Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Jul, 2023 08:31 AM
पंचकुला (स.ह.): शरीर गुरु नहीं होता बल्कि उसके वचन गुरु होते हैं। ‘गुरुब्र्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:’ इसका अर्थ यह नहीं है कि शरीरधारी गुरु ब्रह्मा, विष्णु
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पंचकुला (स.ह.): शरीर गुरु नहीं होता बल्कि उसके वचन गुरु होते हैं। ‘गुरुब्र्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:’ इसका अर्थ यह नहीं है कि शरीरधारी गुरु ब्रह्मा, विष्णु और महेश होता है। इसका अर्थ है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश गुरु हैं और इनको बनाने वाली मां दुर्गा है, इसलिए वास्तव में मां दुर्गा ही गुरु हैं। ये उदगार महाब्रह्मर्षि कुमार स्वामी ने 2-3 जुलाई को अनाज मंडी, सैक्टर-20 में गुरु पूर्णिमा पर आयोजित प्रभु समागम के दूसरे दिन श्रद्धालुओं से भरे पंडाल में व्यक्त किए।
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महाब्रह्मर्षि कुमार स्वामी ने कहा कि भगवान शिव कहते हैं कि जब तक पृथ्वी बनी रहेगी तब तक साधक की पुत्र-पौत्रा आदि संतान परंपरा भी बनी रहेगी। तीनों लोकों में उसकी पराजय कभी नहीं होगी और अंतत: वह मोक्ष को प्राप्त हो जाएगा। जिस पाठ से यश-कीर्ति, पद-प्रतिष्ठा, धन-धान्य व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, भगवान शिव कहते हैं कि मनुष्य उसका जाप क्यों नहीं करते। पाठ में परिहार करना बहुत आवश्यक होता है। भगवान शिव ने इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए कीलन द्वारा पाठ को कीलित कर दिया। जो विधिपूर्वक इस पाठ को निष्कीलन, उत्कीलन, शापोद्धार, परिहार करके जाप करता है उस पर माता प्रसन्न होती हैं, वही देवी का पार्षद और कृपा पात्रा होता है।
समागम में महाब्रह्मर्षि कुमार स्वामी ने अवधन के माध्यम से मात्रा 10-15 मिनट में ही लोगों को दुख निवारण की कृपा प्रदान की। अवधन की समाप्ति पर अनुभव सुनाने वालों की लंबी कतार लग गई।