Edited By Prachi Sharma,Updated: 06 Feb, 2025 11:57 AM
बिना धन के कोई भी कार्य संभव नहीं होता। अत: राज्य के विकास के लिए और विद्वानों के सम्मान के लिए राजा को धन एकत्र करना चाहिए।
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अर्थमूलं कार्यम्।
बिना धन के कोई भी कार्य संभव नहीं होता। अत: राज्य के विकास के लिए और विद्वानों के सम्मान के लिए राजा को धन एकत्र करना चाहिए।
‘धन’ की शक्ति प्रबल है
यदल्पप्रयत्नात कार्यसिद्धिर्भवति।
राजा के पास यदि पर्याप्त रूप से धन होता है तो जरा से प्रयत्न करने के उपरांत ही सभी कार्य पूरे हो जाते हैं। धन की शक्ति प्रबल होती है।
‘दंडनीति के उचित प्रयोग से ही प्रजा की रक्षा संभव
दंडनीतिमधितिष्ठन् प्रजा: संरक्षति।
भावार्थ : अपने राज्य की रक्षा करने का दायित्व राजा का होता है। एक राजा तभी अपने राज्य की रक्षा करने में सक्षम हो सकता है जब उनकी दंडनीति निर्दोष हो।
दंडनीति से सम्पदा में बढ़ौतरी
दंड: संपदा योजयति।
भावार्थ : जो राजा निर्दोष दंडनीति का सहारा लेता है, उसकी प्रजा निर्द्वंद्व होकर अपना व्यवसाय कर सकती है। तब राज्य संपदा में बढ़ौतरी होने में देर नहीं लगती। व्यापारी राज्य ‘कर’ देने में कोताही नहीं बरतते।
दंड का भय न होने से लोग अकार्य करने लगते हैं
न दंडादकार्याणि कुर्वन्ति।
भावार्थ : जब दंड का भय नहीं रहता, तब असामाजिक तत्व उद्दंडता करते हैं और वे उन कार्यों में प्रवृत्त हो जाते हैं जो समाज को हानि पहुंचाने वाले होते हैं।
‘दंडनीति से आत्मरक्षा की जा सकती है।
दंडनीत्यामायत्तमात्मरक्षणम्।
भावार्थ : राष्ट्र की सुरक्षा और आत्मगौरव की सम्मानजनक रक्षा के लिए दंडनीति का होना परम आवश्यक है। इससे विद्रोही सिर उठाने का साहस नहीं कर पाते।