Edited By Prachi Sharma,Updated: 08 Apr, 2024 10:19 AM
जो राजा आलसी होता है, वह अपने राज्य को क्षरित अर्थात दिन-प्रतिदिन क्षीण होने से नहीं रोक सकता।
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आलसी राजा प्राप्त वस्तु की रक्षा करने में असमर्थ होता है
आलसस्य लब्धमपि रक्षितुं न शक्यते।
भावार्थ : जो राजा आलसी होता है, वह अपने राज्य को क्षरित अर्थात दिन-प्रतिदिन क्षीण होने से नहीं रोक सकता।
‘आलसी राजा’ अपने विवेक की रक्षा नहीं कर सकता
न चालसस्य रक्षितं विवर्धते।
भावार्थ : जो राजा आलसी होता है, उसकी बुद्धि भी नष्ट हो जाती है। वह अपने विवेक की रक्षा करने में पूर्णत: असमर्थ हो जाता है।
आलसी राजा की प्रशंसा’ उसके सेवक भी नहीं करते
न भृत्यान् प्रेषयति।
भावार्थ : जो राजा आलसी होता है, उसके सेवक भी उसकी प्रशंसा नहीं करते क्योंकि अपने स्वामी के समान वे भी आलसी हो जाते हैं।
शक्तिशाली राजा लाभ प्राप्त करने का प्रयत्न करता है
बलवान लब्धलाभे प्रयतते।
भावार्थ : जो राजा शक्तिशाली होता है वह उन प्रदेशों और वस्तुओं को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है जो उसके राज्य को लाभ पहुंचाने वाली होती हैं और जिनसे उसके राज्य की श्रीवृद्धि होती है।
मित्रों के संग्रह से बल प्राप्त होता है
मित्रसंग्रहणे बलं स पद्यते।
भावार्थ : जो राजा जितने अधिक अपने मित्र बना लेता है, वह उतना ही शक्तिशाली हो जाता है।
राजतंत्र के ‘चार आधार’
अलब्धलाभादि चतुष्टयं राज्यतंत्रम्।
भावार्थ : जो राजा अप्राप्त लाभ को प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करता, प्राप्त धन अथवा भूमि की रक्षा नहीं करता, रक्षित धन अथवा भूमि की श्रीवृद्धि तथा विकास नहीं करता और उचित राजकर्मचारियों की नियुक्ति करके राज कार्यों में परस्पर सामंजस्य नहीं करता, वह राज्य संचालन में असफल हो जाता है क्योंकि राजतंत्र के ये चार प्रमुख आधार हैं।