Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य के अनुसार माता-पिता की लज्जा बन जाती है ऐसी संतान

Edited By Prachi Sharma,Updated: 19 Mar, 2025 10:51 AM

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आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति में राज्य और परिवार के संचालन के लिए कूटनीति और नैतिकता के महत्व को स्पष्ट रूप से बताया है।

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Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति में राज्य और परिवार के संचालन के लिए कूटनीति और नैतिकता के महत्व को स्पष्ट रूप से बताया है। आचार्य चाणक्य का मानना था कि एक गुणवान पुत्र, चाहे वह एकमात्र हो, किसी भी संख्या में कुपुत्रो से कहीं अधिक मूल्यवान होता है। उनका तर्क था कि एक कुपुत्र अपने परिवार और कुल को शर्मसार कर सकता है, जबकि एक गुणवान पुत्र न केवल परिवार का मान बढ़ाता है, बल्कि समाज में भी उसकी प्रतिष्ठा स्थापित करता है। ऐसी संतान जो अपने आचरण से परिवार और समाज की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती है, वह न केवल अपने परिवार का नाम खराब करती है बल्कि माता-पिता को भी शर्मसार कर देती है। यह एक कठोर सत्य है, जिसे चाणक्य ने जीवन के वास्तविक अनुभवों से निकाला था। आइए, इस विचार को और विस्तार से समझते हैं।

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परिवार की प्रतिष्ठा और सम्मान
चाणक्य के अनुसार, यदि संतान ने गलत रास्ता अपनाया तो वह न केवल अपनी पहचान खोती है, बल्कि अपने माता-पिता और परिवार के लोगों को भी शर्मिंदा कर देती है। एक बच्चा जब गलत कर्म करता है, जैसे कि चोरी, धोखाधड़ी, हिंसा, या समाज के अन्य नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसका असर परिवार की प्रतिष्ठा पर पड़ता है। समाज की नजर में उस परिवार की छवि खराब हो जाती है और वे लोग जो उस परिवार से जुड़े होते हैं, उन्हें समाज में हंसी और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है।

माता-पिता की जिम्मेदारी
माता-पिता का दिल दुखता है जब उनका बच्चा गलत मार्ग पर चलता है। वे न केवल व्यक्तिगत रूप से दुखी होते हैं, बल्कि वे सामाजिक दबाव का भी सामना करते हैं। समाज उन पर उंगली उठाता है, यह मानते हुए कि यदि बच्चा गलत है, तो माता-पिता ने उसे सही शिक्षा नहीं दी। इसके परिणामस्वरूप माता-पिता को शर्मिंदगी और अपमान का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उनके बच्चों के कृत्य सीधे तौर पर उनके खुद के आचरण से जुड़े होते हैं।

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रिवार और समाज का आपसी संबंध
 यदि एक व्यक्ति अपराध करता है, तो उसकी पहचान और दोष केवल उस व्यक्ति तक सीमित नहीं रहती। समाज उस परिवार को भी दोषी मानता है और उन्हें भी समाज से बाहर कर सकता है। इससे परिवार को न केवल मानसिक कष्ट होता है, बल्कि समाज में उनकी स्थिति भी गिर जाती है।

संतान का कर्तव्य
बच्चों का कर्तव्य है कि वे अपने परिवार की प्रतिष्ठा को बनाए रखें। उन्हें अपने परिवार की इज्जत को किसी भी हालत में मिट्टी में नहीं मिलाना चाहिए। चाणक्य के अनुसार, एक संतान का आदर्श वह होना चाहिए जो अपने परिवार और समाज के प्रति जिम्मेदार हो और अपने आचरण से समाज में आदर्श प्रस्तुत करे।

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