन के अपने प्रदेश के सर्वप्रथम ‘डिक्टेटर’ नियुक्त हुए। कांग्रेस की ओर से स्वाधीनता के लिए जो भी कार्यक्रम दिए जाते थे, विद्यार्थी जी उसमें बढ़-चढ़कर भाग लेते। इतना ही नहीं, वह क्रान्तिकारियों की भी हर प्रकार से सहायता करते। क्रान्तिवीर भगत सिंह ने भी कुछ समय तक ‘प्रताप’ में काम किया था।

कानपुर में हुए दंगों में उन्होंने हिन्दुओं तथा मुसलमानों की रक्षा भी की लेकिन 25 मार्च, 1931 को बड़ी बेरहमी से दंगाइयों ने उनकी हत्या कर दी। गणेश शंकर विद्यार्थी एक ऐसे साहित्यकार रहे, जिन्होंने देश में अपनी कलम से सुधार की क्रांति उत्पन्न की। अपनी अतुल देश भक्ति और अनुपम आत्मोसर्ग के लिए ये चिरस्मरणीय रहेंगे।

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