Edited By Prachi Sharma,Updated: 04 Sep, 2024 07:00 AM
कठोर वचनों का घाव इतना गहरा होता है कि उसे भरना मुश्किल हो जाता है, जबकि अग्नि से जले
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अग्नि दाहादपि विशिष्टं वाक्पारुष्यम्।
कठोर वचनों का घाव इतना गहरा होता है कि उसे भरना मुश्किल हो जाता है, जबकि अग्नि से जले का घाव जल्दी ठीक हो जाता है। अत: राजा को कभी कड़वे वचन नहीं बोलने चाहिएं।
पूर्वाग्रह से ग्रसित दंड देना लोकनिंदा का कारण बनता है
दंडपारुष्यात् सर्वजनद्वेषयो भवति।
किसी न्यायाधीश को न्याय करते समय किसी पूर्वाग्रह अथवा शत्रुता के वशीभूत होकर अपराधी को दंड नहीं देना चाहिए। अन्यथा जनता उसकी निंदा करने से नहीं चूकती।
शिरसि प्रस्थाप्यमानोऽपि वह्निर्दहत्येव:।
अर्थ : आग सिर में स्थापित करने पर भी जलाती (दुख पहुंचाती) है।
भावार्थ : आग को चाहे सिर पर धारण कर लिया जाए, वह जलाएगी ही, यह तो उसका स्वभाव है। इसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति का कितना ही सम्मान कर लिया जाए, वह सदा दुख ही देता है।
‘पुरुषार्थी’ का अपमान न करें
कदाऽपि पुरुषं नावमन्यते्।
अर्थ : कभी भी पुरुष (पुरुषार्थी) का अपमान नहीं करना चाहिए।
भावार्थ : पुरुषार्थ करने वाला व्यक्ति ही पुरुष अर्थात पौरुष अथवा शक्ति का प्रतीक होता है। ऐसे व्यक्ति का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए।
जुए में लिप्त रहने वाले के कार्य पूरे नहीं होते
नास्तिक कार्यं द्यूत प्रवृत्तस्य।
भावार्थ: जो राजा जुए में लिप्त रहता है, उसके कार्य कभी पूरे नहीं होते। प्रजा और राजकर्मचारी उसकी ओर से उदासीन हो जाते हैं और ऐसा राजा शीघ्र ही श्रीहीन होकर अपना सब कुछ गंवा देता है।
व्यसनी व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता
न व्यसन परस्य कार्यावाप्ति:।
समाज में जो व्यक्ति बुरी लतों के शिकार होते हैं, वे कभी अपने जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि उनका उत्साह, लगन और आत्मविश्वास समाप्त हो जाता है।
इंद्रिय वशवर्ती चतुरंगवानपि विनश्यति।
चतुरंगिणी सेना (हाथी, घोड़े रथ और पैदल) होने पर भी इंद्रियों के वश में रहने वाला राजा नष्ट हो जाता है। राजा चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, यदि वह भोग विलास में अपना अधिकांश समय व्यतीत करता है तो ऐसा राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाता है अथवा पराजित होकर मारा जाता है।