Captain Gurbachan Singh Salaria Jayanti: अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन कर शहीद हुए  जांबाज कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Nov, 2023 08:21 AM

captain gurbachan singh salaria jayanti

भारतीय सेना विश्व की सबसे बेहतर सेनाओं में से एक है, जिसके बहादुर और समर्पित जवानों ने दुश्मनों के साथ लड़ते हुए अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। ऐसे ही जांबाज योद्धा थे

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Captain Gurbachan Singh Salaria Jayanti 2023: भारतीय सेना विश्व की सबसे बेहतर सेनाओं में से एक है, जिसके बहादुर और समर्पित जवानों ने दुश्मनों के साथ लड़ते हुए अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। ऐसे ही जांबाज योद्धा थे कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया, जो विदेशी धरती पर भारतीय सैन्य अधिकारी के रूप में संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान के सदस्य होते हुए दक्षिण अफ्रीका के कांगो में पृथकतावादियों के साथ मुठभेड़ में अद्भुत साहस से लड़ते-लड़ते शहीद हुए जिसके लिए भारत सरकार ने उन्हें 1962 में मरणोपरांत सेना का सर्वोच्च सम्मान ‘परमवीर चक्र’ प्रदान किया।  

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इनका जन्म 29 नवम्बर, 1935 को शकरगढ़ (अब पाकिस्तान में), पंजाब के ‘जनवल’ गांव में हुआ था। गुरबचन सिंह के पिता मुंशी राम को ब्रिटिश भारतीय सेना में ‘हॉसंस हॉर्स’ के डोगरा स्क्वाड्रन में शामिल किया गया था। अपने पिता और उनकी रैजीमैंट की कहानियों को सुनकर इन्हें भी बहुत कम उम्र में सेना में शामिल होने की प्रेरणा मिली।

गुरबचन सिंह सलारिया ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल से प्राप्त की। इसके बाद में 1946 में इन्हें बेंगलूर में किंग जॉर्ज रॉयल मिलिट्री कॉलेज (के.जी.आर.एम.सी.) में भर्ती कराया गया। 1947 में भारत विभाजन के परिणामस्वरूप इनका परिवार पंजाब के भारतीय भाग में चला आया और गुरदासपुर जिले के जंगल गांव में बस गया।

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1953 में ये राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एन.डी.ए.) के संयुक्त सेवा विंग में शामिल हुए। 1956 में एन.डी.ए. से स्नातक होने पर उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी से 9 जून, 1957 को अपना अध्ययन पूरा किया। शुरू में भारतीय थल सेना की 3 गोरखा राइफल्स की दूसरी बटालियन में नियुक्ति मिली, जिसके बाद इन्हें 1 गोरखा राइफल्स की तीसरी बटालियन में स्थानांतरित कर दिया गया। जब जून 1960 में कांगो गणराज्य बैल्जियम के शासन से आजाद हुआ तो जुलाई के महीने में कांगोलीज सेना में विद्रोह हो गया। कांगो की सरकार ने संयुक्त राष्ट्र से 14 जुलाई, 1960 को मदद मांगी तो संयुक्त राष्ट्र ने शांति मिशन की सेनाएं भेज दीं। मार्च से लेकर जून 1961 के बीच ब्रिगेडियर के.ए.एस. राजा के नेतृत्व में 99वीं इन्फैन्ट्री ब्रिगेड के 3000 जवानों के साथ कैप्टन सलारिया भी कांगो पहुंच गए।

5 दिसम्बर, 1961 को संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन कार्य के समय सलारिया की बटालियन को दो बख्तरबंद कारों पर सवार पृथकतावादी राज्य कातांगा के 150 सशस्त्र पृथकतावादियों द्वारा एलिजाबेविले हवाई अड्डे के मार्ग के अवरोध हटाने का कार्य सौंपा गया। उनकी रॉकेट लांचर टीम ने कातांगा की बख्तरबंद कारों पर हमला किया लेकिन इन्हें भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।

इन पर स्वचालित हथियारों से हमला किया गया। कैप्टन सलारिया ने अपने सैनिकों सहित संगीनों, खुखरी और हथगोलों से आक्रमण कर 40 दुश्मनों को मार डाला। भारी नुकसान देखकर बाकी विद्रोही भाग निकले लेकिन इस दौरान विद्रोहियों की फायरिंग से निकली 2 गोलियां इनकी गर्दन को चीर गईं परंतु वह गंभीर रूप से घायल होते हुए भी दुश्मनों से लड़ते रहे। अंत में विजय तो हासिल हुई पर भारत मां का यह जांबाज लाल शहीद हो चुका था।   

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