Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Sep, 2021 10:13 AM
देवभूमि हिमाचल में हजारों ऐसे मंदिर हैं जिनकी अपनी अलग ही महत्ता और पहचान है। चम्बा जिले के भरमौर में अगर आप शिव धाम चौरासी या मणिमहेश के दर्शन करना चाहते हैं तो सबसे पहले
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Bharmani Mata Temple Bharmour: देवभूमि हिमाचल में हजारों ऐसे मंदिर हैं जिनकी अपनी अलग ही महत्ता और पहचान है। चम्बा जिले के भरमौर में अगर आप शिव धाम चौरासी या मणिमहेश के दर्शन करना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको माता ब्रह्माणी अर्थात भरमाणी के दर्शन करने चाहिएं। ऐसा माना जाता है कि चौरासी मंदिर या मणिमहेश यात्रा से पहले माता ब्रह्माणी के दरबार में हाजिरी लगाना जरूरी है क्योंकि कभी ब्रह्मपुर के नाम से प्रख्यात भरमौर में ब्रह्मा जी की पुत्री ब्रह्माणी का वास हुआ करता था। भगवान भोलेनाथ ने माता ब्रह्माणी को यह वरदान दिया था कि जो भी व्यक्ति उनके दर्शनों के लिए मणिमहेश आएगा, वह पहले माता ब्रह्माणी के दर्शन करेगा, तभी उसकी यात्रा सफल होगी।
Brahmani mata history: भरमौर की पहाड़ियों के एक छोर पर डूग्गा सार नामक स्थान पर स्थापित माता ब्राह्मणी मंदिर के दर्शनार्थ के लिए यूं तो साल भर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है लेकिन मणिमहेश यात्रा के दौरान तो यहां लोगों का तांता लग जाता है और लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ती है। कहा जाता है कि माता ब्रह्माणी को नवदुर्गा में ब्रह्मचारिणी का रूप स्वीकारा गया है और माता ब्रह्माणी के नाम पर ही ब्रह्मपुर यानी भरमौर की स्थापना हुई थी।
भरमौर वासियों की कुलदेवी
माता ब्रह्माणी भरमौर वासियों की कुलदेवी हैं और यहां पर साल भर यज्ञों एवं भंडारों का आयोजन होता रहता है। कहा जाता है कि माता ब्रह्माणी कभी चौरासी मंदिर भरमौर के प्रांगण में विराजमान हुआ करती थीं। माता ब्राह्मणी यहां स्थित एक विशालकाय देवदार वृक्ष के समीप तपस्या किया करती थीं। वह ब्रह्मा की बेटी हैं। एक दिन स्वयं भगवान भोलेनाथ अपने 84 सिद्धों के साथ आए और इस स्थान पर एक रात बिताने के लिए यहां रुक गए। माता ब्रह्माणी जब भ्रमण के बाद यहां लौटीं तो यहां विराजमान 84 सिद्धों को देखकर क्रोधित हो उठीं।
माता के पूछने पर भगवान भोलेनाथ स्वयं प्रकट हुए और कहा कि माता आप निराश न हों। मेरे ये 84 सिद्ध केवल एक रात यहां ठहरेंगे लेकिन सुबह होने पर माता ने देखा कि उनके परिसर में 84 सिद्धों के स्थान पर 84 शिवलिंग स्थापित हो गए हैं। माता के क्रोधित होने पर भोलेनाथ पुन: प्रकट हुए और माता ब्रह्माणी से कहा कि अब यह स्थान चौरासी धाम के नाम से प्रख्यात होगा और आप किसी दूसरी जगह पर चली जाएं।
उन्होंने माता ब्रह्माणी को वरदान दिया कि आज के बाद जो भी भक्त मेरे दर्शन के लिए चौरासी धाम या मणिमहेश यात्रा के लिए आएगा वह सबसे पहले माता ब्रह्माणी के दर्शन करेगा तभी उसकी यात्रा सम्पूर्ण मानी जाएगी। भोलेनाथ के इस वचन के साथ माता ब्रह्माणी डूग्गा सार नामक स्थान पर चली गईं।
इसलिए पड़ा भरमाणी नाम
भरमौर की ऊंची पहाड़ी पर स्थित इस स्थान से 84 मंदिर बिल्कुल नहीं दिखता है क्योंकि माता ने कहा था कि अब मैं ऐसे स्थान पर डेरा जमाऊंगी जहां से चौरासी परिसर बिल्कुल भी दिखाई न दे। तभी से लोग इस स्थान को भरमाणी कह कर भी पुकारते हैं। मंदिर के पुजारियों के अनुसार मंदिर परिसर में माता के चरणों से होकर निकलने वाला जल एक कुंड में एकत्रित होता है और इसमें स्नान करने से कई तरह की व्याधियां दूर होती हैं।
यह भी माना जाता है कि कुंड के शीतल जल से स्नान करने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। खास कर मणिमहेश यात्रा के दौरान यहां लोगों को लाइनों में लगाकर कुंड में स्नान करना पड़ता है और माता ब्रह्माणी के दर्शन के लिए भी लम्बी कतारें लगती हैं। इस दौरान यहां 24 घंटे लंगर की सुविधा समाजसेवी संगठनों की ओर से उपलब्ध करवाई जाती है। यह मंदिर ट्रस्ट के अधीन है और यहां पर ठहरने के लिए लोगों के सहयोग से सराय का निर्माण भी करवाया गया है।
लकड़ी के प्राचीन मकान
माता ब्रह्माणी मंदिर के लिए पैदल यात्रा के दौरान गांव मलकौता में लकड़ी से निर्मित प्राचीन मकान लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं जो बेहद सुंदर हैं।
खास बात यह है कि इन लकड़ी के मकानों के नीचे तल पर लोग अपने पशु बांधते हैं और पहली मंजिल पर आवास रखते हैं।
हालांकि, समय के बदलाव के कारण कई लोगों ने इलाके में पक्के मकान भी अब बनवाने शुरू किए हैं लेकिन ये भी काफी हद तक पारम्परिक शैली से ही मिलते-जुलते हैं।
इसके साथ ही भरमौर के हेलीपैड से जब हम गांव की चढ़ाई शुरू करते हैं तो एक छोर पर सेब के बगीचे और देवदार के वृक्ष इसकी सुंदरता को चार चांद लगाते हैं।
गांव में कहीं-कहीं अखरोट, खुरमानी और नाशपाती के पेड़ भी लगे हैं। गांव के एक छोर पर हनुमान जी का मंदिर भी स्थापित है, जहां पर सुबह-शाम पूजा-अर्चना होती है।
पैदल पहुंचने का रास्ता
चम्बा से 62 किलोमीटर दूर भरमौर पहुंचने पर यहां से आगे अगर पैदल जाना हो तो वाया मलकौता गांव होकर अढ़ाई-तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़कर माता ब्रह्माणी के मंदिर पहुंच सकते हैं। वहीं गाड़ी या दोपहिया वाहन से भी संचूई या मलकौता से होकर माता भरमाणी के मंदिर पहुंचा जा सकता है।