Edited By Sarita Thapa,Updated: 04 Apr, 2025 06:31 AM
Chaitra Navratri day 7: सनातन धर्म में नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा करने का विधान है। चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि को सभी प्रकार के भय और शत्रुओं का नाश करने वाली देवी माना जाता है।
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Chaitra Navratri day 7: सनातन धर्म में नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा करने का विधान है। चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि को सभी प्रकार के भय और शत्रुओं का नाश करने वाली देवी माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, मां कालरात्रि की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है। अगर इस दिन आप भी जगत जननी मां कालरात्रि की कृपा प्राप्त करने चाहते हैं, तो चैत्र नवरात्र के सातवें दिन मां काली की पूजा करने के साथ उनके स्तोत्र का भी पाठ करें। इस दिन मां कालरात्रि के स्तोत्र का पाठ करने से नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। तो आइए जानते हैं मां कालरात्रि के स्तोत्र के बारे में-

मां कालरात्रि स्तोत्र
करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।
कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघोर्ध्वकराम्बुजाम्।
अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां।
घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥
सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।
एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥
हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती।
कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥
कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघन्कुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥
क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी।
कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥

महाकाली स्तोत्र
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
जगन्मोहिनीयं तु वाग्वादिनीयं,
सुहृदपोषिणी शत्रुसंहारणीयं |
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।

महाकाली स्तोत्र
इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली,
मनोजास्तु कामान्यथार्थ प्रकुर्यात ।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं,
वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता,
लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवस्ते |
जपध्यान पुजासुधाधौतपंका,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
चिदानन्दकन्द हसन्मन्दमन्द,
शरच्चन्द्र कोटिप्रभापुन्ज बिम्बं |
मुनिनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा,
कदाचिद्विचित्रा कृतिर्योगमाया |
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
क्षमास्वापराधं महागुप्तभावं,
मय लोकमध्ये प्रकाशीकृतंयत् |
तवध्यान पूतेन चापल्यभावात्,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
यदि ध्यान युक्तं पठेद्यो मनुष्य,
स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च |
गृहे चाष्ट सिद्धिर्मृते चापि मुक्ति,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
