Edited By Prachi Sharma,Updated: 27 Oct, 2024 06:00 AM
भावार्थ : राजा को सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रजा की रक्षा के लिए वह अपने गौरव को किसी रूप में भी मलिन न होने दे। राजा के गौरव के सम्मुख उसकी प्रजा का मनोबल भी ऊंचा होता है।
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आत्मरक्षा से सबकी रक्षा होती है
आत्मनि रक्षिते सर्वं रक्षितं भवति।
भावार्थ : राजा को सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रजा की रक्षा के लिए वह अपने गौरव को किसी रूप में भी मलिन न होने दे। राजा के गौरव के सम्मुख उसकी प्रजा का मनोबल भी ऊंचा होता है।
‘आत्मसम्मान के हनन’ से विकास का विनाश हो जाता है
आत्मायत्तौ वृद्धिविनाशौ।
भावार्थ : जिस राजा का आत्मसम्मान चला जाता है उसके राज्य की श्रीवृद्धि रुक जाती है। वह ठीक से पनपने नहीं पाता। प्रजा में निराशा और कुंठाएं अपने पांव पसार लेती हैं।
निर्बल राजा की आज्ञा की भी अवहेलना कदापि नहीं करनी चाहिए
दुर्बलोऽपि राजा नावमन्तवय:
भावार्थ : राजा भले ही दुर्बल हो, पर वह पूरे देश का नेता होता है। उसका अपमान पूरे देश का अपमान माना जाता है इसलिए उसकी आज्ञा को स्वीकार कर लेना उचित होता है।
अग्नि में दुर्बलता नहीं होती
नास्त्यग्नेर्दौर्बल्यम्।
भावार्थ : जिस प्रकार आग की छोटी-सी चिंगारी विशाल वन को जला डालती है, उसी प्रकार एक छोटे से राजा का अपमान भी कभी-कभी भयानक युद्ध को न्यौता दे देता है इसलिए राजा को दुर्बल समझकर उसका निरादर नहीं करना चाहिए।