Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Dec, 2022 07:40 AM
भारत वर्ष के उत्तरी भाग में अवध क्षेत्र में स्थित है नैमिषारण्य, जहां परम पावन श्री चक्रतीर्थ विद्यमान है। नैमिषारण्य धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एवं ऐतिहासिक पुण्यभूमि है। अवधपति दशरथ
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Naimisharanya dham: भारत वर्ष के उत्तरी भाग में अवध क्षेत्र में स्थित है नैमिषारण्य, जहां परम पावन श्री चक्रतीर्थ विद्यमान है। नैमिषारण्य धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एवं ऐतिहासिक पुण्यभूमि है। अवधपति दशरथ के पुत्र एवं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र के अनुज लक्ष्मण के नाम पर बसी लक्ष्मणावती दुख-सुख से हुई लखनौती जो बाद में लखनऊ कहलाई। लखनऊ से रेलवे की छोटी लाइन से जनपद सीतापुर जाना पड़ता है। सीतापुर से रेलवे की बड़ी लाइन या सड़क मार्ग से नैमिषारण्य जाया जाता है। यहां पंडा, पुजारियों के घरों एवं धर्मशालाओं तथा यात्री शालाओं में ठहरा जा सकता है।
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Chakratirtha Naimisharanya: श्री चक्रतीर्थ एक बड़ा गोलाकार जलाशय है, जो वृहताकार गोल घेरे में है। घेरे के चहुंओर बाहर जल भरा रहता है, जिसमें श्रद्धालु भक्तजन स्नान करते हैं यानी इस मनोहर चक्रतीर्थ में डुबकी लगाते हैं तथा जल में चलते हुए इस गोल चक्र की परिक्रमा भी करते हैं। बाह्य जल के भरे हुए घेरे के बाद चारों ओर सीढ़ियां बनी हुई हैं तथा स्थान-स्थान पर विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर हैं। यहां आने-जाने का सुंदर द्वार भी बना हुआ है। नैमिष यानी निमिष किंवा निमेष तथा आरण्य यानी अरण्य अर्थात वन क्षेत्र परमात्म तत्व का क्षेत्र।
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Chakratirtha in Naimisharanya: अथर्ववेद दशम मंडल, यजुर्वेद 23 वें अध्याय तथा 25 वें अध्याय में निमिष अर्थात निमेष शब्द का उल्लेख है। यहां पर निमिष शब्द का प्रयोग ब्रह्म स्वरूप परमात्मा का संसार को प्रकाशित करने वाली चेष्टा को व्यक्त करने के लिए किया गया है। निमिषे भव: नैमिष: अथवा निमिषाड निमिषा यत्रसन्ति स नैमिष:। अव्यक्तावस्था में जिस बिंदू से परमात्म ज्योति स्फरित होती है उस स्थान को व्यक्त करने वाले सांकेतिक शब्द को नैमिष कहते हैं।
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Naimisharanya story: भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी के लिए यज्ञ स्थान हेतु दिव्य चक्र प्रकट किया। जहां पर नेमिशीर्ण हुआ वह क्षेत्र नेमिषारण्य कहलाया और चक्र जहां पर अंतर्ध्यान हुआ तथा वास किया वह श्री चक्रतीर्थ कहलाया। पुराणों में मनोमय चक्र का भगवान विष्णु द्वारा प्रकट करना और इस क्षेत्र में नेमिशीर्ष होना यानी सब प्रकार से शुभ स्थान होना लिखा है।
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What is Naimisharanya famous for: पुराणों में नैमिषारण्य की स्थिति को व्यक्त करने वाले जिस चक्र का वर्णन किया गया है, वह कोई साधारण यंत्र नहीं बल्कि संसार को धारण करने वाले प्रकट तत्व ब्रह्म की वह गोल परिधि है जो काल रूप से विश्व में प्रत्यावर्तन करता है। इसके अंतर्गत ही दिन-रात, पक्ष मासादि, संवत्सर की रचना होती है। इसी के कारण जन्म-मरण आदि की व्यवस्था है। संसार के अस्तित्व की एकमात्र यही प्रतीक है।
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इस महिमामय चक्र की नेमि अर्थात आश्रम स्थान निमिष अथवा निमेष बिंदू पर टिकी होने से यह स्थान नैमिषारण्य अथवा नैमिष के नाम से जाना जाता है। नैमिषारण्य एवं श्री चक्रतीर्थ के विषय में विभिन्न प्रकार की जानकारियां श्रीमद्भागवत महापुराण, महाभारत, वायु पुराण, वामन पुराण, पद्म पुराण, शिव पुराण, देवी भागवत पुराण, यजुर्वेद का मंत्र भाग श्वेताश्वर उपनिषद्, प्रश्नोपनिषद, अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, कालिका तंत्र, कर्म पुराण, शक्ति यामल तंत्र, श्री रामचरित मानस, योगिनी तंत्र आदि ग्रंथों से प्राप्त होती है।
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Naimisharanya places to visit: यहां मां ललिता देवी, भूतेश्वर भूतनाथ, श्री गोकर्णनाथ महादेव, श्री राम धाम, अश्वमेध घाट, श्री श्रृंगी ऋषि की समाधि, दधीचि मुनि का स्थान व पिप्पलाद मुनि स्थल, गोमती नदी व इसके तट पर अनेक तीर्थ, रुद्र कुंड, 108 पीठों में से एक उड्डयन पीठ, जहां भगवती सती का अंग गिरा था, सिद्ध पीठ शक्ति पीठ (ललिता देवी), जानकी कुंड तीर्थ वाणी स्वरूप प्रवाहमान ज्ञान गंगा सरस्वती स्नान तीर्थ, रामेश्वरम, श्री देवेश्वर, मनु-शतरूपा तपोस्थली व प्राकट्य स्थान, भगवान व्यास की गद्दी आदि अनेक धर्मस्थल हैं।
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