Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Mar, 2025 02:02 PM

Chaitra Navratri 2025: नवरात्रि का समय साधना, ध्यान और प्रार्थना के लिए उपयुक्त माना जाता है। लोग इस दौरान अधिक से अधिक समय नवदुर्गा के ध्यान में लगाते हैं, जिससे उनकी मानसिक स्थिति शांति और संतुलन में रहती है। चैत्र नवरात्रि के दौरान मन, शरीर और...
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Chaitra Navratri 2025: नवरात्रि का समय साधना, ध्यान और प्रार्थना के लिए उपयुक्त माना जाता है। लोग इस दौरान अधिक से अधिक समय नवदुर्गा के ध्यान में लगाते हैं, जिससे उनकी मानसिक स्थिति शांति और संतुलन में रहती है। चैत्र नवरात्रि के दौरान मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करने का महत्व होता है। यह दिन एक नए आरंभ और आत्मनिर्भरता का प्रतीक होते हैं। भक्त देवी के आशीर्वाद से अपने जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता की कामना करते हैं। वर्ष में 4 नवरात्र माने गए हैं जो 3-3 महीनों के अंतराल पर आते हैं। आश्विन तथा चैत्र नवरात्रों के अलावा आषाढ़ व पौष मास में भी नवरात्र होते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। ऋतु परिवर्तन के परिचायक ये चारों नवरात्र,सूक्ष्म तथा चेतन जगत में आई तरंगों, भौगोलिक हलचलों आदि से मानव जीवन पर पड़ रहे प्रभाव आदि को बड़ी सूक्ष्मता से आकलन कर, मौसम के साथ बदलने का ज्ञान मानव को देते हैं कि किस तरह प्राकृतिक परिवर्तन के साथ-साथ शारीरिक परिवर्तन भी किया जा सके और प्रकृति के अनुसार जीवन शैली को बदला जाए। शरीर के नौ द्वारों-मुख, दो नेत्र, दो कान, दो नासिका, दो गुप्तेन्द्रिय को नवरात्रि के 9 दिनों में संयम, साधना, संकल्प, व्रत आदि से नियंत्रित किया जाता है।

How many days will Chaitra Navratri be this year इस वर्ष कितने दिन के होंगे चैत्र नवरात्रि ?
इस वर्ष चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ 30 मार्च 2025 से होने वाला है और समापन 6 अप्रैल 2025 को होगा। सनातन पंचांग के अनुसार द्वितीय और तृतीया तिथि एक ही दिन आ रही है, जिससे नवरात्रि 9 नहीं बल्कि 8 दिनों की होगी। ज्योतिष विद्वानों का मानना है की तिथि क्षय शुभ संकेत नहीं होता और इसे अमंगलकारी भी कहा गया है।

Ashtami and Navami dates in Chaitra Navratri चैत्र नवरात्रि में अष्टमी और नवमी तिथियां
महाअष्टमी: 5 अप्रैल 2025
महानवमी: 6 अप्रैल 2025

अष्टमी और नवमी तिथियां नवरात्रि में बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। अष्टमी को मां दुर्गा के आठवें रूप महागौरी और नवमी तिथि पर मां सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। कंजक पूजन और लोंगड़ा पूजन के उपरांत नवरात्रि की पूजा का समापन हो जाता है। नौ दिन तक उपवास रखकर मां दुर्गा का पूजन करने वाले भक्त अष्टमी अथवा नवमी को अपने व्रत का समापन करते हैं। नवरात्र के दौरान आठवें अथवा नौवें दिन सुबह के समय कन्या पूजन किया जाता है। माना जाता है कि आहुति, उपहार, भेंट, पूजा-पाठ और दान से मां दुर्गा इतनी खुश नहीं होतीं, जितनी कंजक पूजन और लोंगड़ा पूजन से होती हैं। अपने भक्तों को सांसारिक कष्टों से मुक्ति प्रदान करती हैं।

नौ कन्याओं और एक बालक यानी लंगड़ा को अपने घर आमंत्रित करें। माना जाता है कि लोंगड़े के अभाव में कन्या पूजन पूर्ण नहीं होता। एक कन्या का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, दो कन्याओं का पूजन करने से भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। तीन कन्याओं की पूजा करने से धर्म, अर्थ व काम, चार कन्याओं की पूजा से राज्यपद, पांच कन्याओं की पूजा करने से विद्या, छ: कन्याओं की पूजा द्वारा छ: प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। सात बालिकाओं की पूजा द्वारा राज्य की, आठ कन्याओं की पूजा करने से धन-संपदा तथा नौ कन्याओं की पूजा से पृथ्वी प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।
कन्या की उम्र दो साल से लेकर 10 साल तक होनी चाहिए। बालक को बटुक भैरव के रूप में पूजा जाता है। कन्याओं के पैर धोएं, बैठने के लिए आसन दें। फिर उन्हें रोली, कुमकुम और अक्षत का तिलक लगाएं। कलाई पर मौली बांधें। नवदुर्गा के चित्रपट या प्रतिमा को दीपक दिखाकर आरती उतारें। मां को पूरी, चना और हलवा का भोग लगाएं। फिर उसे सभी कंजकों और बालक को दें। साथ में यथाशक्ति भेंट और उपहार भी दें। अंत में कन्याओं के पैर छूकर उन्हें विदा करें। उनसे आशीर्वाद के रूप में थपकी अवश्य लें।
2 वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, 4 वर्ष की कल्याणी, 5 वर्ष की रोहिणी, 6 वर्ष वाली कल्याणी, 7 वर्ष वाली चंडिका, आठ वर्ष वाली शाम्भवी, नौ वर्ष वाली दुर्गा तथा 10 वर्ष वाली कन्या सुभद्रा स्वरूपा मानी जाती है। कन्याओं को विशेष तौर पर लाल चुन्नी और चूड़ियां भी चढ़ाई जाती हैं।
