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Chaiti Chhath 2023: बिहार में सूर्योपासना का महापर्व चैती छठ संपन्न

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Mar, 2023 01:32 PM

chaiti chhath

बिहार में उदयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के साथ ही सूर्योपासना का महापर्व चैती छठ आज छठ संपन्न हो गया।

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पटना (वार्ता): बिहार में उदयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के साथ ही सूर्योपासना का महापर्व चैती छठ आज छठ संपन्न हो गया। बिहार में चार दिनों तक चलने वाला लोक आस्था का महापर्व ‘चैती छठ' 25 मार्च से शुरू हुआ। साल में दो बार चैत्र और कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष में महापर्व छठ व्रत होता है, जिसमें श्रद्धालु भगवान भास्कर की अराधना करते हैं। छठ महापर्व के चौथे और अंतिम दिन आज राजधानी पटना समेत राज्य के अन्य हिस्सों में हजारों महिला और पुरुष व्रतधारियों ने उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। 

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दूसरा अर्घ्य अर्पित करने के बाद श्रद्धालुओं का 36 घंटे का निराहार व्रत समाप्त हुआ और उसके बाद ही व्रतधारियों ने अन्न ग्रहण किया। चार दिवसीय इस महापर्व के तीसरे दिन कल व्रतधारियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को प्रथम अर्घ्य अर्पित किया था। इस बीच औरंगाबाद जिले के ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल देव के पवित्र सूर्य कुंड में चैती छठ व्रत के अवसर पर सात लाख से अधिक महिला-पुरुष श्रद्धालुओं ने उदीयमान भगवान भास्कर को अर्ध्य अर्पित किया। सूर्योदय होने के पहले से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने देव के कथित त्रेतायुगीन सूर्य मंदिर में कतारबद्ध होकर भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना की और सूर्य कुंड में भगवान भास्कर को अर्ध्य अर्पित किया। 

इस अवसर पर देव सूर्य मंदिर को अत्यंत आकर्षक ढंग से सजाया गया था। साथ ही चार दिवसीय छठ मेला में आने वाले व्रतधारियों एवं श्रद्धालुओं के लिए जिला प्रशासन की ओर से पेयजल, बिजली, सुरक्षा, स्वास्थ्य, साफ-सफाई आदि के बेहतर प्रबंध किए गए थे।

लोक मान्यता है कि छठ व्रत के अवसर पर देव में श्रद्धालुओं को भगवान भास्कर की साक्षात उपस्थिति की रोमांचक अनुभूति होती है। साथ ही अत्यंत प्राचीन सूर्य मंदिर में आराधना करने से मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति होती है। औरंगाबाद जिला प्रशासन ने देव छठ मेले में सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए थे। गौरतलब है कि चार दिवसीय यह महापर्व नहाय खाय से शुरू होता है और उस दिन श्रद्धालु नदियों और तलाबों में स्नान करने के बाद शुद्ध घी में बना अरवा भोजन ग्रहण करते हैं। इस महापर्व के दूसरे दिन श्रद्धालु दिन भर बिना जल ग्रहण किये उपवास रखने के बाद सूर्यास्त होने पर पूजा करते हैं और उसके बाद एक बार ही दूध और गुड़ से बनी खीर खाते हैं तथा जब तक चांद नजर आये तब तक ही पानी पीते हैं। इसके बाद से उनका करीब 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है।

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