Edited By Prachi Sharma,Updated: 22 Sep, 2024 09:43 AM
धैर्यहीन के पास धन नहीं टिकता महदैश्वर्य प्राप्याप्यधृतिमान् विनश्यति।
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धैर्यहीन के पास धन नहीं टिकता
महदैश्वर्य प्राप्याप्यधृतिमान् विनश्यति।
अर्थ : विवेकहीन व्यक्ति महान ऐश्वर्य पाने के बाद भी नष्ट हो जाते हैं।
भावार्थ : जो व्यक्ति विचारशील और धैर्यवान नहीं होते, वे अकूत धन-सम्पदा पाने के उपरांत भी अपने अस्थिर मन से उसे नष्ट कर डालते हैं। वे उस धन का सदुपयोग करना नहीं जानते और जल्दी ही दूसरों के बहकावे में आकर सारा धन लुटा बैठते हैं और अपना विनाश कर लेते हैं।
‘धैर्यवान’ हमेशा जीतता है
धृत्या जयति रोगान्।
अर्थ : धैर्यवान व्यक्ति अपने धैर्य से रोगों को भी जीत लेता है।
भावार्थ : जिस व्यक्ति में धैर्य होता है जिसकी इंद्रियां उसके वश में होती हैं। जिसका मन सुस्थिर रहता है, जो स्वयं चलायमान चरित्र का स्वामी नहीं है, ऐसा व्यक्ति शरीर के रोगों पर भी काबू पा लेता है।